मिर्ज़ा मोहम्मद ताराजाय(ओलोग बेग) : एक बादशाह जो एक महान वैज्ञानिक था

मिर्ज़ा मोहम्मद ताराजाय(ओलोग बेग) : तैमूर को कौन नहीं जानता विश्व के बड़े योद्धाओं में उनकी गिनती होती है तैमूर अपनी राजधानी उज़्बेकिस्तान के शहर समरकंद से निकले उद्देश्य विश्व पर विजय पाना था अभी वह ईरान के शहर सुल्तानिया में थे कि 22 मार्च सन् 1394 को उनके बेटे शाहरुख और बहू गोहर शाद के यहां बेटे का जन्म हुआ जिसका नाम मिर्ज़ा मोहम्मद ताराजाय ( तारिक ) बेग रखा गया दादा ने सुना बड़ी खुशी हुई और कहा कि मेरा यह पोता ओलोग बेग (यानी महान सरदार ) होगा उसके बाद से पोता अपने दादा की दी हुई उपाधि से मशहूर हो गया
ओलोग बेग का बचपन दादा के साथ विभिन्न देशों में गुजरा ईरान ईराक तुर्की और हिंदुस्तान जहां जहां दादा गए अपने परिवार को साथ में रखा जाहिर है ओलोग बेग भी परिवार का एक हिस्सा थे।
अभी ओलोग बेग मात्र 16 वर्ष के थे कि दादा का इंतकाल हो गया पिता शाहरुख बादशाह बनें लेकिन पिता शाहरुख ने कुछ प्रशासनिक कारणों से अपनी राजधानी समरकंद से बदल कर हेरात शहर ( अफगानिस्तान ) में ट्रांसफर कर दी और ओलोग बेग को समरकंद का गवर्नर बना दिया दो साल बाद उन्हें तरक्की देकर पूरे मध्य एशिया का गवर्नर बना दिया गया
ओलोग बेग एक बड़े विद्वान थे अरबी , फारसी , तुर्किश और मंगोलियन भाषा के माहिर थे और चीनी भाषा का भी थोड़ा बहुत ज्ञान रखते थे कला व संस्कृति से विशेष लगाव था।
खगोलशास्त्र व गणित विशेष कर Trigonometry और spherical geometry में रुचि रखते थे इन विषयों में किताबें भी लिखी इन्होंने एक साल में कितने दिन घंटे मिनट और सेकंड होते हैं इसका सही अंदाजा लगाया जो माडर्न साइनस से मात्र तीन सेकेंड के अंतर के साथ था।
खगोलशास्त्र में उस समय तक Ptolemy और Sufi ( अब्दुर्रहमान अल सूफी ) का दबदबा था लोग इन्हीं दोनों को पढ़ते और उनकी शिक्षा पर चर्चा करते थे परंतु बाद में इनके साथ एक नाम और जुड़ गया और वह था ओलोग बेग का ।तारों के बारे में इनकी दी हुई जानकारी पटोलिमी और सूफ़ी से ज्यादा सटीक थी।
जब एक शासक इतना बड़ा ज्ञानी हो तो उसका असर पूरे देश पर पड़ता है ओलोग बेग के समय में विश्व के बड़े आलिम , शायर, कलाकार और वैज्ञानिक समरकंद में इकट्ठा हो गए थे और समरकंद को विश्व की सांस्कृतिक राजधानी का दर्जा प्राप्त हो गया था।
समरकंद में एक क्षेत्र है जिस का नाम रेगिस्तान है वहां इनके दादा तैमूरलंग का महल था पास में ही इनकी दादी की बनाई हुई खूबसूरत मस्जिद थी मस्जिद के पास ही इन्होंने एक मदरसा बनवाया था जो उस समय में विज्ञान व गणित की शिक्षा के लिए मशहूर था जाने माने तुर्क वैज्ञानिक अली कोशोजी भी इसी मदरसे के पढ़े हुए थे आज भी मदरसा मौजूद है उज़्बेकिस्तान की यात्रा करने वाले लोग उसे देखने जाते हैं।
सन् 1424 से 1429 के बीच इन्होंने एक observatory बनवाई जो उस समय में विश्व की सबसे शानदार observatory थी आज वह मौजूद नहीं है पर उसके खंडर मौजूद हैं जिसे सोवियत यूनियन के समय बड़ी खूबसूरती से घेर दिया गया है।
ओलोग बेग के कार्यों की सराहना पूरे विश्व ने की है उज़्बेकिस्तान के वह हीरो हैं ही साथ ही तुर्की व रूस भी उनके नाम पर डाक टिकट जारी कर चुके हैं जर्मन खगोलशास्त्री Johann Heinnch von madler ने सन् 1830 में पहली बार चांद का नक्शा तैयार किया तो उसमें एक करेटर का नाम Ulugh Beigh crater रखा जो खगोलशास्त्र में ओलोग बेग के कार्यों का एतराफ था।
27 अक्तूबर 1449 को हज के सफर पर जाते हुए इनकी हत्या कर दी गई उस समय यह 55 वर्ष के थे इनकी लाश समरकंद लाई गई और दादा तैमूरलंग की कबर के पास ही इन्हें दफनाया गया।
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