जैकी श्रॉफ हिंदी सिनेमा के उन चंद सितारों में से हैं जो हमेशा सकारात्मक बातें ही करते दिखते हैं। कहीं किसी तरह का घमंड नहीं, किसी बात का आबंडर नहीं। जो दिल में है, वह कहते हैं और कभी किसी खेमे का हिस्सा नहीं बनते। बीती सदी के शो मैन रहे सुभाष घई ने उनको फिल्म ‘हीरो’ में हीरो का मौका दिया। जैकी श्रॉफ का शुरू से यही मानना रहा है कि जिंदगी खूबसूरत होती है और जिंदगी के हर एक एक पल को शिद्दत से जीना चाहिए। लेकिन कोई क्या करे, जब उसके जीवन में ऐसा भी समय आए कि उसे जीने का मन ही न करे। जब जिंदगी उसे बोझ सी लगनी लगे। फिल्म ‘लाइफ इज गुड’ इसी का उत्तर तलाशने की कोशिश करती है। कोई चार साल पहले ये फिल्म रिलीज होने वाली थी और तब से खिसकते खिसकते 2022 के आखिर तक आ पहुंची है। हाल ही में सम्पन्न हुए भारत के अंतर्राष्ट्रीय फिल्म समारोह में भी इस फिल्म की काफी चर्चा रही।
फिल्म ‘लाइफ इज गुड’ जिंदगी के बारे में है। उस जिंदगी के बारे में जिसमें सबको किसी न किसी से कोई न कोई उम्मीद बनी रहती है। उम्मीदें टूटती हैं तो इंसान बिखरने लगता है। देश की शिक्षा व्यवस्था ऐसी है कि ये व्यक्ति को सिर्फ आर्थिक उत्थान के लिए तैयार करती है। मानसिक और आध्यात्मिक उत्थान की जरूरतों को समझाती फिल्म फिल्म ‘लाइफ इज गुड’ बताती है कि अकेलापन दूर करने का पहला कदम खुद से शुरू होता है। ये समझाती है कि हमें किस तरह से जीना चाहिए। अपने आप को खोकर खत्म नहीं करना चाहिए। किसी से भी प्यार कीजिए। अपने ईश्वर से प्यार कीजिए, परिवार से प्यार कीजिए अपने आस पास के लोगों से प्यार कीजिए। प्यार ऐसा है जो निरंतर जिंदगी में आपको आगे ले जाता है, जिंदगी में हर एक छोटी से छोटी चीज का आनंद लीजिए। कुछ न मिल सके तो हवाओं को महसूस कीजिए, बारिश की बूंदों को गिरते हुए देखिए और मखमली बर्फ को महसूस कीजिए।
जो भी है बस यही इक पल है..
‘लाइफ इज गुड’ की कहानी एक ऐसे इंसान रामेश्वर की है, जो अपनी मां की मौत के बाद अकेला हो जाता है और अपनी जीवन लीला समाप्त करना चाहता है। रामेश्वर अपनी मां से बहुत प्यार करता है, उसे लगता है कि मां के मौत के बाद उसकी खुशियां खत्म हो गई और मां के बिना जीने का कोई औचित्य नहीं। वह मां के साये को महसूस करता है, मानो कोई साया उसके पीछे-पीछे चल रहा हो। रामेश्वर धीरे-धीरे अपनी दुनिया को अपनी उंगलियों से फिसलता हुआ महसूस करता है और उस पर अवसाद हावी हो जाता है। उसे ऐसा लगता है जैसे उसके पास जीने के लिए कुछ भी नहीं है, जैसे वह जीवन के चक्रव्यूह में खो गया हो। वह इसे पूरी तरह से समाप्त करने पर विचार करता है। तभी छह साल की बच्ची मिष्टी, रामेश्वर के जीवन में आती है और रामेश्वर को फिर जिंदगी जीने का एक अवसर मिलता है।
जैकी श्रॉफ ने ‘लाइफ इज गुड’ मे रामेश्वर का किरदार निभाया है। काफी लंबे समय के बाद जैकी श्रॉफ एक ऐसी फिल्म का हिस्सा बने हैं, जो जीवन के असल मायने को बताती है। आज जिस तरह से भाग दौड़ भरी जिंदगी मे लोग रिश्तों को भूलते जा रहे हैं, खुद के घर परिवार के लिए समय नहीं, बस पैसे की दौड़ में लगे हुए हैं और जीना भूल गए हैं। किस बात की रेस लगी हुई है, थोड़ा ठहरें, बस एक पल, खुद के बारे मे सोचें, जिंदगी खूबसूरत लगने लगेगी। जैकी श्रॉफ ने फिल्म में अपने किरदार को बखूबी जिया है। रजित कपूर, मोहन कपूर, दर्शन जरीवाला के अलावा फिल्म के बाकी कलाकारों का काम भी असरदार है।
फिल्म ‘लाइफ इज गुड’ आम मुंबइया फिल्मों जैसी नहीं है। ये ठहरकर देखने वाली फिल्म है। धूम धड़ाका, नोरा फतेही के देह प्रदर्शन और रीमिक्स गानों में उलझे हिंदी सिनेमा के लिए ये एक नई राह भी दिखाती है। फिल्म के निर्देशक अनंत महादेवन ने पहले भी सामाजिक विषयों पर तमाम कहानियों को बड़े ही संवेदनशील और रोचक तरीके से दर्शकों के सामने पेश किया है। चाहे उनकी फिल्म ‘मीसिंधुताई सकपाल’ हो, मशहूर स्वतंत्रता सेनानी पर बनाई फिल्म ‘गौरहरि दास्तां’ हो या ‘माईघाट’ व ‘बिटर स्वीट’ जैसी फिल्में हो। अनंत महादेवन की फिल्में व्यावसायिक दुनिया के लिए नहीं हैं। ये फिल्में भारतीय सिनेमा की धरोहर फिल्में हैं और इनमें ऐसा बहुत कुछ होता है जिसे दर्शक अपने साथ संजोकर रखना चाहता है। फिल्म ‘लाइफ इज गुड’ आपके नजदीकी सिनेमाघरों में पता नहीं पहुंचेगी कि नहीं लेकिन जब भी मौका मिले और समय मिले तो इसे देखें जरूर।