अलवर : महाराजा, जिन्होंने सबसे महंगी कार रॉल्स रॉयस से उठवाया कचरा:कॉलेज के लिए दे दिया अपना राजमहल, पेरिस में मौत, आज भी रहस्य-हादसा या हत्या

अलवर : राजस्थान के एक महाराजा ने अंग्रेजों से अपने अपमान का बदला लेने के लिए दुनिया की सबसे लग्जरी और महंगी कारों में शुमार 5 रॉल्स रॉयस खरीदी। खरीदने के बाद उन्होंने इन गाड़ियों को हाथ तक नहीं लगाया। बल्कि नगरपालिका को वो पांचों रॉल्स रॉयस सौंप दी और आदेश दिए- कल से शहर का कचरा इन गाड़ियों में उठना चाहिए।

हम बात कर रहे हैं अलवर के पूर्व महाराजा जय सिंह प्रभाकर की, जिनकी आज जयंती है। जय सिंह प्रभाकर से जुड़े कई किस्से हैं, जो अपने आप में अनोखे हैं-

  • उन्होंने देश के सबसे बड़े ज्योतिष को बिना किसी जुर्म के गिरफ्तार कर लिया, जिनसे मिलने के लिए बड़े-बड़े राजाओं को भी अपॉइंटमेंट लेना पड़ता था।
  • उनके पास एक ऐसी कार थी, जो दुनिया में इकलौती थी। कार बनने के बाद उसकी डिजाइन और डाइज को नष्ट कर दिया गया, ताकि उसी डिजाइन की कार कोई और न बना सके।
  • अलवर में कॉलेज की जरूरत थी और कोई बिल्डिंग नहीं मिली तो जयसिंह प्रभाकर ने अपना महल ही दे दिया और खुद गेस्ट हाउस में रहने चले गए।
  • उनकी मौत भी आज तक रहस्य है, एक पक्ष कहता है कि पेरिस में सीढ़ियों से गिरने से उनकी मौत हो गई तो एक पक्ष का कहना है कि स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेने के कारण अंग्रेजी हुकुमत ने उनकी हत्या करा दी।

अलवर महाराजा जयसिंह से जुड़े हर किस्से का सच जानने के लिए भास्कर टीम अलवर में उन्हीं के पड़पौत्र और अलवर के पूर्व महाराज भंवर जितेंद्र सिंह से मिलने पहुंची। सिंह कांग्रेस के बड़े नेता और नॉर्थ ईस्ट राज्यों के प्रभारी भी हैं।

उन्हीं की जुबानी से जानिए अलवर के पूर्व महाराजा जयसिंह प्रभाकर से जुड़े किस्से और उनका सच…

महाराजा जय सिंह के लिए कहा जाता है कि वे लग्जरी कारों को काफी शौकीन थे।
महाराजा जय सिंह के लिए कहा जाता है कि वे लग्जरी कारों को काफी शौकीन थे।

‘रॉल्स रॉयस’ शोरूम के दरबान ने बाहर निकाल दिया था

‘साल 1910-12 के आस-पास की बात है। महाराजा जयसिंह इंग्लैंड गए थे। उन्हें लग्जरी कारों का शौक था। इसी के चलते एक दिन वो सामान्य कपड़ों में लंदन शहर के ‘रॉल्स रॉयस’ कंपनी के शोरूम में कार खरीदने चले गए। उस समय के राजा-महाराजाओं में ‘रॉल्स रॉयस’ कार खरीदने को लेकर काफी क्रेज था। ब्रिटिशर्स भी इसे शान की सवारी मानते थे।

महाराजा जयसिंह को साधारण कपड़ों में देखकर ‘रॉल्स रॉयस’ शोरूम के दरबान और सेल्समैन ने उन्हें ‘गरीब भारतीय’ समझा। सोचा- ये क्या कार खरीदेगा? सेल्समैन और दरबान ने उन्हें शोरूम से निकलने के लिए कह दिया।

महाराज जयसिंह शोरूम से तो बाहर आ गए, लेकिन उसी वक्त उन्होंने इस अपमान का बदला लेने की ठान ली। वे वापस होटल गए और महाराजा वाली रॉयल पोशाक पहनी। शाही लवाजमे को तैयार रहने का आदेश दिया। इसके बाद ‘रॉल्स रॉयस’ शोरूम में शाही मैसेज करवाया कि अलवर के महाराजा जयसिंह प्रभाकर कार खरीदने आ रहे हैं। मैसेज मिलते ही ‘रॉल्स रॉयस’ शोरूम के स्टाफ ने उनके स्वागत में रेड कारपेट बिछा दिया।

महाराजा जयसिंह शाही लवाजमे के साथ ‘रॉल्स रॉयस’ शोरूम में पहुंचे तो उनका रेड कारपेट बिछाकर स्वागत किया गया। खूब खातिरदारी की गई। महाराजा जयसिंह ने किसी से अपमान की बात नहीं बताई और वहां 5 रॉल्स रॉयस कार के ऑर्डर दे दिए। ये कार उस समय दुनिया में सबसे महंगी थी। एक साथ 5 रॉल्स रॉयस कार के ऑर्डर से शोरूम का स्टाफ और अधिकारी भी हैरान रह गए थे। ऑर्डर देने के बाद डिलीवरी अलवर पहुंचाने का निर्देश देते हुए महाराजा जय सिंह वहां से चले आए।

जब ये लग्जरी कारें कचरा गाड़ी में बदल गई तो अलवर शहर की तब की नगरपालिका को निर्देश दिए कि अब से अलवर शहर का सारा कूड़ा-कचरा इन्हीं गाड़ियों में उठाया जाएगा। हुक्म की तामील तुरंत हुई और अगले पल से ही ब्रिटिशर्स की शान दुनिया की सबसे महंगी कारों में शामिल रॉल्स रॉयल कचरा उठाने वाली गाड़ी बन गई।

महाराजा जयसिंह द्वारा ‘रॉल्स रॉयस’ में कचरा उठवाने की बात आग की तरह फैली और अंग्रेज अफसरों तक पहुंच गई। उन्हीं के जरिए ‘रॉल्स रॉयस’ कंपनी को भी पता चला कि भारत का एक महाराज उनकी शान को मिट्‌टी में मिला रहा है। कई महीनों तक वायसराय और दूर अंग्रेज अधिकारियों ने महाराजा जयसिंह को समझाने का प्रयास किया लेकिन वो नहीं माने।

आखिर में ‘रॉल्स रॉयस’ कंपनी के अधिकारी भारत पहुंचे। उन्हें जब इसके पीछे की पूरी कहानी का पता चला तो न सिर्फ उन्होंने महाराजा जय सिंह से लिखित में माफी मांगी बल्कि कचरा उठा रही पांचों कारों को वापस लेते हुए पांच नई कारें देने का वायदा दिया।

आखिर में महाराजा माने और उन्होंने पांचों ‘रॉल्स रॉयस’ वापस कर दी। वहीं बदले में नई कारें लेने से भी मना कर दिया। इसके बाद कभी भी अलवर शहर में रॉल्स रॉयस कार नहीं खरीदी गई। असल में महराजा जयसिंह अपने अपमान का बदला लेने और स्वाभिमान को ऊंचा रखने के लिए ‘रॉल्स रॉयस’ को सबक सिखाना चाहते थे।’

दावा किया जाता है कि ये तस्वीर उस समय की है, जब रोल्स रॉयस से कचरा उठवाया जाता है, लेकिन भास्कर की ग्राउंड रिपोर्ट में सामने आया कि ये तस्वीर फेक है। असल में उस समय की कोई भी तस्वीर उपलब्ध नहीं है।
दावा किया जाता है कि ये तस्वीर उस समय की है, जब रोल्स रॉयस से कचरा उठवाया जाता है, लेकिन भास्कर की ग्राउंड रिपोर्ट में सामने आया कि ये तस्वीर फेक है। असल में उस समय की कोई भी तस्वीर उपलब्ध नहीं है।

दुनिया की इकलौती बग्गी कार, जो दुबारा कभी नहीं बनी

महाराजा जयसिंह ने रॉल्स रॉयस वाली घटना के बाद स्पानॉविज़ा और लेनचेस्टर कार भी खरीदी। इसमें भी लेनचेस्टर कार से जुड़ी रोचक कहानी है। लेनचेस्टर दुनिया में एक ही कार है, जो अलवर के महाराजा ने खरीदी थी। इतना ही नहीं, ये गाड़ी डिजाइन भी अलवर में ही हुई थी।

इसकी खासियत ये है कि इसके आगे का हिस्सा कार की तरह है और पीछे का हिस्सा बग्गी की तरह है। इसका डिजाइन महाराजा जयसिंह ने खुद ही तैयार कराया था। डिजाइन पूरी होने के बाद लेनचेस्टर मोटर कंपनी ने इसे बनाया। बनाने के बाद ये शर्त राखी गई थी कि इस कार की डिजाइन और डाइज को नष्ट कर दिया जाएगा। वहीं दुबारा ऐसी गाड़ी नहीं बनाई जायेगी। आज भी वो गाड़ी अलवर महल में देश की शान के रूप में मौजूद है।

लेनचेस्टर कार में शाही लवाजमे के साथ सवार महाराजा जय सिंह। ये दुनिया की इकलौती कार थी, जिसका आगे से डिजाइन कार और पीछे से बग्गी की तरह था।
लेनचेस्टर कार में शाही लवाजमे के साथ सवार महाराजा जय सिंह। ये दुनिया की इकलौती कार थी, जिसका आगे से डिजाइन कार और पीछे से बग्गी की तरह था।

अपने महल में बनवाया कॉलेज, खुद गेस्ट हाउस में रहने लगे

महाराजा जयसिंह बच्चों की शिक्षा को लेकर बड़ा ध्यान देते थे। उन्होंने अलवर के मुख्य महल ‘विनय विलास पैलेस’ को कॉलेज बना दिया। उस समय पूरे राजस्थान में ही गिने चुने कॉलेज थे। महाराजा शुरू से ही अलवर में कॉलेज बनवाना चाहते थे, लेकिन कहीं कोई ऐसी बिल्डिंग नहीं थी कि जहां पर बड़ा कॉलेज संचालित हो सकें।

इस पर उन्होंने अपने महल ‘विनय विलास पैलेस’ को खाली कर दिया और वहां राज ऋषि कॉलेज बनवा दिया। वो खुद रहने के लिए गेस्ट हाउस में चले गए। ‘विनय विलास पैलेस’ में आज भी राज ऋषि कॉलेज चल रहा है। इसके अलावा भी बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी और अलीगढ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में भी अलवर महाराजा जयसिंह का बहुत बड़ा योगदान रहा है। इन दोनों ही यूनिवर्सिटी में कई बिल्डिंग्स उन्होंने बनवाई थी।

बच्चों की शिक्षा के लिए महाराज जय सिंह ने स्कूल-कॉलेज बनवाए। वे हमेशा एजुकेशन और सामाजिक कार्यों से जुड़े रहे।
बच्चों की शिक्षा के लिए महाराज जय सिंह ने स्कूल-कॉलेज बनवाए। वे हमेशा एजुकेशन और सामाजिक कार्यों से जुड़े रहे।

सबका भविष्य बताने वाले नहीं जान पाए अपना भाग्य

एक बड़े ज्योतिषि थे, जिनका नाम मुझे याद नहीं आ रहा। वे इतने बड़े ज्योतिषि थे कि बड़े-बड़े राजा-महाराजा और अंग्रेज अधिकारियों को भी उनसे मिलने के लिए अपॉइंटमेंट लेना पड़ता था। महाराजा जयसिंह को भी किसी ने बताया कि एक बड़े ज्योतिषि हैं, जो सबका भविष्य जानते हैं।

महाराज जयसिंह ने उनसे मिलने की इच्छा जताई। महाराजा जयसिंह के निर्देश पर ज्योतिषि से संपर्क किया गया और उन्हें अलवर दरबार द्वारा आमंत्रण भेजा गया। काफी समय बाद उन्होंने आमंत्रण स्वीकारा और शाही ट्रेन से अलवर पहुंचे। यहां जैसे ही वो रेलवे स्टेशन पर उतरे तो अलवर की शाही सेना ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया और जेल भेज दिया।

ज्योतिषि को बिना किसी जुर्म के गिरफ्तार करने की खबर दूसरे राजाओं और अंग्रेज अफसरों तक पहुंची। उन्होंने ज्योतिषी को रिहा करने की डिमांड की, लेकिन महाराजा जयसिंह नहीं माने। एक दिन उन्होंने ज्योतिषी को जेल से दरबार में बुलवाया।

ज्योतिषी से पूछा- आप सबका भविष्य बताते हैं, आपको अपना भाग्य क्यों पता नहीं चला? आप क्यों पता नहीं लगा पाए कि अलवर में आपको गिरफ्तार किया जाएगा। ज्योतिषि के पास इस सवाल का कोई जवाब नहीं था। बहरहाल, इसके बाद ज्योतिषी को रिहा कर दिया गया।

अलवर के रेलवे स्टेशन पर अपने लवाजमे के साथ महाराजा जय सिंह।
अलवर के रेलवे स्टेशन पर अपने लवाजमे के साथ महाराजा जय सिंह।

नियम था कि बाघ का शिकार राजा और बाघिन का शिकार रानी करती

उन दिनों सरिस्का के जंगल में कई जगहों पर महाराजा जयसिंह ने शिकारगाह बनवाई थी। तब ये भी नियम था कि बाघिन का शिकार राजकुमारियां और महारानी ही करेंगी।

वहीं बाघ का शिकार राजकुमार और राजा-महाराजा करेंगे। एक बार दरबार में सूचना मिली कि तारूंडा क्षेत्र में बाघिन है। महाराजा जय सिंह की पत्नी महारानी प्रभात कुमारी शिकार के लिए गईं।

उन्होंने शिकार किया तो पता चला कि वो बाघिन नहीं बाघ था। इसके लिए तब गलत सूचना देने वाले हाकिम आखेट नसीब खां से स्पष्टीकरण मांगा गया था।

सरिस्का में बाघ का अंतिम शिकार राजा जयसिंह ने 29 सितंबर 1930 को निदानी के जंगल में किया था। इससे पहले जनवरी 1930 में गंगोडी में जयसिंह ने टाइगर का शिकार किया था।
सरिस्का में बाघ का अंतिम शिकार राजा जयसिंह ने 29 सितंबर 1930 को निदानी के जंगल में किया था। इससे पहले जनवरी 1930 में गंगोडी में जयसिंह ने टाइगर का शिकार किया था।

स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेने के कारण पेरिस में हत्या!

भंवर जितेंद्र सिंह ने बताया कि महाराजा जयसिंह हमेशा ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ रहे थे। जब देश में स्वतंत्रता संग्राम चल रहा था तो वो उन गिने-चुने महाराजाओं में से थे, जिन्होंने ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ आजादी का झंडा बुलंद किया।

यहीं कारण था कि उन्होंने गोलमेज सम्मेलन (राउंड टेबल कॉन्फ्रेंस) में महात्मा गांधी के साथ भाग लिया। गोलमेज सम्मलेन की उनकी स्पीच ने अंग्रेजों को हिला कर रख दिया। ब्रिटिश शासन को ये नागवार गुजरा कि एक महाराजा हमारी खिलाफत कर रहा है।

महाराजा जयसिंह को साल 1933 में देश निकाला दे दिया गया और बाद में फ्रांस भेज दिया गया। जहां पेरिस में 19 मई 1937 को उनकी हत्या कर दी गई। हालांकि तब ब्रिटिश शासन ने ये कहा था कि वो वहां होटल की सीढ़ियों से फिसल गए थे।

महाराजा जय सिंह ने गोलमेज सम्मेलन (राउंड टेबल कॉन्फ्रेंस) में महात्मा गांधी के साथ भाग लिया। गोलमेज सम्मलेन की उनकी स्पीच ने अंग्रेजों को हिला कर रख दिया।
महाराजा जय सिंह ने गोलमेज सम्मेलन (राउंड टेबल कॉन्फ्रेंस) में महात्मा गांधी के साथ भाग लिया। गोलमेज सम्मलेन की उनकी स्पीच ने अंग्रेजों को हिला कर रख दिया।

इसलिए आज भी याद किए जाते हैं महाराजा जयसिंह

– महाराजा जयसिंह ने 100 से अधिक कानूनों का निर्माण किया, 1908 में हिंदी को राज्य भाषा बनाया। 1920 में प्रशासनिक जागृति के लिए ग्राम पंचायतों की स्थापना, न्याय पालिका को कार्यपालिका से पूर्ण प्रथम कर 1928 में अलवर राज्य में उच्च न्यायालय की स्थापना की।

-महाराजा जयसिंह ने साल 1911 में वन्य जीव हिंसा को राज्य में प्रतिबंधित किया। 1918 में ‘सरिस्का वैली’ का निर्माण कराया।

– सिंचाई के लिए जयसमंद, प्रेमसिन्धु, मंगलसर, मानसरोवर, विजय सागर एवं हंस सरोवर सहित 117 बांधों का निर्माण किया गया।

– राजऋषि कॉलेज की स्थापना की। निशुल्क शिक्षा और सैनिक शिक्षा की शुरुआत की गई। 1 अक्टूबर 1930 को राजर्षि कॉलेज की स्थापना की गई।

– आधुनिक चिकित्सा सुविधाओं से युक्त अलेक्जेंडर हॉस्पिटल को स्थापित किया गया।

महाराजा जयसिंह ने 100 से अधिक कानूनों का निर्माण किया, 1908 में हिंदी को राज्य भाषा बनाया।
महाराजा जयसिंह ने 100 से अधिक कानूनों का निर्माण किया, 1908 में हिंदी को राज्य भाषा बनाया।

कुरीतियों के खिलाफ कानून

महराजा जयसिंह ने 1920 में राज्य में बाल विवाह, बेमेल विवाह व मृत्यु भोज पर पाबंदी लगाई। 1917 में 16 वर्ष से कम आयु के बच्चों को मादक पदार्थों के सेवन पर प्रतिबंध लगाया।

समाज में शांति के लिए 1928 में अलवर कन्वर्जन एक्ट बनाया। इसके तहत धर्म परिवर्तन पर पाबंदी लगाई गई। राज्य में अनाज, घी आदि सभी प्रकार की भोजन सामग्री शुद्ध रूप में उपलब्ध कराने के लिए 1928 में खाद्य पदार्थों के नियम प्रचलित किए।

महाराजा जय सिंह के जीवन से जुड़ी ये तस्वीरें भी देखें…

अलवर के महाराजा जयसिंह की उनकी शादी के समय दूल्हे की पोशाक और सेहरे में खींची गई तस्वीर।
अलवर के महाराजा जयसिंह की उनकी शादी के समय दूल्हे की पोशाक और सेहरे में खींची गई तस्वीर।
अलवर के महाराजा जयसिंह की हाथी पर सवार होकर पूरे शाही लवाजमे से निकासी निकलती थी।
अलवर के महाराजा जयसिंह की हाथी पर सवार होकर पूरे शाही लवाजमे से निकासी निकलती थी।
अलवर के महाराजा जयसिंह के पास स्पानॉविज़ा और लेनचेस्टर कार भी थी।
अलवर के महाराजा जयसिंह के पास स्पानॉविज़ा और लेनचेस्टर कार भी थी।
स्पानॉविज़ा और लेनचेस्टर कार के अलावा भी अलवर के महाराजा जयसिंह के पास कई लग्जरी कारों का कलेक्शन था।
स्पानॉविज़ा और लेनचेस्टर कार के अलावा भी अलवर के महाराजा जयसिंह के पास कई लग्जरी कारों का कलेक्शन था।
हाथी पर बैठे अलवर के महाराजा जयसिंह प्रभाकर अपने स्टेट अलवर की शाही सेना के साथ।
हाथी पर बैठे अलवर के महाराजा जयसिंह प्रभाकर अपने स्टेट अलवर की शाही सेना के साथ।
अपने कई शाही मित्रों जिनमें पटियाला महाराजा और झालावाड़ राज राणा के साथ अलवर के महाराजा जयसिंह प्रभाकर की ग्रुप फोटो। झालावाड़ के राजराणा और पटियाला के महाराजा अलवर महाराजा जयसिंह के काफी करीबी थे।
अपने कई शाही मित्रों जिनमें पटियाला महाराजा और झालावाड़ राज राणा के साथ अलवर के महाराजा जयसिंह प्रभाकर की ग्रुप फोटो। झालावाड़ के राजराणा और पटियाला के महाराजा अलवर महाराजा जयसिंह के काफी करीबी थे।
साल 1928 में अलवर में जय कृष्णा क्लब के शिलान्यास के मौके पर आयोजित समारोह में महाराजा जयसिंह प्रभाकर भरतपुर के महाराजा किशन सिंह जी व अन्य के साथ।
साल 1928 में अलवर में जय कृष्णा क्लब के शिलान्यास के मौके पर आयोजित समारोह में महाराजा जयसिंह प्रभाकर भरतपुर के महाराजा किशन सिंह जी व अन्य के साथ।
साल 1915 में अलवर स्टेट की क्रिकेट टीम ने एक मैच में पारसी जिमखाना बॉम्बे की क्रिकेट टीम को 7 रन से हरा दिया था। इसके बाद विनिंग सेरेमनी में दोनों टीम अलवर के महाराजा जयसिंह प्रभाकर के साथ। दांये में पारसी जिमखाना बॉम्बे की क्रिकेट टीम और बांये में अलवर स्टेट की क्रिकेट टीम।

साल 1915 में अलवर स्टेट की क्रिकेट टीम ने एक मैच में पारसी जिमखाना बॉम्बे की क्रिकेट टीम को 7 रन से हरा दिया था। इसके बाद विनिंग सेरेमनी में दोनों टीम अलवर के महाराजा जयसिंह प्रभाकर के साथ। दांये में पारसी जिमखाना बॉम्बे की क्रिकेट टीम और बांये में अलवर स्टेट की क्रिकेट टीम।

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