झुंझुनूं-खेतड़ी-बीलवा : सरकार बेखबर:पीड़ित की पत्नी ने मदद की लगाई गुहार:संविदा स्वास्थ्यकर्मी कोरोना योद्धा दूसरों की जान बचाने के एवज में खुद 20 महीनों से जिंदगी मौत से लड़ रहा है

झुंझुनूं-खेतड़ी-बीलवा : कोरोना की दूसरी लहर में खेतड़ी उपखंड के बीलवा निवासी अमरसिंह महरानियां दिल्ली के लेडी हार्डिंग मेडिकल कॉलेज में नर्सिंग ऑफिसर पद पर कार्य करते हुए कोरोना की प्रथम लहर से लेकर दूसरे फेज में लोगों की मदद करते हुए खुद की जिंदगी ऐसे जोखिम में पड़ी, और जिंदगी मौत के बीच कृत्रिम सांस लेने को तड़प रहा है। अमर सिंह महरानिया के साथ ऐसा हुआ मानो हवन करते हाथ जल गए हो। लोगों की जिंदगी की परवाह करने वाले अमरसिंह महारानियां आजकल प्राण वायु ऑक्सीजन लेने की भीख मांगने को मजबूर है।

पिछले 20 महिनों से कोरोना संक्रमण से फेफड़े ऐसे क्षतिग्रस्त है कि वह ऑक्सीजन कंसंट्रेटर बाइपेप के बिना रह नहीं सकते। यह कोरोना योद्धा संविदा स्वास्थ्य कर्मी अपने परिवार की जमा पूंजी, पत्नी के गहने, जमीन जायदाद बेचने के बाद रिश्तेदार व जान पहचान के लोगों से करीब 30 के लाख का कर्जा लेकर इलाज कराने के बावजूद भी कोरोना संक्रमण की दास्तां से बाहर नहीं निकल पाया है। वह अब कृत्रिम ऑक्सीजन संयंत्र के बिना रह नहीं सकता।

पीड़ित अमर सिंह महरानिया की पत्नी कविता ने अपने दर्द भरी दास्तां की सिसकियां लेते हुए कहा कि उनके पति कोरोना की लहर में हॉस्पिटल में लोगों का इलाज करते करते क्वॉरेंटाइन वार्ड में स्वयं संक्रमित हो गए। जिनकी वजह से उनके फेफड़े संक्रमित होकर क्षतिग्रस्त हो गए। अब तक ठीक होने की उम्मीद से बहुत महंगा इलाज करवाया गया है। लेकिन आजकल उनके हाथ-पांव इसलिए फुलने लगे हैं कि उनका पति कृत्रिम सांस उपक्रम के बिना 1 मिनट भी नहीं रह सकते।

दिल्ली के लेडी हार्डिंग मेडिकल हॉस्पिटल में जहां अमर सिंह नौकरी करता था। 6 मई 2021 को हॉस्पिटल में भर्ती हुआ 6 माह 10 दिन आईसीयू में इलाज चला। ऑक्सीजन कंसंट्रेटर बाईपंप के सहारे कुछ दिन घर में रुके। फिर हालात बिगड़ने पर जयपुर के राजस्थान मेडिकल हॉस्पिटल में 2 माह 10 दिन भर्ती रहे जहां प्रतिदिन 50 हजार रूपए खर्च हुए पीड़ित की पत्नी कविता ने बताया कि उन्होंने परिवार के लोगों से, रिश्तेदारों से कर्जा ले लेकर इलाज करवा चुकी है। उनके पति के अलावा घर में कोई कमाने वाला नहीं है। दो बच्चे बेटा लक्ष्य 9 साल , बेटी जिया 7 साल, छोटा देवर बीएससी नर्सिंग की पढ़ाई कर रहा है। पैसे के अभाव में इनकी पढ़ाई भी बाधित हो रही है। वहीं वृद्ध सास-ससुर की सेवा करने की जिम्मेवारी भी उन पर ही है।

पिछले 20 महीनों से पूरा परिवार अमर सिंह के इलाज और पैसे के इंतजाम में कर्जा लेने में लगे रहते हैं। पहले तो रिश्तेदार उधार भी दे देते थे, लेकिन अब तो हालत दिन प्रतिदिन और बदतर होती जा रहे है। ऐसे तड़पते हुए अपने पति को छोड़कर काम धंधा भी नहीं कर सकती। पति के इलाज के लिए स्वयं के विश्वास के कहने पर चुकी है एकमात्र मंगलसूत्र रखा था उसे भी हाल ही में बेचकर जयपुर से दवा लेकर आई हैं।

प्रतिदिन एक ऑक्सीजन का सिलेंडर की खपत हो जाती है। जबकि ऑक्सीजन कंसंट्रेटर व बाईपंप भी साथ लगा रहता है। यदि लाइट की कटौती हो जाए तो दूसरे सिलेंडर की भी आवश्यकता पड़ जाती है। पीड़ित की पत्नी कविता ने यह भी बताया कि जिस हॉस्पिटल में वह नौकरी करते थे वह महज एक संविदा कर्मी थे इसलिए उन्हें कोई लाभ नहीं मिला। जितने दिन काम किया उसमें लास्ट के महीने का पैसे भी नहीं दिया।

लेकिन बीमार होने के बाद जुलाई 2021 के बाद उन्हें एक भी रुपए नहीं मिला। जबकि कोरोना संक्रमण के दौरान ड्यूटी पर रहते हुए वे संक्रमित हुए थे। कई बार संबंधित हॉस्पिटल व अधिकारियों से बात की है और पत्र भी लिखा है। लेकिन कोई जवाब नहीं मिल रहा।

एक तरफ उनके पति इलाज के लिए तड़प रहे हैं दूसरी तरफ सरकार के उपक्रम में जहां नौकरी करते थे उनकी तरफ से कोई मदद नहीं मिली ऐसी हालातों में अपनी आपबीती किसीको भी नहीं कह सकती। पीड़ित की पत्नी कविता ने बिलखते हुए दर्द भरी दास्तां में कहा कि पहले तो लोग कुशलक्षेम पूछने के लिए रिश्तेदार व उनके पति के दोस्त फोन करते थे लेकिन आजकल उनके दर्द को सुनने वाला कोई नहीं है। जान पहचान के लोगों से खूब कर्जा ले लिया है इसलिए शर्म के मारे उन्हें बार-बार तंग नहीं किया जा सकता और दूसरे लोग देने के लिए राजी भी नहीं होते हैं। बेबसी के आंसू लूटकाती हुई कविता ने कहा कि उनके पति के दोस्त फोन इसलिए नहीं उठाते कहीं उनको पैसे के लिए नहीं कह दे।

कोई भी संगठन या सरकार की ओर से कोई मदद नहीं हो पाई है। मुख्यमंत्री रिलीफ फंड से एक लाख रुपए की मदद मिली है। जबकि केंद्र सरकार में संविदा कर्मी के तौर पर उनके पति सेवारत रहा है। सांसद नरेंद्र खीचड़ के माध्यम से भी अभिशंषा पत्र भेजा जा चुका है लेकिन कोई मदद नहीं हुई। पीड़िता ने कहा कि आज उनका परिवार कार्य में डूबा पड़ा है इलाज के लिए पैसे की तो दूर की बात बच्चों का पेट भरने की नौबत तक आ गई है ऐसी हालात में मदद के लिए हाथ बड़े तो कोई बात बने।

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