प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मंगलवार को भोपाल में कहा- ‘एक घर दो कानूनों से नहीं चल सकता। BJP यूनिफॉर्म सिविल कोड यानी UCC को लेकर भ्रम दूर करेगी… अगर तीन तलाक इस्लाम का जरूरी अंग है तो पाकिस्तान, इंडोनेशिया, कतर और बांग्लादेश में ये क्यों नहीं है?’
PM के इस बयान से दो बातें साफ हैं। पहली यह कि उनकी सरकार UCC पर कानून लाने की तैयारी में है और दूसरी यह कि इस मसले पर मुस्लिम आबादी ही सबसे बड़ी स्टेक होल्डर होगी।
लॉ कमीशन इस मुद्दे पर लोगों की राय ले रहा है। उत्तराखंड की BJP सरकार भी UCC लाने का ऐलान कर चुकी है। इस कवायद के बीच बड़ी चर्चा UCC में जनसंख्या नियंत्रण कानून को भी शामिल करने की है। ऐसे में सवाल उठ रहे हैं कि क्या वाकई कानून बनाकर देश की आबादी को नियंत्रित करना जरूरी है? कहीं ये सिर्फ चुनावी हथकंडा तो नहीं?
किसी समूह, राज्य या देश की प्रजनन दर 2.1 से कम होने पर आबादी घटने लगती है। यानी उस समूह या देश में मरने वालों की संख्या जन्म लेने वालों से कम हो जाती है। ऐसे में कुछ सालों के बाद देश के युवा आबादी बुजुर्ग होने लगती है और इनकी जगह लेने के लिए बच्चे कम हो जाता है। यानी उस समूह या देश की आबादी बूढ़ी हो जाती है।
इस वक्त भारतीय आबादी की प्रजनन दर 2.05 है। यानी आबादी अब बढ़ने की बजाय स्थिर हो गई है। भारत के 36 प्रदेशों में से 31 में प्रजनन दर 2.1 से भी कम है।
प्रजनन दर का मतलब है कि किसी समूह, राज्य या देश की हर महिला अपने जीवनकाल में औसतन कितने बच्चों को जन्म दे रही है। अगर किसी देश की प्रजनन दर 3 है, तो उस देश की महिलाएं अपने जीवनकाल में औसतन 3 बच्चों को जन्म दे रही हैं।
मुस्लिम बहुल प्रदेशों की भी प्रजनन दर 1.8 हुई
जम्मू-कश्मीर, केरल, पश्चिम बंगाल सहित जिन राज्यों में मुस्लिम आबादी 20% से ज्यादा है, वहां भी प्रजनन दर 1.8 से नीचे है। यानी इन मुस्लिम बहुल प्रदेशों में 10 महिलाएं अपने जीवनकाल में औसतन 18 बच्चों को जन्म दे रही हैं। मतलब एक महिला के औसतन दो से भी कम बच्चे। इसमें UP अपवाद है, जहां यह दर 2.4 है।
हिंदुओ से भी ज्यादा तेजी से घटी मुस्लिमों की प्रजनन दर
NFHS के आंकड़ों के मुताबिक देश के सभी धार्मिक समूहों में प्रजनन दर में गिरावट आई है। पिछले 29 सालों में यानी 1992 से 2021 के बीच मुस्लिमों की प्रजनन दर में सबसे ज्यादा 46.5% की गिरावट देखने को मिली है। वहीं हिंदुओं में 41.2% की गिरावट आई है।
1992-93 की NFHS-1 की रिपोर्ट में मुस्लिमों में प्रजनन दर 4.41 थी जो घटकर अब 2.36 हो गई है। वहीं हिंदुओं की 3.30 थी जो घटकर 1.94 हो गई है।
धर्म से नहीं, शिक्षा और आर्थिक हालात पर निर्भर प्रजनन दर
प्रजनन दर का सीधा संबंध धर्म से नहीं बल्कि, शिक्षा, सामाजिक-आर्थिक स्थिति, स्वास्थ्य सुविधा से है। 2015-16 के NFHS-4 के आंकड़ों में भी दिखता है। इसमें साफ देखा गया है कि कम आय वाले लोगों में प्रजनन दर 3.2 है, वहीं अमीरों में यह 1.5 है। इसी तरह अपरकास्ट की प्रजनन दर 1.9, बैकवर्ड क्लास की 2.2, अनुसूचित जाति की 2.3, अनुसूचित जनजाति की 2.5, मुस्लिमों की 2.6 है।
चीन से सीखने चाहिए जनसंख्या नियंत्रण के सबक…
चीन जनसंख्या नियंत्रण पर कानून बनाने वाले सबसे पहले देशों में है। चीन ने 1979 में एक बच्चे का कानून बनाया जब वहां आबादी तेजी से बढ़ रही थी। लेकिन अब दुनिया की सबसे ज्यादा आबादी वाला ये देश जन्म-दर में हो रही अत्यधिक कमी से जूझने लगा है। लैंसेट की रिपोर्ट बताती है कि सदी के आखिर तक चीन की आबादी 140 करोड़ से घटकर करीब 70 करोड़ रह जाएगी।
चीन के राष्ट्रीय सांख्यिकी ब्यूरो के अनुसार देश में जनसंख्या का संकट 2022 में गहरा गया क्योंकि 1961 के बाद पहली बार जन्म दर तेजी से कम होने की वजह से जनसंख्या में कमी दर्ज की गई है। चीन में 2021 की तुलना में 2022 के अंत में आबादी 8.50 लाख कम रही।
ऐसी आशंका है कि चीन एक ‘डेमोग्राफिक टाइम बॉम्ब’ बन गया है। यहां काम करने वालों की संख्या तेजी से घटती जा रही है और बुजुर्ग ज्यादा होने लगे हैं। चीन ने बुजुर्गों की बढ़ती आबादी से चिंतित होकर साल 2015 में एक बच्चे की नीति बंद कर दी और दो बच्चे पैदा करने की अनुमति दे दी।
इससे जन्म-दर में तो थोड़ा इजाफा हुआ, लेकिन लंबे समय में ये योजना बढ़ती बुजुर्ग आबादी को रोकने में पूरी तरह सफल नहीं हो सकी। यही वजह है कि अब चीन ने तीन बच्चे पैदा करने वालों को तोहफा देना शुरू कर दिया है।