जनमानस शेखावाटी संवाददाता : नीलेश मुदगल
झुंझुनूं : मर्यादा का आरंभ सेवा से होता है ,मर्यादा का पहला बिंदु सेवा है मनुष्य सोचता है बुढ़ापे में या विशेष परिस्थितियों में क्या होगा इस बीच यदि उसे सेवा का आश्वासन मिल जाए तो यह व्याधि समाप्त हो जाती है। समाज के लोग यदि सेवा में आगे नहीं बढ़ते है और अपनी सेवाएं नहीं देते हैं तो सामाजिक मूल्य कम हो जाता है l
अलंकरण और मूल्यांकन मर्यादा के दो आधार स्तंभ होते हैं जिस समाज में मूल्यांकन नहीं होता है, वहां कोई विकास नहीं हो सकता ,जो वक्ति देना नहीं जानता उसे लेने का भी हक नहीं है,सिर का आभूषण गुरु के चरणों में नमस्कार करना है,मुख का आभूषण सत्य बोलना हैl और सत्य का जीवन में आचरण होता है।
वर्तमान में अनुशासन मर्यादा और संयम की बहुतआवश्यकता है l
यदि समाज परिवार और संस्था के अंतर्गत मर्यादा का मूल्य होता तो लड़ाई मुक्त समाज और आदर्श परिवार का निर्माण हो जाताहै,मर्यादा महोत्सव सामाजिक उत्थान और विकास का ज्योतिपुंज हैl हम मर्यादा रहना सीखे और मर्यादा में जीना सीखें, जिस दिन हम अपने आपको मर्यादित कर लेंगे, मर्यादा का बोध को समझ लेंगे उस दिन समाज ही नहीं, पूरे देश और विश्व का वातावरण बदल जाएगा,व्यवस्था, संयम और मर्यादा हमारा प्राण तत्व है, हम अपने परिवार समाज में मर्यादा का पालन करेंगे ,अहिंसा और शांति का सुंदर पाठ है मर्यादा, समुद्र मर्यादा का प्रतीक है ,हम सच्चाई को खोजने का प्रयास करें, मर्यादा से सामाजिक उत्थान होगा जो मर्यादा में रहता है वह समुद्र के सम्मान होता है!
यदि आज मर्यादा काउल्लंघन ना हुआ होता तो घर राजनीति परिवार और देश में शांति का साम्राज्य रहता लेकिनकठिनाई यह है कि मर्यादा का घर हमारे हृदय में नहीं हैl मर्यादाचिंतन का विषय है lजिस व्यक्ति ने मर्यादा का जीवन में पालन नहीं किया उसके जीवन में अहिंसा भी नहीं आ सकतीl भीतर की शांति मर्यादा से होगीl इसलिए जीवन में मर्यादा को महत्व को समझें और अपने घर को स्वर्ग बनाए।