जयपुर : मल्ल्किार्जुन खड़गे के कांग्रेस राष्ट्रीय अध्यक्ष बनते ही राजस्थान के प्रभारी महासचिव अजय माकन ने इस्तीफा दे दिया है। माकन सहित सभी सीडब्ल्यूसी सदस्यों, महासचिवों, प्रभारियों ने भी इस्तीफे दिए हैं। अब खड़गे नए सिरे से इन पदों पर नियुक्तियां करेंगे। राजस्थान से सीडब्ल्यूसी सदस्य रघुवीर मीणा, पंजाब प्रभारी हरीश चौधरी, गुजरात प्रभारी रघु शर्मा, प्रभारी महासचिव भंवर जितेंद्र सिंह ने भी नए कांग्रेस अध्यक्ष को इस्तीफा सौंप दिया है।
कांग्रेस के संगठन महासचिव केसी वेणुगोपाल ने ट्वीट करके सभी सीडब्ल्यूसी सदस्यों, महासचिवों, प्रभारियों के नए अध्यक्ष को इस्तीफे देने की जानकारी दी है। राजस्थान प्रभारी अजय माकन का इस्तीफा भी इसी कारण हुआ है। अब नए सिरे से राज्यों के प्रभारियों की नियुक्ति होगी। माकन के राजस्थान प्रभारी पद से इस्तीफे के बाद अब नए प्रभारी के नामों को लेकर चर्चाएं शुरू हो गई हैं।
अब राजस्थान के प्रभारी महासचिव को लेकर सबसे ज्यादा उत्सुकता है। कांग्रेस अध्यक्ष अब किसी न्यूट्रल नेता को राजस्थान प्रभारी बना सकते हैं। अभी कुमारी शैलजा, अंबिका सोनी, संजय निरुपम और दीपेंद्र सिंह हुड्डा के नामों की चर्चा है।
शैलजा पहले भी राजस्थान में चुनावों के समय जिम्मेदारी संभाल चुकी है। उन्हें न्यूट्रल माना जाता है। अंबिका सोनी पहले प्रभारी रह चुकी हैं, उन्हें गहलोत का नजदीकी माना जाता है। संजय निरुपम संगठन चुनावों में राजस्थान के प्रदेश रिटर्निंग ऑफिसर रह चुके हैं, उन्हें भी न्यूट्रल माना जाता है। दीपेंद्र हुड्डा युवा हैं। उन्हें प्रियंका गांधी का नजदीकी माना जाता है। सचिन पायलट के भी नजदीकी हैं।
दो साल दो महीने प्रभारी रहे माकन
अजय माकन को अगस्त 2020 में अविनाश पांडे की जगह राजस्थान का प्रभारी महासचिव नियुक्त किया गया था। अविनाश पांडे को सचिन पायलट खेमे की शिकायत के बाद हटाया गया था। पांडे पर अशोक गहलोत खेमे का पक्ष लेने के आरोप लगते थे। सचिन पायलट खेमे की बगावत के बाद हुई सुलह में यह मुद्दा उठा था। पायलट खेमे से सुलह के सप्ताह भर बाद ही अविनाश पांडे को प्रभारी पद से हटाकर अजय माकन को राजस्थान का प्रभारी बनाया गया था।
माकन को राष्ट्रीय स्तर पर बड़ी जिम्मेदारी मिलना तय
अजय माकन को राष्ट्रीय स्तर पर बड़ी जिम्मेदारी मिलना तय माना जा रहा है। आज खड़गे के पदभार समारोह में माकन जिस तरह सक्रिय रहे और उनका भाषण करवाया गया, उससे इस बात के संकेत मिल रहे हैं कि उन्हें हाईकमान राष्ट्रीय स्तर पर जिम्मेदारी देगा। माकन के राजस्थान प्रभारी पद से इस्तीफा अकेले नहीं है। सभी प्रभारियों ने इस्तीफे दिए हैं। ऐसे में माकन का कद बरकरार रखे जाने के पूरे आसार हैं।
पायलट को सीएम बनाने के लिए विधायकों को कन्वींस करने के आरोप लगे
25 सितंबर को हुए सियासी बवाल के बाद अजय माकन पर अशोक गहलोत खेमे ने सचिन पायलट को मुख्यमंत्री बनवाने के लिए विधायकों को कन्वींस करने के आरोप लगाए थे। नए सीएम का फैसला हाईकमान पर छोड़ने का प्रस्ताव पारित करने के लिए 25 सितंबर को बुलाई गई विधायक दल की बैठक का गहलोत खेमे के विधायकों ने बहिष्कार किया था।
UDH मंत्री शांति धारीवाल के घर हुई गहलोत खेमे के विधायकों की बैठक में अजय माकन पर पक्षपात करने के आरोप लगे थे। धारीवाल ने प्रेस कॉन्फ्रेंस करके अजय माकन पर पक्षपात करने के आरोप लगाए थे। धारीवाल ने कहा था कि अजय माकन ने विधायकों को पायलट का नाम सीएम के लिए लेने के लिए कन्वींस किया, इस बात के उनके पास सबूत हैं।
माकन ने विधायक दल की बैठक के बहिष्कार को अनुशासनहीनता बताया था
25 सितंबर को हुए सियासी बवाल के वक्त मल्लिकार्जुन खड़गे और अजय माकन विधायक दल की बैठक में नए सीएम का फैसला हाईकमान पर छोड़ने के लिए एक लाइन का प्रस्ताव पारित करवाने के लिए ऑब्जर्वर बनकर आए थे। दोनों रात डेढ़ बजे तक सीएम हाउस पर विधायकों का इंतजार करते रहे, लेकिन गहलोत खेमे के विधायक नहीं गए थे।
अजय माकन ने अगले दिन 26 सितंबर को खुलकर कहा था कि विधायक दल की बैठक का बहिष्कार करना अनुशासनहीनता है। अजय माकन इसके बाद सीएम अशोक गहलोत से मिले बिना ही दिल्ली चले गए थे। अजय माकन ने सोनिया गांधी को इस पूरे सियासी बवाल पर रिपोर्ट दी। अजय माकन की इस रिपोर्ट के अधार पर धारीवाल, जलदाय मंत्री और सरकारी मुख्य सचेतक महेश जोशी और RTDC चेयरमैन धर्मेंद्र सिंह राठौड़ को नोटिस दिए गए थे, जिन पर अभी कार्रवाई पैंडिंग है।
नए प्रभारी के लिए गहलोत-पायलट खेमों के बीच तालेमल की चुनौती
राजस्थान में अब जो भी नेता नया प्रभारी बनकर आएगा। उसके सामने पहली चुनौती गहलोत और पायलट खेमों के बीच तालमेल की रहेगी। दोनों खेमों के बीच न्यूट्रल होकर काम करना और दोनों को साधकर रखना बड़ी चुनौती होगा।
राजस्थान में पिछले लंबे अरसे से जो भी प्रभारी रहे, उन पर पक्षपात के आरोप लगे हैं, ऐसे में नए प्रभारी के सामने खुद को न्यूट्रल रखना चुनौती होगी। बूथ से लेकर ब्लॉक, जिला लेवल तक खाली पड़े संगठन के पदों को जल्द से जल्द भरना भी नए प्रभारी के जिम्मे रहेगा।