खेतड़ी : खेतड़ी तहसील के बसई गांव से ढाई किलोमीटर दूरी पर जमालपुर गांव में बाबा रामेश्वर धाम मंदिर में सभी देवी देवताओं की प्राण प्रतिष्ठा है। जिसके चलते अलग से अपनी पहचान बना रखी है, साथ ही इस मंदिर की सबसे बड़ी ख्याती यह भी है कि यहां पर चढ़ावा नही लिया जाता है। मंदिर के ट्रस्ट द्वारा ही पूरे मंदिर की देखरेख की जाती है। मंदिर के पुजारी हनुमान दास ने बताया कि ब्रह्मलीन बाबा श्री रामेश्वर दास जी महाराज द्वारा संवत 2021 में स्थापित मंदिर अपने अतीत एवं वर्तमान की एक अनूठी मिशाल है। एक वृहद क्षेत्र में फैला यह मंदिर अपने अंत. में अनेक चमत्कार समेटे हुए है।
दो जिलों में फैला है मंदिर
यह मंदिर देश के दो राज्य हरियाणा व राजस्थान की सीमा पर इस प्रकार से स्थापित है कि इसका अग्र भाग तो राजस्थान में आता है जिसमें मुख्यत मंदिर की कृषि भूमि है और जहां सार्वजनिक रूप से प्रतिदिन आस-पास के क्षेत्र से करीब 150 गाये आती है। पशुओं के लिए चारे व पानी की भी पूरी व्यवस्था होती है, लेकिन मंदिर की कुछ इमारतें व साधुओं की कुटियाएं हरियाणा सीमा में आती है। इस मंदिर की जमीन में हरियाणा ब्राहमणवासनो की 247 कनाल, 17 मरला व राजस्थान के झुंझुनूं जिले के गांव जमालपुर की 49.1/ 4 बीघा जमीन है। इसमें कुछ बीघा जमीन खाली है, जिसमें पशु चरते है।
बाबा रामेश्वर दास एक महान संत हुए थे, जिन पर अन्नपूर्णा माता की विशेष कृपा थी। इनके मंदिर में किसी भी मूर्ति के सामने दान पत्र नहीं है। इसके अलावा मंदिर में जगह-जगह लिखा हुआ है कि मूर्तियों पर रूपया व पैसा नही चढ़ाए और न ही किसी को देवे। बाबा रामेश्वर दास द्वारा स्थापित किए गए इस भव्य मंदिर में हिंदू धर्म के सभी देवी-देवताओं की तस्वीरें व मूर्तियां लगी हुए है।
लोग बांधते हैं मन्नत का धागा
मंदिर परिसर में गणेश जी महाराज की प्रतिमा के ठीक सामने श्री महालक्ष्मी जी का भव्य मंदिर है, महालक्ष्मी जी के मंदिर के सामने हाथी की प्रतिमा है जो करीब 20 फीट लंबी, 17 फीट ऊंची व 8 फीट चौड़ी है। दूसरी तरफ नंदी की बड़ी मूर्ति लगी हुई है उसके सामने विशालकाय शिवलिंग है। जो अलग से अपनी पहचान बना हुआ है। दीपावली के दूसरे दिन यहां अन्नकूट का भोग लगाया जाता है। यहां मंदिर में दूर-दराज से आने वाले लोग धागा बांधकर मन्नत मांगते है तथा मन्नत पूरी होने पर खोलने के लिए भी आते है।
1958 में शुरू हुआ था निर्माण
बाबा रामेश्वर धाम में लगी सभी देवी-देवताओं की मूर्तियों की प्राण प्रतिस्ठा बाबा रामेश्वरदास ने अपने हाथों से करवाई थी। मंदिर का निर्माण 1958 में शुरू हुआ था, जिसमें मंदिर के अंदर सभी प्रकार के देवी-देवताओं के बारे में चरितार्थ भी किया गया। आश्रम में एक पीपल का ऐसा पेड़ है जिसके बारे में बाबा रामेश्वर दास कहते थे कि यह पेड़ सतयुग, द्वापर युग, त्रेता युग व कलयुग में भी यहीं विराजमान है। बाबा के मंदिर में लक्ष्मी माता की कृपा होने के कारण यहां चढ़ावा नहीं लिया जाता है। दीपावली के दिन महालक्ष्मी मंदिर के विशेष पूजा का आयोजन किया जाता है तथा दूर-दराज से लोग आकर यहां पूजा करते है। यहां ऐसी मान्यता है कि मंदिर में सच्चे मन से आने वाला व्यक्ति खाली हाथ नहीं जाता है तथा यहां आने से कष्ट भी दूर होते है।
दीवारों पर चित्रों के माध्यम से दी जाती है अच्छे व बुरे कर्म के जानकारी
मंदिर की दीवारों पर अनेक प्रकार की चित्रकारी कर मनुष्य द्वारा अच्छे व बुरे कर्म पर मिलने वाले फल की जानकारी भी दर्शाई गई है। इसमें एक धर्मराज का दरबार में जिसमें जैसी सेवा वैसा फल करने पर धर्मराज के दरबार में कैसा स्थान मिलता है। वहीं यमराज के दरबार में जैसी करनी वैसे भरनी के तहत मनुष्य द्वारा बुरे कर्म करने पर यमलोक में यमराज के दरबार में किस प्रकार का कष्ट दिया जाता है। उनका चित्रण कर मनुष्य को हमेशा अच्छे कर्म करने के लिए प्रेरित किया जाता है।