झुंझुनूं : यदि राम बनना है तो उनके गुणों को आत्मसात करने के साथ मर्यादित होना पड़ेगा

जनमानस शेखावाटी संवाददाता : नीलेश मुदगल

झुंझुनूं : रामनवमी का पर्व सनातन संस्कृति के अनुयायियों के लिए महत्वपूर्ण होने के साथ-साथ पूज्य हैं क्योंकि श्री राम त्रेता युग में उसी दिन परगट हुए थे जो सनातन संस्कृति में बड़ा महत्व रखता हैl आज हमारी मानसिकता इतनी दूषित हो गई कि हम हमारे संस्कारों और संस्कृति से लगातार विमुख होते जा रहे हैं। राम को पूजते अवश्य हैं ,लेकिन उनके गुणों को आत्मसात करने से बचते हैं, क्योंकि श्रीराम मर्यादित ,सदाचारी व परोपकारी है और यह हम से होता नहीं। क्योंकि हम तो बाहरी दिखावे के लिए जीवित है ।यदि राम बनना है तो उनके गुणों को आत्मसात करने के साथ मर्यादित होना पड़ेगा ।
श्रीराम हमारे आराध्य देव होने के साथ एक आदर्श भी है लेकिन उनके गुणों का अनुसरण नहीं करते हैं जो हमारे लिए शर्मनाक है। राम बनना अत्यंत कठिन है, लेकिन असंभव नहीं है। यदि हम राम के आदर्शों पर चलकर आगे बढ़ेंगे तो निश्चित तौर पर स्थाई रूप से विश्व गुरु बन सकते हैं।

साथियों आज भी समाज के लिए संदेश जाता है कि हत्याचारी चाहे कितना ही बलशाली हो, यदि समाज के लोग संगठित होकर उसका विरोध करें तो उसे परास्त किया जा सकता है ।समाज में व बुरे लोग बहुत कम है, लेकिन अच्छे लोग अधिक होने के बावजूद भी चुकी संगठित नहीं है। इसलिए वे हावी रहते हैं तथा असामाजिक तत्वों के रूप में उसका हौसला बुलंद रहता है। यदि हमें समाज को सबसे अच्छा बनाना है तो संगठित होकर बुराई का प्रतिरोध करना होगा।

भगवान राम और भरत ने अयोध्या के सिहासन को फुटबॉल बनाकर समाज में जो आदर्श स्थापित किया यदि आज परिपेक्ष में हमारे राजनेता इसपर किंचित मात्र भी अमल करना शुरू कर दे, तो देश की कई सारी समस्याएं अपने आप दूर हो सकती है।

मथरा द्वारा केकई को भ्रमित कर परिवार को विगटीत करने के प्रयास की झलक आज भी परिवारों में देखने को मिलती है। मगर जिस तरह भगवान राम ने उस परिस्थती में मातृशक्ति ,मातृ प्रेम का परिचय देकर उसे भी अनुकूल बना दिया।

यदि हम भी अपना ले, तो परिवारों में सास ,बहू दूसरे छोटे-मोटे झगड़े समाप्त कर आदर्श स्थापित किया जा सकता है ।भगवान राम का जीवन शुरू से अंत तक आदर्श व प्रेरणादायक रहा है। यही कारण है कि भारत में लोगों की सुबह राम-राम से होती है। तो जीवन के अंतिम मृत्यु के समय भी भगवान राम का नाम ही एकमात्र सहारा माना जाता है।राम का स्मरण करने से मात्र से ही मनुष्य का चित्त निर्बल हो सकता है। उसमें पाप अनाचार, बुराइयां ठहर नहीं सकती है।

राम नाम की महिमा अपरंपार है राम नाम में अग्निबीज ,भानूबीज और चंद्र बीज मौजूद है ।अग्नि मनुष्य के शरीर को जला सकती है लेकिन उसके पापों को नष्ट नहीं कर सकती है ,राम नाम रूपी अग्नि मनुष्य के पापों को जलाकर भस्म कर देती है ।सूर्य उदय होकर अंधकार को मिटा सकता है, लेकिन मनुष्य के अज्ञान रूपी अंधकार को नहीं मिटा सकता ।इसी तरह चंद्रमा शीतलता तो प्रदान कर सकता है लेकिन मनुष्य हृदय को शीतलता प्रदान नहीं कर सकता।

जब पृथ्वी पर अधर्म बढा तब तब धर्म की रक्षा के लिए कृष्ण अवतार के रूप में आए।
भगवान राम की कृपा प्रत्येक प्राणी पर रहती है। भगत भगवान के प्रति कुछ भी सोचता रहे । क्योंकि जिस दिन वक्ति को अपनी गलती का पता चल जाएगा, उसी दिन उसका भाग्य उदय होव जावेगा ।आज का आदमी हर चीज के लिए समय को दोष देता है कि ऐसा समय आ गया। इसलिए मेरा कहना है समय को दोष ना देकर अपने परिवार को सुसंस्कारी बनाना चाहिए, फिर जीवन अपने आप आनंद में हो जाऊंगा ।अभिमान जीवन का सबसे बड़ा दुश्मन है। संसार में जितने प्रकार के दुख हैं उनके मूल में अभिमान छिपा हुआ है। व्यक्ति के मरने के बाद उसकी अच्छे कार्य ही साथ जाते हैं, मनुष्य को धर्म से जीने का प्रयास करना चाहिए

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