झुंझुनूं : सर्दी की दस्तक:रुई का बाजार गर्म, रजाइयों की मांग बढ़ी, इस बार महंगी खरीदनी होगी रजाइयां

झुंझुनूं : सर्दी की दस्तक के साथ ही बाजार में रूई की मांग बढ़ गई है। मांग बढ़ाने के साथ ही इनकी कीमतों में भी दस से पंद्रह प्रतिशत का इजाफा हुआ है। रुई प्रति किलो 250 रुपए के हिसाब से बिक रही है। रूइयों से भरी रजाइयों की कीमत पर भी रुई की बढ़ी कीमतों का असर पड़ा है। व्यवसायियों की माने तो हालांकि बाजार में 100 रुपए प्रति किलो से रूई मिलना शुरू हो जाती है, लेकिन बेहतर रजाइयां बनाने के लिए दो सौ से 250 सौ रुपए प्रति किलो की भी रुई मार्केट में है।

खरीदारों की फेरहिस्त में 250 रुपए प्रति किलो की दर से खरीद करने वाले भी शामिल हैं, लेकिन ज्यादातर लोग सौ रुपए प्रति किलो की दर से बिकने वाली रूइयां ही खरीद रहे हैं।

शहर के मण्डावा मोड़, फुटला बाजार, नेहरू बाजार, राणी सती रोड़ पर रुई की दुकानें है।

यह वह वो दुकानें जहां पर नई या पुरानी रूइयों से रजाइयां बनाई जाती हैं। हालांकि इसकी दुकानें अन्य जगहों पर भी हैं, लेकिन बनाने का काम ज्यादातर केवल यहीं पर किया जाता है।

दुकानदारों की माने तो लोग पुरानी रजाइयों की रूइयां निकलवाकर उन्हीं पुरानी रूई की रजाइयां बनवाने में भी खासी दिलचस्पी दिखा रहे हैं। व्यसायियों का मानना है कि जीएसटी के दायरे में आने से भी इसकी दर बढी है। कारण है कि अच्छी रूइयां एवं रूइयों से बनी रजाइयां हरियाणा, पंजाब, बीकानेर से मंगाई जा रही है।

खासकर पाली और पंजाब की रूई की गुणवत्ता में बेहतर होने के कारण ढाई तीन सौ रुपए प्रति किलो की दर से बिक रही है। इसके अलावा रजाइयां बनाने में प्रयुक्त होने वाले सामानों दरें भी बढ़ी है।

रजाइयों की कीमत रुइयों पर पर निर्भर

दुकानदारों का कहना है कि रजाइयां एक हजार से लेकर अधिकतम रेंज तक उपलब्ध है। कई लोग रूइयां खरीद कर रजाइयां बनवाते हैं तो वह फिर थोड़ी मंहगी पड़ जाती है। मसलन पचास रुपए प्रति किलो की दर से रूइयों की खरीद कर रजाइयां बनी तो इसकी दर कम रहेगी, लेकिन यह भी खरीदार पर ही यह निर्भर रहता है कि कितनी लंबी एवं चौड़ी रजाइयां बनवाना चाहता है। खरीदारों के हिसाब से भी बनी रजाइयां रहती है। इनकी दर भी रूइयों के हिसाब से रहती है।

बाजार में बढ़ी हलचल, कोविड-19 ने खत्म कर दिया था बाजार

बाजार का सन्नाटा टूटने से दुकानदार उत्साहित नजर आए। व्यसायियों की माने तो पिछले दो सालों के अंतराल में रजाइयों का कारोबार पूरी तरह से शून्य रहा। पहले से स्टॉक किया गया माल में काफी खराब हो गया। कुछ बचा तो भी वह केवल अपने रिश्तेदारों या घरवालों के काम में रजाइयां बनाने के लिए काम में आई। कारण सर्दियों के साथ दबे पांव आए कोविड-19 ने खरीदारों में दहशत भर दी थी। कारोबार बहुत कमजोर हुआ।

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