बांसवाड़ा :
जलियांवाला बाग…
ये दो शब्द सुनते ही दिमाग में आता है
हर तरफ से गोलियां बरसाती बंदूकें, जान बचाने के लिए भागते लोग
खून से लाल हुई धरती और वहां पड़ीं 1 हजार से ज्यादा लाशें
…लेकिन बहुत से लोग नहीं जानते कि राजस्थान में भी 109 साल पहले एक नरसंहार हुआ था, जो जलियांवाला बाग से भी ज्यादा खौफनाक था…।
मानगढ़ नरसंहार।
17 नवंबर 1913 को अंग्रेजों ने अचानक निहत्थे आदिवासियों पर फायरिंग शुरू कर दी। 1500 से ज्यादा आदिवासी मारे गए। मानगढ़ की पहाड़ी खून से लाल हो गई। इतिहासकारों और स्थानीय लोगों का कहना है कि ये जलियांवाला हत्याकांड से भी बड़ा नरसंहार था। इसके बावजूद लोगों को मानगढ़ नरसंहार के बारे में जितनी जानकारी होनी चाहिए, उतनी है नहीं। इतिहास ने कभी इस नरसंहार को जगह नहीं दी।
मानगढ़ धाम के चारों ओर पहाड़ी और जंगल है। इस पहाड़ी की ऊंचाई क़रीब 800 मीटर है। गुजरात और राजस्थान की सीमा से लगते इस पहाड़ पर एक धूणी है।
मानगढ़ एक बार फिर चर्चा में है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मंगलवार को मानगढ़ में सभा को संबोधित करेंगे। दावा किया जा रहा है कि मानगढ़ धाम को राष्ट्रीय स्मारक का दर्जा दिया जा सकता है।
ऐसे में मानगढ़ नरसंहार की वो कहानी जानना जरूरी है, जो इतिहास के पन्नों में कहीं खो गई है। पढ़िए, स्पेशल रिपोर्ट…।
गोविंद गुरु ने आदिवासियों के साथ मिलकर छेड़ा था आंदोलन
बांसवाड़ा से क़रीब 80 किमी दूर है मानगढ़ धाम। चारों ओर पहाड़ी और जंगलों से घिरा हुआ। इस पहाड़ी की ऊंचाई क़रीब 800 मीटर है। गुजरात और राजस्थान की सीमा से लगती इस पहाड़ी पर एक धूणी है। यहां गोविंद गुरु की प्रतिमा लगी हुई है। साथ ही मानगढ़ से संबंधित जानकारी पत्थरों पर लिखी हुई हैं।
मानगढ़ पहुंचने पर हमें इतिहास के प्रोफेसर एवं मानगढ़ धाम पर शोध कर रहे कन्हैयालाल खांट ने बताया कि गोविंद गुरु का जन्म 20 दिसम्बर 1858 में डूंगरपुर जिले के बांसिया गांव के बंजारा परिवार में हुआ था। 1903 में गोविंद गुरु ने संप सभा बनाई, जिसका उद्देश्य विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार था। उन दिनों पूरा देश अंग्रेजों के जुल्म से परेशान था। इस दौरान गोविंद गुरु ने अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ आंदोलन छेड़ दिया था। सबसे पहले उन्होंने लोगों में शिक्षा की अलख जगाने और धर्म से जोड़ने का काम शुरू कर दिया।
अंग्रेजों ने पहाड़ी का नक्शा बनाकर बनाया प्लान
गोविंद गुरु के आंदोलन से काफी आदिवासी जुड़े हुए थे। 17 नवम्बर 1913 के दिन मार्गशीर्ष पूर्णिमा पर गोविंद गुरु का जन्म दिन मनाने के लिए आदिवासी भक्तों की टोलियां मानगढ़ धाम के पहाड़ पर जुटी थीं। इसी दिन खेरवाड़ा से ब्रिटिश बटालियन और गुजरात के दाहोद से अंग्रेजी सेना को बुलाया गया था। फ़ौज ने पहाड़ी का नक्शा बनाया था। कब और कैसे आदिवासियों को मार गिराना है, इसका पूरा प्लान बनाया गया था।
तीनों ओर से घेरकर गोलीबारी की
अंग्रेजों ने मानगढ़ धाम की सड़क के पार समांतर पहाड़ पर खच्चरों से मशीन गन और तोप पहुंचाए थे। मेजर हैमिल्टन और उनके तीन अफसरों ने हथियारबंद फौज के साथ मानगढ़ पहाड़ी को तीन ओर से घेर लिया था। खेरवाड़ा से आई अंग्रेजी सेना ने रात में पूरा सफर तय कर पहाड़ियों पर हथियार जमा दिए थे। अगली सुबह अंग्रेजी फौज के कर्नल शटन का आदेश मिलते ही सेना ने गोलीबारी करना शुरू कर दिया। आदिवासियों पर तोप और तत्कालीन मशीन गनों से हमला बोल दिया गया। इस हमले में 1500 आदिवासियों की मौत हो गई थी।
गोविंद गुरु 10 साल अंग्रेजों की कैद में रहे
हमले के दौरान अंग्रेजों ने गोविंद गुरु और उनके एक साथी को पकड़कर जंजीरों से जकड़ दिया था। इसके बाद अहमदाबाद और संतरामपुर की जेलों में रखा गया था। इतिहासकारों की मानें तो अंग्रेजी हुकूमत ने गोविंद गुरु को फांसी की सजा सुनाई थी, जिसे बाद में 10 साल की कैद में बदला गया था। 12 जुलाई 1923 को संतरामपुर जेल से इस शर्त पर रिहा किया गया कि वह बांसवाड़ा, डूंगरपुर व संतरामपुर रियासत में प्रवेश नहीं करेंगे।
पूरा जीवन समाज सुधार में बिताया
गोविंद गुरु जेल से छूटने के बाद भी समाज सुधार में सक्रिय रहे। उन्होंने भील सेवा मंडल दाहोद के मीराखेड़ी आश्रम में रहकर आदिवासियों की सेवा करते रहे। 30 अक्टूबर 1931 के दिन ही पंचमहल जिले के लिमड़ी के कगबोई नामक गांव में गोविंद गुरु का स्वर्गवास हो गया था। गोविंद गुरु ने शहादत से पहले स्वरचित गीत गाया था।
जिसके बोल थे– ‘नी मानूं रे भूरेटिया’ अर्थात् रे भूरेटिया (अंग्रेज) मैं मानने वाला नहीं हूं। मेरी लड़ाई लड़ता रहूंगा जो आदिवासियों के अधिकारों की और राष्ट्र की आजादी की लड़ाई है और मेरा लक्ष्य है, अंततः दिल्ली की गद्दी प्राप्त करना।
इस कारण इतिहास में नहीं राजस्थान का नरसंहार
प्रोफेसर कन्हैयालाल खांट ने बताया कि 13 अप्रैल 1919 को जलियांवाला बाग हत्याकांड हुआ था। पंजाब प्रांत सीधे ब्रिटिश शासन के अधीन आता था। राजस्थान की देशी रियासतें एजेंट टु गवर्नर जरनल के अधीन थीं। एजेंट टु गवर्नर जनरल ब्रिटिश शासन के अधीन था। यहां पर अंग्रेजी हुकूमत का सीधा हस्तक्षेप नहीं था। ऐसे में इसको सीधा अंग्रेजों से संघर्ष नहीं बताकर रियासतों और रजवाड़ों से संघर्ष बताया गया था। इस कारण राजस्थान का नरसंहार इतिहास में दर्ज नहीं हो सका।
गोविंद गुरु के वंशजों को गुरु परिवार के नाम से देते सम्मान
गोविंद गुरु की दूसरी और तीसरी पीढ़ी का अरथूना और लवाड़ा क्षेत्र के उमराई क्षेत्र से रिश्ता रहा है। वर्तमान पीढ़ी तलवाड़ा बस स्टैंड पर व्यापार करती है। स्थानीय लोगों ने बताया कि आदिवासी आज भी इस परिवार को गुरु परिवार के नाम से सम्मान करता है। गोविंद गुरु का जब मेला भरता है, तब हर गांव से आदिवासी परिवार आवश्यक दक्षिणा जुटाकर गोविंद गुरु की पीढ़यों को देता है। मेले में परिवार को सम्मान भी दिया जाता है।
शहीद आदिवासियों की याद में बनवाया स्मारक
नरसंहार जैसी घटना के बाद भी मानगढ़ धाम को काफी सालों तक पहचान नहीं मिली। राजस्थान सरकार ने 27 मई 1999 को नरसंहार में मारे गए आदिवासियों की याद में शहीद स्मारक बनवाया था। इसके बाद मानगढ़ को पहचान मिली। वर्तमान में यहां जनजातीय स्वतंत्रता संग्राम संग्रहालय एवं कम्यूनिटी हॉल विथ केंटीन, ओपर एयर सीटिंग प्लेस, शहीद स्मृति स्थल, हेलीपैड, मेला स्थल मंच और चार पानी की टंकियां बनी हुई हैं, लेकिन इतिहास ने कभी इस नरसंहार को जगह नहीं दी। मानगढ़ धाम का इलाका वन विभाग के अधीन है। मानगढ़ धाम सहित करीब 735.99 हैक्टेयर वन भूमि है। मानगढ़ वनखंड को 1963 में जारी खास नोटिफिकेशन के तहत खास वन खंड घोषित किया हुआ है।
राष्ट्रीय स्मारक घोषित करने को लेकर हुई बैठक
मानगढ़ धाम को राष्ट्रीय स्मारक घोषित करने के लिए 14 अक्टूबर 2022 को संस्कृति मंत्रालय केंद्र सरकार के सचिव गोविंद मोहन की अध्यक्षता में एक बैठक हो चुकी है। बैठक में संभागीय मुख्य वन संरक्षक, गुजरात के महिसागर जिले के कलेक्टर, दाहोद कलेक्टर, गुजरात राजस्थान और मध्यप्रदेश के जनप्रतिनिधि, कुछ NGO के प्रतिनिधि भी मौजूद थे।
मानगढ़ धाम में शहीद स्मारक बनने के बाद यहां की दीवारों पर शिलालेख पर नरसंहार की कहानी और पत्थरों पर युद्ध का चित्रण किया गया है। मानगढ़ धाम को फोटो में देखिए…