जनमानस शेखावाटी संवाददाता : नीलेश मुदगल
झुंझुनूं : देश और विदेश में बीमार रोगियों को ठीक करने के लिए बड़े-बड़े सरकारी अस्पताल एवं निजी अस्पताल संचालित हैं, जहां एलोपैथिक, होम्योपैथिक, आयुर्वेदिक, यूनानी और प्राकृतिक चिकित्सा पद्धति से उपचार किया जाकर लोगों को राहत पहुंचाई जाती है। इन सभी में दवाओं या अन्य चीजों की मदद से रोगी को लाभ पहुंचता है, लेकिन अनेक ऐसी पद्धतियां विकसित हो चुकी हैं, जिनकी मदद से बिना दवा, केवल थैरेपी से लोगों को दर्द में आराम पहुंचाया जा रहा है। झुंझुनू के मंडावा मोड़ स्थित सेरा जैम थैरेपी सेंटर में बिना किसी डाक्टर, बिना दवा एवं बिना जांच के सेंटर में आने वाले व्यक्तियों का थैरेपी देकर स्वस्थ करने का काम किया जाता है। भारत के 530 सेंटरों में से झुंझुनू का सेंटर इस बार भी गत वर्ष की तीन प्रतियोगिताओं में तीनों बार प्रथम रहकर सम्मान से नवाजा गया है।
इसी तरह की एक पद्धति है थर्मल एक्यूप्रेशर मसाजर थैरेपी। आपने एक्यूप्रेशर और एक्यूपंक्चर पद्धति के बारे में सुना होगा, बहुत से लोगों ने इसका लाभ भी लिया होगा। इस तरह की अधिकांश पद्धतियां एशियाई देशों खासकर जापान, कोरिया आदि देशों में बहुत लोकप्रिय हैं। भारत में भी बरसों पहले इस तरह की पद्धतियों से उपचार किया जाता था लेकिन समय के साथ लोगों ने इन पद्धतियों को भुला दिया। हाल के वर्षों में कुछ पद्धतियां फिर से चर्चा में आई हैं जिनमें एक है थर्मल एक्यूप्रेशर मसाजर थैरेपी।
साउथ कोरिया की यह पद्धति हाल के वर्षों में भारत में खासी लोकप्रिय हुई है। इसका नाम सेरा जेम है। सेरा का अर्थ है गर्म और जेम का अर्थ है एक कीमती और उपचार में सहायक पत्थर यानी जेड स्टोन। इसकी मदद से एक मशीन तैयार की गई है जिससे लोगों के शरीर का दर्द ठीक करने और बंद नसें खोलने में मदद मिल रही है। झुंझुनूं में मंडावा मोड़ पर पिछले करीब 9 साल से चल रहे सेरा जेम सेंटर में अभी तक हजारों व्यक्तियों को लाभ पहुंचाया जा चुका है और खास बात ये है कि यह सब निशुल्क है। इसके लिए कोई राशि नहीं चुकानी पड़ती। राजस्थान में इस तरह के 17 सेंटर काम कर रहे हैं और व्यक्तिओं को लाभ पहुंचा रहे हैं।
आखिर इसकी शुरुआत कैसे हुई और राजस्थान में यह पद्धति कैसे पहुंची। इस बारे में झुंझुनूं सेंटर के संचालक रेहान और उनकी पत्नी कंचन बताते हैं, हमारा मानना है कि हर बच्चा, हर आदमी, हर औरत का जीवन कीमती है। बच्चे और युवा तो भारत का भविष्य हैं। यह केंद्र भारत के बच्चे, भारत का भविष्य की थीम पर काम करता है। इन केंद्रों पर रीढ़ की हड्डी पर 17 मशीने मास्टर वी-3 एवं मास्टर वी-4 मशीन से थैरेपी करवाई जाती है। इससे व्यक्ति के नर्वस सिस्टम को सही किया जाता है। साथ ही यहां पांच सेराटोनिक मेट भी उपलब्ध हैं, जिनके माध्यम से शरीर में खून का दौरा, यानी ब्लड सर्कुलेशन को सही किया जाता है। यह मनुष्य को अच्छी नींद लेने में मदद करता है। कहा भी गया है कि अगर आपको नींद ठीक से आ जाती है तो आप स्वस्थ हैं।
इस केंद्र पर सुबह सात बजे से शाम पांच बजे तक थैरेपी दी जाती है। यह सारी व्यवस्था अनुशासित तरीके से बारी-बारी नंबर आने पर की जाती है। इस केंद्र पर चार साल से लेकर 80-85 साल तक के करीब 300 महिला, पुरुषों को सोमवार से शनिवार तक निशुल्क थैरेपी दी जाती है। कंचन बताती हैं, नियमित रूप से थैरेपी लेने पर ही लाभ मिल सकता है। बीच में अंतराल रखा जाए तो फिर नए सिरे से शुरू करना पड़ता है। थैरेपी कई मोड पर दी जाती है। खास बात यह भी है कि दवा ले रहे अधिकांश लोग इस थैरेपी के बाद दवाई लेना बंद कर देते हैं क्योंकि उसकी आवश्यकता ही नहीं रहती। मशीन पर 40 मिनट और मैट पर 5 से 10 मिनट तक थैरेपी दी जाती है।
सेरा जेम सेंटर के संचालक राजस्थान के जोनल आफिसर रेहान बताते हैं, सेरा जेम की शुरुआत 20 जुलाई 1998 को साउथ कोरिया की राजधानी सोल में हुई थी जो वर्तमान में 70 देशों में सेवाएं दे रही है। भारत में पिछले 17 साल से सेरा जेम 530 सेंटर पर काम कर रही है। सेंटर पर आने वाले व्यक्तियों को बताया जाता है कि हमारे शरीर का ढांचा किस तरह का है और कहां समस्या होने पर दर्द और बीमारी उत्पन्न होती है और इसे कैसे कम किया जा सकता है। सेरा जेम का उद्देश्य लोगों को अच्छा स्वास्थ्य देना और सुखी बनाना है।
झुंझुनूं सेंटर पर ऐसे अनेक व्यक्ति आते हैं जिन्हें उनके परिजन शुरू में कुर्सी पर बैठाकर लाए थे। आज वे कई किलोमीटर तक पैदल चल लेते हैं। झुंझुनूं निवासी 60 साल के अब्बास अली बताते हैं, मैं पहले विदेश में काम करता था। वहां मुझे लकवा हो गया और वापस अपने देश लौटना पड़ा। यहां मैंने जयपुर, दिल्ली सहित अनेक बड़े शहरों में इलाज करवाया, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। मुझे किसी ने सेरा जेम के बारे में बताया। यहां थैरेपी लेने के बाद मैं ठीक हूं, 7-8 किलोमीटर रोजाना पैदल चल लेता हूं। इसी तरह झुंझुनूं की पुष्पा देवी ने बताया कि मेरी कमर के नीचे का हिस्सा स्लिप डिस्क की वजह से काम नहीं करता था, काफी उपचार लिया, बेड रेस्ट भी किया, लेकिन सेरा जेम में थैरेपी लेने के बाद अब मैं चलने-फिरने लगी हूं, घर में काम करने लगी हूं। ऐसे अनेक उदाहरण हैं।
सामाजिक सरोकार
रेहान बताते हैं, सेरा जेम ‘भारत के बच्चे, भारत का भविष्य’ की थीम पर काम करते हुए सामाजिक सरोकार के काम भी करता है। हमारी संस्था ऐसे सरकारी स्कूलों के भवनों की मरम्मत करवाती हैं जो जर्जर हो चुके हैं। वहां आईटी लैब भी तैयार करवा कर देते हैं। देश में 9 सरकारी स्कूलों की मरम्मत का कार्य करवा चुकी हैं।
हमारे शरीर में 31 जोड़ी नसें
कंचन बताती हैं, मानव शरीर में 31 जोड़ी नसें (नर्व) होती हैं। इसमें गर्दन में 7, पीठ में 12, कमर में 5, कूल्हे में 6 और सबसे अंत के भाग में एक जोड़ी नसें होती हैं। इतनी ही जोड़ी नसें हमारी रीढ़ की हड्डी में होती हैं। रीढ की हड्डी व नसों को स्वस्थ बनाने का काम थैरेपी से किया जाता है। इनके बीच मुलायम गद्दी की तरह डिस्क होती हैं। शरीर के किसी भाग में दबाव से ये डिस्क अपना स्थान छोड़ देती है और शरीर में पीड़ा होने लगती है। यह थैरेपी इसे ठीक करती है। सिर से लेकर पैर तक नसों के दबाव के कारण होने वाले सभी प्रकार के दर्द को इस थैरेपी से ठीक किया जा सकता है।
कोरिया की कंपनी के निदेशक सींग जोन हून साल में तीन बार झुंझुनू सहित अन्य सेंटरों पर विजिट कर वहां की प्रगति की रिपोर्ट लेते हैं, उनकी अनुशंसा के आधार पर ही देश के श्रेष्ठ सेंटर्स का चयन होता है।
सेरा कॉइन, आई कवर का वितरण
सेरा जेम सेंटर पर नियमित रूप से आने वाले व्यक्तियों को सेंटर की ओर से सेरा कॉइन और आई कवर, कमर बेल्ट, गर्दन बेल्ट आदि का वितरण भी निशुल्क किया जाता है, जिनसे हर व्यक्ति लाभ प्राप्त करते है।
प्रस्तुति: सवाई सिंह मालावत, पूर्व सूचना एवं जनसंपर्क अधिकारी