झुंझुनूं : भारत-पाक के बीच 1971 के युद्ध में तबाही मचाने वाला टी-55 टैंक शनिवार देर रात झुंझुनूं पहुंचा। रात करीब साढ़े 11 बजे शहीद स्मारक के पास पहुंचने पर लोगों ने टैंक का स्वागत किया। लोगों ने हिंदुस्तान जिंदाबाद और भारत माता की जय के नारे लगाए।
ये टैंक 7 अक्टूबर को पुणे के आर्म्ड फाइटिंग व्हीकल डिपो, किरकी से ट्रेलर में झुंझुनूं के लिए रवाना किया गया था। 1325 किमी का सफर तय कर यह टैंक शनिवार रात 11:30 बजे झुंझुनूं सैनिक कल्याण बोर्ड कार्यालय पहुंचा। झुंझुनं पहुंचने पर टैंक के साथ आए निक्सन मीणा व बलवीर सिंह का स्वागत किया गया। युवा पहले से टैंक आने का इंतजार कर रहे थे। जैसे ही टैंक पहुंचा लोगों ने जमकर नारेबाजी की।
टैंक की लम्बाई 9 मीटर, चौड़ाई 3.27 मीटर व ऊंचाई 2.35 मीटर है। इस टैंक में एक कमांडर, एक गनर, एक लोडर व एक चालक होता है। चारों के बैठने के बाद यह ऊपर से बंद हो जाता है। इसके अंदर रहने वाले चारों सदस्य सुरक्षित होते हैं। उन पर छोटे हमलों का कोई असर नहीं होता।
1971 की जंग के हीरो रहे इस टैंक को झुंझुनूं में शहीद स्मारक परिसर में रखा जाएगा। इसके लिए प्लेटफार्म बनकर तैयार हो चुका है। रात को जैसे ही टैंक झुंझुनू पहुंचा। लोग उत्साहित होकर देशभक्ति के नारे लगाने लगे। कहा कि जांबाजों के जिले में टैंक का आना हमारी बहादुरी को बयान तो करेगा ही, साथ ही लोगों के लिए प्रेरणा स्त्रोत भी बनेगा। युवाओं में देशभक्ति का जज्बा बढ़ेगा।
शहीद स्मारक में होगा स्थापित
शहीद स्मारक पर स्थापित होने के बाद झुंझुनूंवासी टी-55 टैंक को नजदीक से देख सकेंगे। यह टैंक जिला मुख्यालय पर शहीद स्मारक के निकट प्लेटफार्म पर रखा जाएगा। सेना के रिटायर्ड अधिकारियों के अनुसार 1971 के वक्त भारत में युद्ध सामग्री का निर्माण नहीं होता था। तब टैंक विदेश से मंगवाए जाते थे। जरूरत के समय अमरीका ने भारत को टैंक देने से मना कर दिया था, तब रूस ने भारत को यह टैंक दिए थे। अब तो भारत में इससे भी अपग्रेडेड टैंक बनने लगे हैं।
महिलाओं ने भी ट्रेलर पर चढ़कर टी-55 टैंक के साथ फोटो खिंचाए।
सेना के लिए बनाता था मार्ग
जिला सैनिक कल्याण अधिकारी कमांडर परवेज अहमद हुसैन ने बताया कि जब यह टैंक पूरी क्षमता से लोडेड होता है तो इसका वजन 36 टन होता है। अब इसके इंजन व अन्य जरूरी पार्ट्स इसके साथ नहीं हैं।
ये है खासियत
टैंक की लम्बाई 9 मीटर, चौड़ाई 3.27 मीटर व ऊंचाई 2.35 मीटर है। इस टैंक में एक कमांडर, एक गनर, एक लोडर व एक चालक होता है। चारों के बैठने के बाद यह ऊपर से बंद हो जाता है। इसके अंदर रहने वाले चारों सदस्य सुरक्षित होते हैं। उन पर छोटे हमलों का कोई असर नहीं होता। टैंक का मुख्य काम दुश्मन पर गोले व गोलियां बरसाना होता है। दुश्मन के छोटे टैंक को भी नष्ट कर देता है। इससे दुश्मन की सेना पीछे हटती जाती है।
पहाड़ों पर चढ़ने की ताकत
इस टैंक के मोटी चेन होती है। इसी की सहायता से यह चलता है। यह बड़े पत्थरों पर भी चढ़ जाता है। बालू में भी नहीं फंसता। वजन ज्यादा होता है इसलिए अधिकतम गति 6.85 किलोमीटर प्रति घंटा होती है।
टैंक के झुंझुनूं पहुंचने पर लोगों में इसके साथ फोटो खिंचाने की होड़ है।
पुणे से आया है टैंक, नगर परिषद कर रही है स्थापित
यह टैंक भारतीय थल सेना के पुणे के निकट खिरकी डिपो से आया है। इसे लाने व प्लेटफार्म पर स्थापित करने का खर्चा नगर परिषद झुंझुनूं ने वहन किया है। वार्षिक देखरेख भी नगर परिषद करेगी।
इंडियन अयूब ले आए थे पाकिस्तानी टैंक
भारतीय सेना के पूर्व कप्तान अयूब खान ने भारत पाक के बीच 1965 में हुए युद्ध में गजब की वीरता दिखाई थी। उस समय पाकिस्तान के पास अमरीका निर्मित पैटर्न टैंक थे, अयूब खान ने अपनी जान की परवाह किए बिना पैटर्न टैंक को उड़ा दिया था।
भारतीय सेना के पूर्व कप्तान अयूब खान तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी के साथ (दूसरी रॉ में)
अयूब यहीं नहीं रुके, दुश्मन की सरहद में घुसकर उनका एक टैंक भी ले आए थे। उनकी वीरता पर तत्कालीन प्रधानमंत्री ने उनको इंडियन अयूब नाम दिया था। वीर चक्र से भी सम्मानित किया गया था। अयूब खान की पुत्रवधू शबनम खान ने कहा कि कई साल पहले सेना के अधिकारियों व प्रशासन को पत्र लिखकर टैंक की मांग उठाई थी। आज जब यह टैंक झुंझुनूं पहुंचा है तो बहुत खुशी हुई है।