जनमानस शेखावाटी संवाददाता : नीलेश मुदगल
झुंझुनूं-चिड़ावा : आदर्श समाज समिति इंडिया के तत्वाधान में भगेरिया फार्म हाउस के पास मुकेश सदन चिड़ावा में स्वतंत्रता संग्राम के दौरान 13 अप्रैल 1919 को पंजाब के अमृतसर में जलियांवाला बाग नरसंहार में मारे गये शहीदों को श्रद्धांजलि अर्पित कर नमन किया। सत्ता की भूख से होती हैं “जलियांवाला बाग हत्याकांड” जैसी अमानवीय घटना। भारत के इतिहास में कुछ तारीखें कभी नहीं भूली जा सकती हैं।
13 अप्रैल 1919 को बैसाखी के पर्व पर पंजाब में अमृतसर के जलियांवाला बाग में ब्रिटिश ब्रिगेडियर जनरल रेजीनॉल्ड डायर द्वारा किए गए निहत्थे मासूमों के हत्याकांड से केवल ब्रिटिश औपनिवेशिक राज की बर्बरता का ही परिचय नहीं मिलता, बल्कि इसने भारत के इतिहास की धारा को ही बदल दिया। आदर्श समाज समिति इंडिया के अध्यक्ष धर्मपाल गांधी ने जलियांवाला बाग हत्याकांड के शहीदों को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए कहा- जालियांवाला बाग में हुआ नरसंहार भारत के स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास से जुड़ा एक ऐसा भयानक दिन था, जिसका जश्न नहीं मनाया जाता है। ऐसा इसलिए क्योंकि यह इतिहास का काला दिन है जो सिर्फ दर्दनाक और दुखद यादों से भरा हुआ है। मार्च 1919 में ब्रिटिश सरकार ने एक दमनकारी रोलेट एक्ट पास किया। जिसके विरोध में 6 अप्रैल को महात्मा गांधी ने देशव्यापी हड़ताल का आह्वान किया। हड़ताल का असर पंजाब में सबसे ज्यादा हुआ, वहां जुलूस निकाल रही भीड़ पर अंग्रेजी सरकार ने गोलियां चलाई, जिसमें 2 लोग मारे गये। इसके बाद में आंदोलनकारियों का प्रदर्शन उग्र हो गया। पंजाब के दो राष्ट्रवादी नेता डॉ. सत्यपाल और डॉ. सैफुद्दीन किचलू को पुलिस ने बेवजह गिरफ्तार कर लिया। महात्मा गांधी सहित कई नेताओं पर पंजाब सीमा में प्रवेश पर रोक लगा दी गई।
महात्मा गांधी जलियांवाला बाग में 13 अप्रैल को वैशाखी पर होने वाली जनसभा में भाग लेने के लिए पंजाब के लिए रवाना हुए लेकिन उन्हें दिल्ली के पास पलवल रेलवे स्टेशन पर गिरफ्तार कर लिया गया। 13 अप्रैल 1919 को अमृतसर के जलियांवाला बाग में डॉ. सत्यपाल और डॉ. सैफुद्दीन किचलू की गिरफ्तारी के विरोध में बहुत ज्यादा संख्या में लोग इकट्ठे हुए। शांतिपूर्ण सभा के लिए जमा हुए हजारों भारतीयों पर ब्रिगेडियर जनरल रेजीनॉल्ड डायर ने अंधाधुंध गोलियां बरसाई, जिसमें 1000 से ज्यादा निर्दोष भारतीय मारे गये और हजारों की संख्या में घायल हो गये। इस नरसंहार की दुनिया भर में आलोचना हुई। जलियांवाला बाग हत्याकांड बेहद दर्दनाक हादसा था, जिसमें खून की नदियां बह गई। बाग में मौजूद कुआं भारतीयों की लाशों से भर गया और मौत का वह मंजर हर किसी की रूह को चोटिल कर गया। 21 साल बाद शहीद उधम सिंह ने जलियांवाला बाग हत्याकांड का बदला लिया।
जलियांवाला बाग हत्याकांड ब्रिटिश काल के अंत और इतिहास का सबसे काला दिन है। जलियांवाला बाग में गोलियों के निशान आज भी मौजूद हैं, जो ब्रिटिश शासन के अत्याचार की कहानी कहते हैं। इस नरसंहार के बाद ही अंग्रेजी हुकूमत को उखाड़ फेंकने की शुरुआत हुई थी। जलियांवाला बाग हत्याकांड के विरोध में ही महात्मा गांधी ने असहयोग आंदोलन शुरू किया था। जलियांवाला बाग हत्याकांड को हुए 104 वर्ष हो गए हैं। वर्तमान परिपेक्ष्य में अधिकतर लोग देश की आजादी के लिए शहीद हुए क्रांतिकारियों को याद करने की बजाय अपनी जाति के महापुरुषों का महिमामंडन करने में लगे हुए हैं। जिस जाति का कोई महापुरुष नहीं हुआ, उस जाति के लोग अपनी जाति का महापुरुष खोजने में लगे हुए हैं। जिनका देश की आजादी में तनिक भी योगदान नहीं उनका महिमामंडन किया जा रहा है। वोट लेने के लिए राजनेता भी बेशर्मी की हद पार कर ऐसे लोगों का समर्थन कर रहे हैं। देश की आजादी के लिए जान कुर्बान करने वाले शहीदों को सर्वप्रथम याद करना चाहिए, उन्हें नमन करना चाहिए। आदर्श समाज समिति इंडिया परिवार जलियांवाला बाग हत्याकांड में मारे गए शहीदों को नमन करता है।
इस मौके पर पूर्व सरपंच लीलाराम मास्टर, दलीप नारनौलिया, धर्मपाल गांधी, प्रेम सिंह लाखू, रमेश कुमार, शिक्षाविद् मुकेश कुमार, सुनीता, सुनील गांधी, प्रदीप कुमार, मनोज कुमार, संजय , राकेश, पीयूष आदि अन्य लोग शामिल रहे।