महिंद्रा एंड महिंद्रा…जीप से लेकर एयरवैन तक बनाने वाली कंपनी। दुनिया की सबसे बड़ी ट्रैक्टर बनाने वाली वो कंपनी जिसने देश को SUV के रूप में Bolero और Scorpio दी। कभी स्टील ट्रेडिंग से शुरू हुई कंपनी आज ऑटोमोटिव से लेकर बैंक और एयरोस्पेस जैसे सेक्टर्स तक में फैली है। आज इस कंपनी की बागडोर आनंद महिंद्रा के हाथों में है और कंपनी उनके द्वारा किए गए कुछ ट्वीट्स की वजह से ही चर्चा में है। आज मेगा एम्पायर में जानिए उस महिंद्रा एंड महिंद्रा कंपनी की कहानी जिसका नाम पहले महिंद्रा एंड मोहम्मद था।
आजादी से पहले महिंद्रा एंड मोहम्मद नाम से शुरू हुई कंपनी
जब देश आजादी की लड़ाई लड़ रहा था, उसी समय के.सी. महिंद्रा, जे.सी. महिंद्रा और मलिक गुलाम मोहम्मद ने महिंद्रा एंड मोहम्मद नाम से कंपनी की शुरुआत की। 2 अक्टूबर 1945 को पंजाब के लुधियाना में एक स्टील ट्रेडिंग कंपनी के रूप में इसकी शुरुआत हुई। जे.सी. महिंद्रा नेहरु और गांधी के विचारों से काफी प्रभावित थे। यही वजह रही थी कि कंपनी में गुलाम मोहम्मद की छोटे हिस्सेदारी होने के बावजूद भी उनका नाम कंपनी के फाउंडर में शामिल किया गया। ताकि देश के लोगों के सामने एकता का संदेश पहुंच सके।
बंटवारे ने कंपनी को महिंद्रा एंड मोहम्मद से बनाया महिंद्रा एंड महिंद्रा
देश का बंटवारा होते ही गुलाम मोहम्मद ने कंपनी को नहीं, बल्कि पाकिस्तान को चुना। वो पाकिस्तान चले गए और उन्हें वहां का पहला वित्त मंत्री चुना गया। आगे चलकर 1951 में यही गुलाम मोहम्मद पाकिस्तान के गर्वनर भी बने। इधर गुलाम के चले जाने के बाद कंपनी के कारोबार पर भी असर पड़ा। कंपनी के नाम को लेकर काफी चर्चाएं हुई। क्योंकि कंपनी से जुड़ी सारी स्टेशनरी M&M नाम से छप रही थी, ऐसे में कंपनी का कुछ और नाम रखना नुकसान भरा हो सकता है। अंत में जे.सी. महिंद्रा ने अपनी सूझ-बूझ से कंपनी के M&M टैग बरकरार रखते हुए इसका नाम महिंद्रा एंड मोहम्मद से बदलकर महिंद्रा एंड महिंद्रा कर दिया।
जब रॉयल इंडियन एयरफ़ोर्स का हुआ बंटवारा
1951 में मलिक गुलाम मोहम्मद पाकिस्तान के गवर्नर जनरल बनाए गए.
केशब महिंद्रा बताते हैं कि गवर्नर जनरल बनने के बाद भी मलिक गुलाम मोहम्मद महिंद्रा परिवार से पुराने रिश्तों को नहीं भूले.
1955 में गुलाम मोहम्मद, राजपथ पर हुई गणतंत्र दिवस की पहली परेड के मुख्य अतिथि थे. केशब महिंद्रा बताते हैं कि जब गुलाम मोहम्मद दिल्ली आए तो उन्होंने पहला फ़ोन उनकी दादी को किया था. इस तरह दोस्ती का ये रिश्ता अगली पीढ़ियों तक चलता रहा.
आज की तारीख़ में महिंद्रा ऐंड महिंद्रा 15 अरब डॉलर की कंपनी है.
भारत-पाक बंटवारा: 70 साल बाद भी वो दर्द ज़िंदा है..
केशब महिंद्रा कहते हैं कि भारत और पाकिस्तान की संस्कृति साझी है. दोनों देशों के लोग एक दूसरे को पसंद करते हैं. मगर इसका असर सियासी रिश्तों पर नहीं दिखता.
वो उम्मीद जताते हैं कि आगे चलकर आम पाकिस्तानियों और हिंदुस्तानियों की तरह दोनों देशो के ताल्लुक़ भी बेहतर होंगे. तल्ख़ी कम होगी और दोनों देश क़रीब आएंगे.
आज आनंद महिंद्रा जैसे बिजनेस मैन की मेहनत की वजह से एमएंडएम ग्रुप सफलता की ऊंचाईयां छू रहा है लेकिन एक वक्त ऐसा भी आया था जब इस कंपनी के ऊपर बंटवारे की जबरदस्त मार पड़ी और इसके बंद होने के आसार नजर आने लगे थे. तो चलिए आज की ब्रांड सक्सेस स्टोरी में जानते हैं महिंद्रा एंड महिंद्रा ग्रुप के इतिहास के बारे में:
दो भाई, जिनके ऊपर से उठ गया था पिता का साया
एम एंड एम ग्रुप की कहानी शुरू होती है 1892 से. इसी साल जगदीश चंद्र महिंद्रा का जन्म हुआ. और इसके दो साल बाद यानी 1894 में पैदा हुए कैलाश चंद्र महिंद्रा. जेसी और केसी महिंद्रा कुल 9 भाई बहन थे. छोटी सी उम्र में दोनों भाइयों के सिर से पिता का साया उठ गया. पिता के जाने के बाद मां और 8 भाई बहनों की जिम्मेदारी जेसी महिंद्रा के कंधों पर आ गई.
जेसी महिंद्रा की उम्र भले ही कम थी मगर उनके हौसले बुलंद और सोच दूरदर्शी थी. उन्होंने उस दौर में भी शिक्षा के महत्व को अच्छे से समझ लिया था. यही वजह थी कि उन्होंने अपने साथ साथ अपने भाई बहनों को भी उच्च शिक्षा दिलाने का पूरा प्रयास किया. उन्होंने अपने छोटे भाई केसी महिंद्रा को पढ़ने के लिए कैम्ब्रिज भेजा.
विदेश की नौकरी छोड़ कर शुरू की थी एमएंडएम कंपनी
पढ़ाई पूरी करने के बाद केसी ने अमेरिका में नौकरी की. इसके बाद 1942 में इन्हें यूएस में इंडियन परचेजिंग मिशन का हेड नियुक्त किया गया.
सन 1945 में केसी जब भारत लौटे तो उन्हें उच्च सरकारी पदों के साथ साथ कई निजी संस्थाओं में बड़ा पद ऑफर हुआ लेकिन उन्होंने अपने बड़े भाई जेसी महिंद्रा और मित्र मलिक गुलाम मुहम्मद के साथ मिल कर अपना नया बिजनेस शुरू करने का मन बनाया. इस तरह इन तीनों ने मिल कर सन 1945 में महिंद्रा एंड मुहम्मद कंपनी की नींव रखी.
देश के बंटवारे ने कंपनी को भी बांट दिया
आज भले ही महिंद्रा एंड महिंद्रा अपनी पॉवरफुल गाड़ियों के लिए जानी जाती हो लेकिन इसकी शुरुआत एक स्टील कंपनी के रूप में हुई थी. महिंद्रा भाइयों ने सोचा था कि वे मलिक गुलाम मुहम्मद के साथ मिलकर एमएंडएम को देश की बेहतरीन स्टील कंपनी बनाएंगे लेकिन देश के बंटवारे के बाद उनके इस सपने को बड़ा झटका लगा.
15 अगस्त 1947 को देश के बंटवारे के साथ ही महिंद्रा बंधुओं के सामने एक बड़ी समस्या खड़ी हो गई. इधर देश धर्मों के आधार पर दो भागों में बंट गया और उधर कंपनी के हिंदू-मुसलमान दोस्त बंट गए. पाकिस्तान बनने के साथ ही मलिक गुलाम मुहम्मद ने पाकिस्तान जाने का फैसला कर लिया. वह अब एमएंडएम से अलग होना चाहते थे.
मुश्किल हालात में भी दोनों भाइयों ने हिम्मत नहीं हारी
आखिरकार मलिक ने हिंदुस्तान छोड़ दिया और पाकिस्तान जा कर वहां के पहले वित्त मंत्री और फिर पाकिस्तान के तीसरे गवर्नर जनरल बने.
इधर मलिक के जाने से महिंद्रा बंधुओं को भारी मुसीबत का सामना करना पड़ा. इसकी वजह ये थी कि एमएंडएम कंपनी में मलिक की हिस्सेदारी काफी ज़्यादा थी. कुछ समय के लिए लगा कि शायद महिंद्रा बंधु कंपनी को मलिक के बिना ना चला पाएं और इसे बंद कर दें लेकिन ऐसा नहीं हुआ. दोनों ने अपनी हिम्मत बनाए रखी और कंपनी को आगे बढ़ाने का फैसला किया.
इस तरह महिंद्रा एंड मोहम्मद बनी महिंद्रा एंड महिंद्रा
महिंद्रा एंड महिंद्रा दो देशों के बीच की कड़ी
देश की जानी मानी ऑटो कंपनी महिंद्रा एंड महिंद्रा आजादी से पहले ना तो गाड़ियां बनाती थी और ना ही इसका नाम मौजूदा समय वाला था। साथ ही महिंद्रा परिवार के अलावा एक और परिवार इस कंपनी का मालिका था। जिसके सरमाएदार थे गुलाम मलिक मोहम्मद। ये वो ही मलिक मोहम्मद थे जो पाकिस्तान के पहले वित्त मंत्री और तीसरे गवर्नर जनरल बने। महिंद्रा और मलिक मोहम्मद ने 1945 में एक कंपनी की नींव रखी थी। जिसका नाम रखा गया महिंद्रा एंड मोहम्मद। महिंद्रा बंधुओं केसी महिंद्रा और जेसी महिंद्रा और मोहम्मद मलिक तीनों कंपनी को अच्छे से चला रहे थे। किसी ने भी नहीं सोचा था यह स्टील कंपनी कभी इस मोड़ पर आकर खड़ी होगी कि पार्टनर को हिंदुस्तान और पाकिस्तान में से किसी एक को चुनना होगा।
महिंद्रा बंधुओं को नहीं हुआ विश्वास
1947 से पहले पाकिस्तान की नींव की तैयारियां शुरू हो रही थी। महिंद्रा एंड मोहम्मद कंपनी भी तेजी के साथ आगे बढ़ रही थी। पार्टनर्स काफी मेहनत कर रहे थे। वहीं महिंद्रा बंधुओं को इस बात का नहीं पता था कि गुलाम मोहम्मद के दिल में क्या चल रहा है। भारत पाकिस्तान के बंटवारे की घोषणा हुई और गुलाम मोहम्मद पाकिस्तान की ओर रुख कर गए। वो अब भी कंपनी के बड़े शेयर होल्डर्स में से थे। महिंद्रा बंधुओं को इस बात का गहरा झटका लगा था कि आखिर गुलाम मोहम्मद ने पाकिस्तान जाने का मन क्यों बनाया। जबकि वो धर्मनिरपेक्ष इनसान थे। सभी का आदर करते थे। 1948 में गुलाम मोहम्मद कंपनी से अलग हो गए।
फिर सामने आई बड़ी समस्या
कंपनी का रजिस्ट्रेशन एमएंडएम यानी महिंद्रा एंड मोहम्मद नाम से था। वहीं कंपनी की पूरी स्टेशनरी भी एमएंडएम नाम से ही थी। कंपनी का नाम चेंज कराने में कोई दिक्कत नहीं थी, लेकिन उस समय स्टेशनरी बेकार हो रही थी। ऐसे में नाम ऐसा ही रखा जाना था जो एमएंडएम को पूरी तरह से जस्टीफाई करे। उसके बाद कंपनी का नाम बदलकर महिंद्रा एंड महिंद्रा कर दिया गया। जिसके बाद कंपनी की पूरी स्टेशनरी जो बेकार हो जाती वो काम आई और कंपनी को नुकसान भी नहीं हुआ। महिंद्रा बंधु अब अपनी इस कंपनी के साथ कुछ नया करना चाहते थे. ऐसे में केसी महिंद्रा का विदेश अनुभव काम आया.
उन्होंने अमेरिकी कंपनी में काम करते हुए जीप देखी थी. उन्हें इस जीप का कन्सेप्ट पसंद आया था और तभी उन्होंने भारत में जीप के निर्माण का सपना देखा. अब उनके पास अपनी कंपनी के माध्यम से इस सपने को पूरा करने का पूरा मौका था.
कंपनी ने भारत में जीप का प्रोडक्शन शुरू कर दिया. इसी के साथ स्टील कंपनी महिंद्रा एंड महिंद्रा ने ऑटो इंडस्ट्री में कदम रखा. जीप बनाने के कुछ समय बाद ही एमएंडएम कंपनी लाइट कॉमर्शियल व्हीकल और ट्रैक्टर की मैन्यूफैक्चरिंग भी करने लगी. इसी तरह ये कंपनी आगे बढ़ती रही.
सन 1991 एमएंडएम ग्रुप के लिए बहुत बड़ा साल साबित हुआ. यही वो साल था जब भारतीय अर्थव्यवस्था में उछाल आया और एम एंड एम ग्रुप ने इसी साल बड़ी छलांग लगाई. इसी साल आनंद महिंद्रा इस ग्रुप के डिप्टी डायरेक्टर भी बने. आज महिंद्रा एंड महिंद्रा ग्रुप की कुल संपत्ति 22 बिलियन है.
ये कंपनी SUVs, मल्टी यूटिलिटी व्हीकल्स, पिकउपस,लाइटवेट कमर्शियल व्हीकल्स, हैवीवेट कमर्शियल व्हीकल्स, दो पहिया मोटरसाइकिल और ट्रैक्टर्स आदि जैसे कई वाहनों की निर्माता है. इस ग्रुप का कारोबार आज 100 देशों में फैला हुआ है 150 कंपनियों के साथ महिंद्रा एंड महिंद्रा ग्रुप ने 2.5 लाख से ज़्यादा लोगों को रोजगार दिया है.
जीप से शुरू हुई M&M के सफलता की कहानी
आजादी मिलने के बाद स्टील के कारोबार से महिंद्रा को उतना फायदा होता नजर नहीं आ रहा था। इसी दौरान विश्व युद्ध खत्म होने की वजह से अमेरिका की कंपनी Willys Overland Corporation की जीप की डिमांड घट गई थी। Willy ने बची हुई गाड़ियों को आम लोगों को बेचना शुरू कर दिया। ऐसे में इस मौके को देखते हुए भारत से दो बिजनेस टाइकून जेसी महिंद्रा और केसी महिंद्रा अमेरिका पहुंचे। उन्होंने Willy की जीप को भारत में इंपोर्ट करने का सौदा पक्का कर लिया। 1949 में पहले महिंद्रा ने इन जीप को इंपोर्ट करके भारत में बेचने लगा। फिर 1959 में महिंद्रा ने Willy के साथ एक और करार किया और भारत में ही जीप बनाने का लाइसेंस हासिल कर लिया। इससे भारत में इसकी कीमत कम हो गई और उस दौर में भारत के 25% कार मार्केट पर इसका कब्जा हो गया।
शेयर बाजार में उतरने के बाद ट्रैक्टर बनाने का काम शुरू हुआ
महिंद्रा एंड महिंद्रा के शेयर्स 15 जून 1955 में पहली बार बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज में लिस्ट हुए। शेयर्स की बिक्री से कंपनी की पूंजी में बढ़ोतरी हुई तो उसने अपने बिजनेस में विस्तार करने का फैसला किया। जीप की सफलता के बाद महिंद्रा एंड महिंद्रा ने अमेरिका की इंटरनेशनल हार्वेस्टर कंपनी के साथ मिलकर ट्रैक्टर बनाने का काम शुरू किया। ट्रैक्टरों के साथ कंपनी ने खेतों में उपयोग होने वाली मशीनरी, इक्विपमेंट और औजार भी बनाए। ट्रैक्टर निर्माण शुरू करने के तकरीबन 20 साल के भीतर ही 1983 में महिंद्रा दुनिया की सबसे बड़ी ट्रैक्टर बनाने वाली कंपनी बन गई। आज महिंद्रा के ट्रैक्टर दुनिया के 50 से अधिक देशों में बिकते हैं और पिछले तीन दशकों से टॉप ट्रैक्टर कंपनी बनी हुई है।
ट्रैक्टर से सफलता मिली तो SUV बनाना किया शुरू
ट्रैक्टर ने महिंद्रा का नाम हर घर तक पहुंचाया। इसके बाद 1990 के अंत में महिंद्रा ने देश के लोगों को मॉडर्न SUV कार देने का फैसला लिया। इस दौर में भारतीय बाजार में मारुति और हुंडई की कारों का कब्जा था और SUV कारें ज्यादा चलन में नहीं थी। साल 2000 में बोलेरो को मॉडर्न डिजाइन और फीचर्स के साथ लाया गया, जो कि भारत में बड़ी कार की ख्वाहिश रखने वालों की पहली पसंद बनी। आज भी बोलेरो महिंद्रा की सबसे ज्यादा बिकने वाली कारों में सबसे ऊपर है।
कंपनी सिर्फ सड़कों तक सीमित नहीं रही, इसकी पहुंच आसमानों तक
M&M का बिजनेस एम्पायर सिर्फ जीप, ट्रैक्टर या SUV बनाने तक ही सीमित नहीं रहा। दिसंबर 2009 में, महिंद्रा ने एयरवैन बनाने वाली ऑस्ट्रेलियाई कंपनियों में हिस्सेदारी खरीदी। आज ऑस्ट्रेलिया में कंपनी के 200 से अधिक Airvan 8 सेवा में हैं। जो जंगलों की आग बुझाने, लोगों और जानवरों को रेस्क्यू करने में काम आता है। वहां कई लोग इसको आसमान की SUV भी कहते हैं।
REVAi के रूप में देश को मिली थी पहली इलेक्ट्रिक कार
मौजूदा समय में इलेक्ट्रिक कार को लेकर महिंद्रा की बहुत सारी महत्वाकांक्षी योजनाएं हैं। मगर इलेक्ट्रिक कारों को लेकर उनकी यह यात्रा लगभग एक दशक पहले REVAi इलेक्ट्रिक कार के साथ शुरू हुई थी। रेवा इलेक्ट्रिक कार कंपनी की स्थापना 1994 में चेतन मैनी ने की थी। 2001 में रेवा को लॉन्च किया गया था और यह अपने समय से बहुत आगे थी। मई 2010 में रेवा इलेक्ट्रिक कार कंपनी को महिंद्रा एंड महिंद्रा द्वारा अधिग्रहित किया गया था। फिर इसको 26 देशों में बेचा गया लेकिन चार्जिंग में समस्या और इंफ्रास्ट्रक्चर की कमी के चलते बाजार में बिक्री कम होने के बाद इसे बंद कर दिया गया। फिलहाल, महिंद्रा कुछ नए इलेक्ट्रिक मॉडलों पर भी काम कर रही है।