जनमानस शेखावाटी संवाददाता : नीलेश मुदगल
झुंझुनूं-किठाना : जिले के छोटे से गांव किठाना में जन्में उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ का खेती-बाड़ी से आज भी उतना ही लगाव है। गांव में उनके खेत में करीब 70 बीघा जमीन पर जोजोबा के 8500 पेड़ खड़े हैं। धनखड़ न केवल अपने खेत के बारे में बल्कि गांव के अन्य लोगों के खेत के बारे में भी जानकारी लेते रहते हैं। वहीं उनकी पत्नी डॉ. सुदेश धनखड़ तो गांव आकर खेत को संभालती रहती हैं। इतना ही नहीं वह खुद खड़ी रहकर खेत के लिए जैविक खाद भी तैयार करवाती हैं। खास बात यह है कि उप राष्ट्रपति के खेत में पैदावार से होने वाली आय को गांव में ही विकास कार्यों में खर्च किया जा रहा है।
बीज जाते हैं ग्वालियर
उपराष्ट्रपति के खेत में उगने वाले जोजोबा के बीज ग्वालियर में व्यापारी को बेचे जाते हैं। वर्तमान में बीज का भाव 25-26 हजार रुपए प्रति क्विंटल है। वर्ष 2021 में उनके खेत में 19 क्विंटल जोजोबा के बीज हुए और पिछले साल 8 क्विंटल जोजोबा के बीज तैयार हुए।
पत्नी तैयार करवाती है खाद
उपराष्ट्रपति की पत्नी डॉ. सुदेश गांव आती जाती रहती है। वह ने केवल खेत में जाकर खेती को देखती है बल्कि खेत में काम आने वाली जैविक खाद भी खुद की देखरेख में तैयार करवाती हैं।
दूसरो के खेत की भी करते हैं चिंता
महिपाल ने बताया कि उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ उनसे समय-समय पर फोन पर न केवल खेत के बारे में जानकारी लेते हैं बल्कि फोटो भी मंगवाते हैं। खास बात यह है कि उपराष्ट्रपति को गांव के अन्य लोगों के खेत की भी चिंता रहती है, कोई भी उनसे मिलने के लिए जाता है तो वह खेती-बाड़ी की बात अवश्य करते हैं।
उपराष्ट्रपति के खेत में तेरह साल पहले जोजोबा उगाया गया। आज खेत में करीब साढ़े आठ हजार पेड़ खड़े हैं। महिपाल ने बताया कि जोजोबा के पेड़ पर करीब नौ साल बाद बीज आने शुरू हुए। ऐसे में नौ साल की मेहनत के बाद उपराष्ट्रपति के खेत में चार साल पहले ही बीज लगने शुरू हुए हैं।
यह होते हैं सामाजिक कार्य
खेत में जोजोबा से होने वाली आमदनी को गांव में या अन्य सामाजिक कार्य पर खर्च किया जाता है। खेत की देखभाल कर रहे महिपाल धनखड़ ने बताया कि गांव में सामाजिक कार्य जैसे स्कूली बच्चों को ड्रेस, किताब आदि का वितरण, स्कूल के भवन निर्माण में सहयोग आदि कार्य किए जा रहे हैं।
क्या है जोजोबा
उद्यान विभाग के सहायक निदेशक शीशराम जाखड़ ने बताया कि जोजोबा एक तेलीय फसल है। इसमें हाईलुब्रिकेटिंग ऑयल होता है। यह कॉस्मेटिक आइटम, हाई स्पीड इंजन जैसे प्लेन आदि में काम आता है। इस फसल में किसी तरह का कोई रोग नहीं लगता। इसे आवारा पशु भी नहीं खाते। पानी की बहुत कम आवश्यकता है। खास बात यह है कि इसकी उम्र का कोई अंदाजा नहीं है। किसी के सौ साल तो किसी के डेढ़ सौ साल तक यह खेती रहती है।