नई दिल्ली : केजरीवाल की बड़ी जीत: सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद LG के पास क्या विकल्प? जानें अब क्या करेगी केंद्र सरकार

नई दिल्ली : केंद्र और दिल्ली सरकार के बीच राष्ट्रीय राजधानी में प्रशासनिक सेवाओं पर नियंत्रण को लेकर लंबे समय चल रहे विवाद पर सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की पीठ ने आज विराम लगा दिया। मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अगुआई वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने फैसला सुनाते हुए कहा कि दिल्ली में जमीन, पुलिस और कानून-व्यवस्था को छोड़कर बाकी सारे प्रशासनिक फैसले लेने के लिए दिल्ली की सरकार स्वतंत्र होगी। अधिकारियों और कर्मचारियों का ट्रांसफर-पोस्टिंग भी कर पाएगी। उपराज्यपाल इन तीन मुद्दों को छोड़कर दिल्ली सरकार के बाकी फैसले मानने के लिए बाध्य हैं। ये एक तरह से दिल्ली की केजरीवाल सरकार के लिए बड़ी जीत है। वहीं, केंद्र सरकार और उपराज्यपाल को बड़ा झटका लगा है।

खैर, अब इन सबके बीच सवाल ये है कि अब उपराज्यपाल के पास क्या विकल्प बचे हैं? केंद्र सरकार आगे क्या करेगी? क्या सुप्रीम कोर्ट के फैसले को सभी मान लेंगे या फिर कोई नया कदम उठाएंगे? आइए जानते हैं… 

पहले जानिए सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में क्या-क्या कहा?
  • चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली संविधान पीठ ने इस मामले में सर्वसम्मति से फैसला सुनाया। कोर्ट ने कहा, ‘उपराज्यपाल के पास दिल्ली से जुड़े सभी मुद्दों पर व्यापक प्रशासनिक अधिकार नहीं हो सकते हैं। उपराज्यपाल की शक्तियां उन्हें दिल्ली विधानसभा और निर्वाचित सरकार की स्थायी शक्तियों में हस्तक्षेप करने का अधिकार नहीं देती हैं।’
  • कोर्ट ने अपने आदेश में कहा, ‘भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारियों (IAS) पर भी दिल्ली सरकार का नियंत्रण रहेगा, भले ही वे उसकी तरफ से नियुक्त न किए गए हों।’
  • सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अगर लोकतांत्रिक रूप से निर्वाचित सरकार को अधिकारियों को नियंत्रित करने का अधिकार नहीं दिया गया तो जवाबदेही तय करने के सिद्धांत का कोई मतलब नहीं रह जाएगा।
  • शीर्ष अदालत ने कहा कि अगर अधिकारियों ने मंत्रियों को रिपोर्ट करना बंद कर दिया या उन्होंने मंत्रियों के निर्देश नहीं माने तो सामूहिक जिम्मेदारी के सिद्धांत पर असर पड़ेगा।
  • सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि लोकतांत्रित रूप से निर्वाचित सरकार को अधिकारियों को नियंत्रित करने की इजाजत नहीं दी गई तो विधायिका और जनता के प्रति उस सरकार की जवाबदेही कमजोर हो जाएगी। दिल्ली का केंद्र शासित क्षेत्र अन्य केंद्र शासित प्रदेशों जैसा नहीं है। यह अपने आप में अलग है।
  • सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि राष्ट्रपति द्वारा तय प्रशासनिक भूमिका के तहत आने वाले अधिकारों का उपराज्यपाल इस्तेमाल कर सकते हैं। हालांकि, विधायिका के दायरे के बाहर आने वाले मुद्दों को वे कार्यकारी रूप से चला सकते हैं।
  • सुप्रीम कोर्ट ने इसी के साथ यह भी जोड़ा कि इसके ये मायने नहीं हैं कि उपराज्यपाल का पूरे राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र पर प्रशासनिक नियंत्रण है। अगर पूरा प्रशासन उन्हें दे दिया गया तो दिल्ली के अंदर पृथक निर्वाचित व्यवस्था के कोई मायने नहीं रह जाएंगे।
  • पुलिस, पब्लिक ऑर्डर और लैंड का अधिकार केंद्र सरकार के पास रहेगा।
कोर्ट के इस फैसले के क्या मायने हैं? 
इसे समझने के लिए हमने राजनीतिक विश्लेषक प्रो. अजय कुमार सिंह से बात की। उन्होंने कहा, ‘दिल्ली में अधिकारों की लड़ाई हमेशा से केंद्र सरकार और दिल्ली सरकार के बीच रही है। खासतौर पर तब जब केंद्र और दिल्ली में अलग-अलग दल की सरकार रही। जब से दिल्ली में अरविंद केजरीवाल सत्ता में आए हैं, तब से ये लड़ाई और तेज हो गई है।’

प्रो. सिंह के अनुसार, ‘दिल्ली में अभी तक केंद्र सरकार की सलाह पर उपराज्यपाल अधिकारियों की ट्रांसफर-पोस्टिंग का आदेश जारी करते थे। अब सुप्रीम कोर्ट ने ये अधिकार दिल्ली सरकार को दे दिया है। मतलब अफसर अब पूरी तरह से दिल्ली सरकार के अधीन हो जाएंगे। सियासी और प्रशासनिक तौर पर ये केजरीवाल सरकार की बड़ी जीत है। इससे दिल्ली सरकार के अधिकार में काफी इजाफा हो जाएगा।’

उन्होंने तीन बिंदुओं में दिल्ली में इसके असर के बारे में भी बताया।

1. पुलिस, पब्लिक ऑर्डर और लैंड मामलों को छोड़कर बाकी सभी फैसले लेने के लिए दिल्ली सरकार स्वतंत्र हो गई है। जैसा अन्य राज्य की सरकारों के पास अधिकार है।
2. दिल्ली सरकार अपने हिसाब से दिल्ली में तैनात अफसरों, कर्मचारियों की ट्रांसफर-पोस्टिंग कर सकेगी।
3. दिल्ली सरकार को हर मसले पर फैसला लेने के लिए उपराज्यपाल की अनुमति लेने की जरूरत नहीं पड़ेगी। उपराज्यपाल को दिल्ली सरकार की सलाह माननी पड़ेगी।
4. जिन मुद्दों पर केंद्र सरकार का सीधे हस्तक्षेप नहीं होगा, उन पर दिल्ली सरकार खुद से कानून बना सकेगी।

केंद्र सरकार और उपराज्यपाल के पास क्या विकल्प बचे हैं? 
सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता चंद्र प्रकाश पांडेय कहते हैं कि केंद्र सरकार और उपराज्यपाल के पास अभी दो विकल्प बचे हैं।

1. रिव्यू पिटीशन फाइल कर सकती है : केंद्र सरकार और उपराज्यपाल सुप्रीम कोर्ट के इस फैसरे के खिलाफ रिव्यू पिटीशन फाइल कर सकते हैं। अगर रिव्यू पिटीशन खारिज होती है या फिर इसमें भी दिल्ली सरकार के पक्ष में फैसला होता है तो क्यूरेटिव याचिका भी दाखिल की जा सकती है।

2. संसद से कानून पास कर सकती है सरकार : सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के खिलाफ केंद्र सरकार संसद से कानून भी पास कर सकती है। ऐसी स्थिति में दिल्ली की सरकार इसे सुप्रीम कोर्ट में फिर से चुनौती दे सकती है।

राजनीतिक तौर पर यह कितनी बड़ी जीत?
राजनीतिक विश्लेषक प्रो. अजय कुमार सिंह ने बताया कि सुप्रीम कोर्ट का ये फैसला केजरीवाल की बड़ी राजनीतिक जीत का भी उदाहरण है। इस फैसले के बाद आम आदमी पार्टी के नेता पूरे देश में भाजपा और केंद्र सरकार पर मजबूती से वार कर सकेंगे। इसे अब केजरीवाल हर मंच से उठाएंगे।

तो क्या अब केंद्र सरकार का दिल्ली सरकार कोई नियंत्रण नहीं रह जाएगा?  
प्रो. अजय सिंह कहते हैं, ‘दिल्ली में अधिकारियों के ट्रांसफर-पोस्टिंग का अधिकार भले ही केंद्र सरकार से छिन लिया गया हो, लेकिन अभी भी काफी मामलों में केंद्र के पास अधिकार होंगे। दिल्ली में कानून व्यवस्था और जमीन के मामले में अधिकार अभी भी पूरी तरह से केंद्र सरकार के हाथ में है। दिल्ली की पुलिस व्यवस्था भी केंद्र सरकार के पास रहेगी।

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