झुंझुनूं-खेतड़ी : ऐतिहासिक खेतड़ी कस्बे के ऐतिहासिक बांधों का सही तरीके से संरक्षण नहीं होने के कारण अतिक्रमण की भेंट चढ़े हुए हैं। देखरेख के अभाव में ऐतिहासिक धरोहर की दुर्दशा हो रही है। 130 वर्ष पुराना तीजो वाला बांध पिछले काफी वर्षों से अतिक्रमण की भेंट चढ़ा हुआ है। खेतड़ी कस्बे में बना तीजों वाला बांध राजा अजीत सिंह ने 1894 में बनवाया था, जो आमजन के लिए पर्याप्त मात्रा में पानी उपलब्ध करवाता रहा है, लेकिन जैसे-जैसे खेतड़ी क्षेत्र का पानी का जल स्तर कम होने लगा और बांधों में पानी की आवक बंद होने के साथ ही अतिक्रमण की भेंट चढ़ने लगे। बांध पर लगातार हुए अतिक्रमण से बांध अब कुछ दूरी में ही सिकुड़ कर रह गया है, जिसको लेकर जिला कलेक्टर के समक्ष बांध पर हुए अतिक्रमण को हटाने व खाली कराने की मांग की जा चुकी है।
1894 में राजा अजीत सिंह ने बनवाया था तीजो वाला बांध
राजस्व रिकॉर्ड में तीजो वाला बांध 37 बीघा में फैला हुआ है। खेतड़ी कस्बे का यह ऐतिहासिक बांध 1894 में बनकर तैयार हुआ था। बांध पर लगे शिलालेख के अनुसार 21 जनवरी 1892 में राजा अजीत सिंह के निर्देश पर इसकी नींव रखी गई थी। दो वर्ष तक निर्माण कार्य चलने के बाद 31 मार्च 1894 में बांध का कार्य पूर्ण हो गया था। इस दौरान बांध के निर्माण कार्य में 38 हजार की लागत आई थी। बांध पर ऐतिहासिक तरीके से कटिंग कर पत्थर लगाए गए थे तथा यह दार्शनिक स्थल के रूप में भी जाना जाता था। इस बंध अजीत संबंध के नाम से जाना जाता है। यह सैकड़ों वर्ष पूर्व कस्बे वासियों की प्यास बुझाता था। खेतड़ी ठिकाने के समय में खेतड़ी के राजाओं ने ऐतिहासिक जल प्रबंधन की योजना बनाई थी, जिसमें दर्जनों बांध, बावड़ी व टांके बने हुए थे। एक बहुत बड़ा अजीत सागर बांध भी बनाया था। यह बंध अजीत संबंध बनाया था, जिसको तीजो वाले बांध के नाम से जाना जाता है जो सैकड़ों वर्ष पूर्व कस्बे वासियों की प्यास बुझाता था। ब्रिटिश गवर्नमेंट के अधिकारी कैरोल साहब ने इस बांध के लिए एक सीधी नहर बनवाई थी जिसका पानी कस्बे वासियों के लिए उपयोग में आया करता था।
पन्ना शाह तालाब पर स्वामी विवेकानंद ने रखे अपने कदम
खेतड़ी के राजा अजीत सिंह ने खेतड़ी कस्बे के बीच में ही ऐतिहासिक पन्ना सा तालाब का निर्माण करवाया गया था। इस तालाब पर स्वामी विवेकानंद के कदम पड़ने पर इसके भव्यता के चर्चे विश्व स्तर पर होने लगे थे। कस्बे के बीचो-बीच बने इस तालाब को अकाल के दौर में बनवाया गया था। यह तालाब अपने आप में बेमिसाल है, क्योंकि इसके अंदर सिर्फ बरसात का पानी ही संग्रहित होता है। इसके लिए पहाड़ों से नहर बनाई गई थी, जिसके द्वारा पानी तालाब में आया करता था। पहाड़ों से आने वाली नहर मे फिल्टर प्लांट भी लगाए गए थे। जब बारिश के पानी तालाब भर जाता था तो तालाब में वही पानी जनाना घाट मे जाता था, जहां महिलाएं नहाती थी। तालाब के ओवरफ्लो होने पर पानी के निकासी के लिए अलग से नहर भी निकाली गई थी। वह पानी वेस्टेज नहीं होता था, जो पशुओं के पीने के पानी के काम में लिया जाता था। इसके लिए अलग से प्रबंध किया गया था, लेकिन समय के साथ देखरेख के अभाव में आज ऐतिहासिक धरोहर दुर्दशा की आंसू बहा रहा है।