अरुणाचल प्रदेश : अरुणाचल प्रदेश के तवांग सेक्टर में वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर भारत और चीन के सैनिकों के बीच हुई झड़प के बाद अब स्थिति सामान्य बताई जा रही है। हालांकि एलएसी के विवादित हिस्से के निकट चीन के लड़ाकू जहाज उड़ते हुए देखे जा रहे हैं। सेना ने तवांग सेक्टर में ‘ड्रैगन’ को माकूल जवाब दिया है, तो दूसरी ओर वायु सेना भी अलर्ट है। सुरक्षा विशेषज्ञों का कहना है, ये ’62’ का भारत नहीं है, वैसे तो हमारे बहादुर जवान 2022 में भी ‘लट्ठ’ से चीन को खदेड़ देते हैं। चीन कई मोर्चों पर घिर चुका है। अपने लोगों का ध्यान डायवर्ट करने के लिए वह ‘एलएसी’ के किसी न किसी हिस्से पर विवाद खड़ा करता रहता है। भारत के पास जब से ‘एस-400’ व ‘राफेल’ आए हैं, तभी से ड्रैगन ‘टेंशन’ में आ गया है।
एलएसी पर फोकस कर लेता है चीन का राजनीतिक नेतृत्व
रक्षा विशेषज्ञ प्रफुल्ल बख्शी के मुताबिक, चीन अपनी हरकतों से बाज नहीं आएगा। खासतौर से 2020 के बाद एलएसी पर तनाव बढ़ता जा रहा है। कई बार ऐसी खबरें भी मिलती हैं कि चीन, एलएसी के करीब सामरिक महत्व वाले स्थानों पर तेजी से निर्माण कार्य बढ़ा रहा है। अगर भारत को इस तरह की टकराहट से छुटकारा पाना है, तो उसे सबसे पहला काम, मौजूदा पेट्रोलिंग पॉइंट्स को स्थायी नियंत्रण रेखा बनाना होगा। इसके लिए भारत को कुछ मामलों में कदम आगे बढ़ाना पड़ेगा। आज भारत के पास एक मजबूत थल, जल और वायु सेना है। कुछ मोर्चों पर हमें अपने संसाधनों को तकनीकी तौर पर उन्नत बनाना होगा।
सैन्य विशेषज्ञ जीडी बख्शी कहते हैं, चीन कहां मानने वाला है। वह तो अतीत से ही विस्तारवादी नीति पर चल रहा है। जब भी उस देश में कोई आंतरिक संकट आता है, तो राजनीतिक नेतृत्व, एलएसी पर अपना फोकस कर लेता है। मौजूदा राजनीतिक नेतृत्व भी कुछ वैसा ही कर रहा है। कोविड संक्रमण को लेकर आज भी वह देश भंवर में फंसा है। ताइवान पर किरकिरी हो चुकी है। अर्थव्यवस्था के मोर्चे पर भी सब कुछ ठीक नहीं है। ऐसे में भारत को सजग रहते हुए चीन की किसी भी हरकत का मजबूती से जवाब देना होगा।
ये न तो पहला फेस-ऑफ है और न ही आखिरी
चीन शुरू से ही उकसावे का खेल खेलता रहा है। गलवान घाटी, पैंगोंग त्सो और गोगरा-हॉट स्प्रिंग्स जैसे क्षेत्रों में दोनों देशों की सेनाएं आमने-सामने आ चुकी हैं। गलवान की हिंसक झड़प में भारत के 20 सैनिक शहीद हुए थे। चीन को भी बड़ा नुकसान झेलना पड़ा था। ये अलग बात है कि चीन ने लगभग आधा दर्जन सैनिकों के मारे जाने की बात स्वीकार की थी। गोगरा, हॉट स्प्रिंग्स, डेमचोक और डेपसांग जैसे क्षेत्रों को लेकर भी चीन विवाद खड़ा करता रहता है। रक्षा विशेषज्ञ एसबी अस्थाना के मुताबिक, ये न तो पहला फेसऑफ है और न ही आखिरी। चीन की ये कोशिशें आगे भी जारी रहेंगी। दोनों देश अपने अनुसार, एलएसी पर पेट्रोलिंग करते हैं। एक दूसरे के क्षेत्र में प्रवेश करते ही टकराव शुरू हो जाता है। समझौते के अनुसार, टकराव की स्थिति में शारीरिक तौर तरीकों का ही इस्तेमाल होना चाहिए। भारत इसमें सदैव संयम बरतता है। आमतौर पर सर्दियों में पेट्रोलिंग पर ज्यादा जोर नहीं रहता, लेकिन इस बार अधिक पेट्रोलिंग हो रही है। चीन, अर्थव्यवस्था और कोरोना के संकट में फंसा है। लोग सड़कों पर उतर रहे हैं। नतीजा, चीन एलएसी पर आक्रामक रवैया अख्तियार कर लेता है। तवांग की घटना के बाद सर्दियों में एलएसी पर दोनों देशों के सैनिकों की तैनाती बढ़ जाएगी।
राफेल और S-400 मिसाइल प्रणाली से बौखला उठा है ड्रैगन
एयर कमोडोर बीएस सिवाच (रिटायर्ड) के अनुसार, चीन आर्थिक मोर्चे पर कमजोर पड़ रहा है। दूसरा, भारत को मिले राफेल और S-400 मिसाइल प्रणाली से ड्रैगन बौखला उठा है। वर्ल्ड डायरेक्टरी ऑफ मॉडर्न मिलिट्री एयरक्राफ्ट (डब्ल्यूडीएमएमए) ने अपनी ‘ग्लोबल एयर पॉवर्स रैंकिंग’ रिपोर्ट में भारतीय वायु सेना को चीन की एयरफोर्स के मुकाबले बेहतर रैंक प्रदान किया था। अमेरिका की प्रतिनिधि सभा ने भारत को रूस से एस-400 मिसाइल रक्षा प्रणाली खरीदने के लिए ‘काटसा’ प्रतिबंधों से छूट दिलाने वाला संशोधित विधेयक पारित किया तो चीन की टेंशन बढ़ गई। इसके बाद रूस से एस-400 मिसाइल सिस्टम खरीदना आसान हो गया। चीन ने प्रयास किया था कि एस-400 मिसाइल, भारत को न मिल पाए। कई मोर्चों पर कमजोर पड़ रहा चीन, भारत के साथ सीमा विवाद को बड़ा आकार नहीं देगा। एलएसी पर अपने हिस्से में भारतीय मिग-29, सुखोई, मिराज 2000 और राफेल जैसे शक्तिशाली लड़ाकू विमान गश्त कर रहे हैं। एस-400 मिसाइल को महज पांच मिनट में ही युद्ध के लिए तैयार किया जा सकता है। खास बात ये है कि इस मिसाइल को जमीन, अत्याधिक ऊंचाई और समुद्री प्लेटफॉर्म, कहीं से भी सफलतापूर्वक दागा जा सकता है।
भारतीय वायु सेना की बढ़ती ताकत से परेशान है चीन
भारतीय वायु सेना के पास मौजूदा समय में लगभग 1645 विमान हैं। इनमें से 632 लड़ाकू जहाज हैं। इनमें राफेल, सुखोई, मिग-21 बीआईएस, जगुआर, मिग-29 यूपीजी (मल्टीरोल) व तेजस आदि शामिल हैं। वायु सेना में एमआई-17/171 (मध्यम-लिफ्ट)-223, एचएएल ध्रुव (मल्टीरोल)-91, एसए 316/एसए319 (उपयोगिता)-77, एमआई-25/25/35 (गनशिप/परिवहन)-15, एएच-64ई (हमला)-8, सीएच-47एफ (मध्यम लिफ्ट)-6, एमआई-26 (भारी लिफ्ट)-1 व एसए 315 (लाइट यूटिलिटी)-17 जैसे हेलीकॉप्टर भी मौजूद हैं। रिपोर्ट के अनुसार, साथ ही भारतीय वायु सेना के बेड़े में एएन-32 (सामरिक)-104, एचएस 748 (उपयोगिता)-57, डोर्नियर 228 (यूटिलिटी)-50, आईएल-76 एमडी/एमकेआई (रणनीतिक)-17 और सी-17 (रणनीतिक/सामरिक)-11 सहित सी-130जे (सामरिक)-11 ट्रांसपोर्टर जहाज भी शामिल हैं। ग्लोबल एयरपॉवर रिपोर्ट में भारतीय वायुसेना का छठवां स्थान है। इस रिपोर्ट में दूसरा स्थान अमेरिका और तीसरे नंबर पर रूस है। भारतीय वायु सेना को 69.4 प्वाइंट और चीन की वायुसेना को 63.8 प्वाइंट मिले हैं। जापान की वायु सेना को 58.1 प्वाइंट, इस्राइल की एयरफोर्स को 58.0 प्वाइंट व फ्रांस एयरफोर्स को 56.3 प्वाइंट दिए गए हैं।