जोधपुर : मेहरानगढ़ फोर्ट और मंडोर उद्यान से मुझे सिक्योरिटी गार्ड ने भिखारी कहकर भगा दिया। अशोक उद्यान में शाम 4 बजे तक मैं गुमसुम बैठा रहा। फिर हिम्मत जुटाकर स्टैच्यू बन गार्डन के बाहर खड़ा हो गया। शाम 6 बजे आंधी शुरू हो गई, बरसात आने लगी। मैं बिल्कुल नहीं हिला। रात 8 बजे तक बिना हिले खड़ा रहा। मैंने खुद से कहा- मैं हिला तो मेरा सपना टूट जाएगा।
ये कहना है जोधपुर के स्टैच्यू आर्टिस्ट अर्जुन प्रजापति (23) उर्फ गोल्डी जोधपुर का। अर्जुन को जोधपुर रेलवे स्टेशन पर सेल्फी पॉइंट के पास गोल्डन रंग के हैट, कोट-पैंट, जूते, ग्लव्ज और रंगीन चश्मा लगाए घंटों एक ही पॉजिशन में खड़े देखा जा सकता है।
विदेशों में इस आर्ट को पसंद किया जाता है, लेकिन जोधपुर में अर्जुन ने कई बार लोगों से भिखारी और जोकर जैसे शब्द सुने। वे सुनकर अनसुना कर देते हैं।
स्टैच्यू मैन अर्जुन प्रजापति का कैसा रहा सफर…
मैं जोधपुर की लूणी तहसील के राजौर गांव का हूं। गांव की आबादी करीब 900 है। लूणी स्टेशन से मेरा गांव 7 किलोमीटर दूर है। पिता व बड़ा भाई मिस्त्री का काम करते हैं। मां हाउसवाइफ है। दो बहनों की शादी हो चुकी है। मैं तीन महीने पहले तक मजदूरी करता था। फिर स्टैच्यू आर्ट के बारे में जाना और यह काम शुरू कर दिया।
अर्जुन ने बताया- यूट्यूब पर एक वीडियो देखकर मेरी रुचि बढ़ी। इस आर्ट को दिखाने के लिए गांव से जोधपुर स्टेशन जाता तो माता-पिता सोचते कि किसी फैक्ट्री में जॉब लग गई। उन्हें नहीं पता कि स्टैच्यू क्या बला है। अब रोजाना 700 रुपए तक कमा लाता हूं।
जहां चोर समझकर पकड़ा, वहीं माला पहनाकर सम्मान किया
अर्जुन ने बताया- जोधपुर स्टेशन पर स्टैच्यू बनकर खड़े होना आसान काम नहीं था। जीआरपी ने खड़े होने से मना किया तो मैं चला गया। दूसरे दिन फिर खड़ा हो गया। इसके बाद संदिग्ध चोर समझकर पकड़ लिया। पूछताछ की और हिदायत दी कि यहां आकर खड़ा न होऊं। कहा कि यहां कॉमर्शियल एक्टिविटी की इजाजत नहीं है। मैं जिद पर अड़ा रहा। रोज आकर खड़ा हो जाता। एक रेलवे अधिकारी अजीत खान ने स्टेशन के बाहर सेल्फी पॉइंट के पास खड़े होने की इजाजत दे दी।
पर्यावरण दिवस पर 5 जून को आर्टिस्ट अर्जुन प्रजापति को रेलवे स्टेशन में स्टेशन मास्टर व कर्मचारियों ने माला पहनाकर सम्मानित किया। उन्होंने बताया- मैंने सोशल मीडिया पर एक वीडियो बनाकर डाला था जिसमें प्लास्टिक बैग का इस्तेमाल न करने की बात कही थी। इस वीडियो को 7 दिन में 15 लाख लोगों ने देखा। रेलवे की स्वच्छता मुहिम को आगे बढ़ाने के प्रयास के तौर पर मेरा सम्मान किया गया।
अब स्टेशन पर इज्जत मिलती है। जहां से चोर समझकर निकाला था, वहीं सम्मान हुआ।
लोग पागल और भिखारी कहते हैं, रिएक्ट नहीं करता
अर्जुन ने बताया- लोगों को लगता है कि मैं अलग तरीके से भीख मांगता हूं। आने-जाने वाले कुछ लोग मुझे पागल, भिखारी, जोकर, मसखरा कहकर हंसी उड़ाते हैं। कुछ लोग तारीफ करते हैं। कुछ माइकल जैक्सन कहते हैं। मैं उनकी बातों पर रिएक्ट नहीं करता।
मेरा सपना अलग पहचान बनाने का है। स्टैच्यू आर्ट चैलेंजिंग काम है। यह बहुत तकलीफदेह भी होता है। भूखे-प्यासे, धूप में मूर्ति बनकर खड़े रहना, खड़े-खड़े पैर सुन्न हो जाते हैं। लगता है गिर जाऊंगा, फिर हिम्मत करता हूं। अपने को मानसिक तौर पर तैयार करने के लिए हर्षवर्धन जैन के मॉटिवेशनल वीडियो देखता हूं।
अर्जुन ने बताया कि घर के हालात अच्छे नहीं थे इसलिए 12वीं के बाद पढ़ाई छोड़ दी। इसके बाद बेंगलुरू (कर्नाटक) चला गया। वहां कुछ दिन ग्रोसरी स्टोर में काम किया, लेकिन फिर पिछले साल वापस लौट आया।
पिता-दोस्तों के साथ की मजदूरी
पिछले साल बेंगलुरू से लौटने के बाद अर्जुन ने पिता और दोस्तों के साथ मजदूरी की। अर्जुन के साथ गांव के दोस्त विजय और बबलू राजौर, सर, फिसगांव, लूणी में मजदूरी करते। साथ खाना खाते, सोशल मीडिया पर वीडियो बनाकर डालते। इसी दौरान स्टैच्यू आर्ट के बारे में जानकारी मिली। फरवरी-मार्च तक मजदूरी का काम करने के बाद अर्जुन ने दोस्तों से कहा कि वह स्टैच्यू आर्ट से अपनी अलग पहचान बनाएगा।
हर जगह से भगाया, फिर आंधी-बारिश में खड़ा रहा
अर्जुन ने बताया- 16 मार्च 2023 को मैं मेहरानगढ़ फोर्ट की पार्किंग में पहुंचा। वहां तैयार होकर खड़ा हुआ तो स्कूली बच्चों ने घेर लिया। 3 घंटे तक मैंने बच्चों का मनोरंजन किया। लेकिन इसके बाद शाम 5 बजे सिक्योरिटी गार्ड ने कहा कि यहां कॉमर्शियल एक्टिविटी की इजाजत नहीं है। गार्ड ने मुझे बाहर निकाल दिया।
अगले दिन 17 मार्च को मंडोर उद्यान चला गया। यहां भी दोपहर 2 से शाम 5 बजे तक खड़ा रहा। गार्डन के सिक्योरिटी गार्ड ने मुझे भिखारी कहा और फटकार कर भगा दिया। गार्ड ने कहा कि यहां चीजें बेचना या अपना मेला लगाना वर्जित है। उसने कहा- शर्म नहीं आती हट्टे कट्टे होकर भीख मांगते हो। उसने जेल में डलवाने की धमकी दी।
अगले दिन मैं अशोक उद्यान सुबह 10 बजे पहुंच गया। मुझे डर था कि यहां से भी सुरक्षा गार्ड भगा न दें। इसलिए मैं वहां शाम 4 बजे तक गुमसुम बैठा रहा। वहां बैठे-बैठे मैंने हर्षवर्धन जैन का मॉटिवेशन वीडियो देखा। हिम्मत जुटाकर शाम 4 बजे मैं अशोक उद्यान के बाहर स्टैच्यू बनकर खड़ा हो गया।
शाम 6 बजे आंधी आना शुरू हो गई। लेकिन मैं बिना हिले खड़ा रहा। बारिश भी शुरू हो गई फिर भी मैं अपनी जगह से नहीं हिला। मैंने खुद से कहा, अगर मैं हिला तो मेरा सपना टूट जाएगा। रात 8 बजे तक मैं मूर्ति बनकर खड़ा रहा। उसके बाद मैंने जोधपुर स्टेशन पर स्टैच्यू आर्ट का शो करने का फैसला किया।
अब यह है रूटीन
जोधपुर स्टेशन पर स्टैच्यू मैन बनकर खड़े होने के लिए अर्जुन रोजाना सुबह 4.30 बजे उठते हैं। राजौर से पैदल 7 किलोमीटर दूर लूणी स्टेशन से 5.40 बजे की ट्रेन पकड़ते हैं और जोधपुर पहुंचते हैं। यहां मेकअप कर स्टेशन के सेल्फी पॉइंट के पास खड़े हो जाते हैं। 7-8 घंटे खड़े रहने के बाद वे घर लौट जाते हैं। वे अब 300 से 700 रुपए रोजाना जुटा लेते हैं।
अर्जुन ने बताया कि दिनभर खड़े रहने की वजह से उनका शरीर दर्द करता है। घुटने से नीचे तक का पैर सुन्न हो जाते हैं। कई बार खड़े-खड़े गिरने की स्थिति हो जाती है, लेकिन ऐसे हालत को मैं हैंडल कर लेता हूं। खड़े होने से पहले इतना ही पानी पीता हूं कि कई घंटे एक जगह खड़े रह सकूं। भूख-प्यास के बावजूद मूर्ति बनकर खड़ा रहता हूं।
उन्होंने कहा- रेलवे स्टेशन पर कई बार ऐसे लोग भी मिल जाते हैं जिनके पास खाने को पैसा नहीं होता। उन लोगों की मदद कर देता हूं। लोग मुझे सलाह देते हैं कि स्टैय्यू बनो लेकिन सामने पैसे के लिए डिब्बा मत रखो। इससे भिखारी लगते हो। उन्हें कहता हूं कि यह मेरी मेहनत की कमाई है। लोगों के कमेंट सुनकर इस काम को छोड़ देने का विचार आया। लेकिन सच ये है कि मुझे भगवान ने इसी काम के लिए बनाया है।