छठ पूजा 2022: बिहार,उत्तर प्रदेश और झांडखंड समेत देश के कई हिस्सों में धूम-धाम से छठ पूजा का पावन पर्व मनाया जा रहा है। चार दिनों तक चलने वाले छठ पूजा के तीसरे दिन आज डुबते हुए सूर्य को अर्घ्य दिया जाएगा, वहीं कल यानी 31 अक्टूबर को सुबह उगते हुए सूर्य को अर्घ्य देने के साथ इस माहपर्व का समापन हो जाएगा। मान्यता है कि छठ पूजा के चार दिनों के दौरान सूर्य और छठी माता की पूजा करने वाले लोगों की हर मनोकामना पूरी होती है।
भगवान भास्कर की होती है अराधन
मान्यता के मुताबिक छठ पूजा के दौरान अगर भक्त सच्चे मन भगवान भास्कर की अराधन करने से हर मुराद पूरी होती है। मान्यता के मुताबिक कहा जाता है कि छठ देवी भगवान सूर्यदेव की बहन है। छठ देवी को प्रसन्न करने के लिए भक्त भगवान सूर्य की आराधना करते हैं और उनका धन्यवाद करते हुए गंगा-यमुना या फिर किसी नदी या सरोबर के किनारे इस पूजा अर्चना करते हैं। सद्भावना और उपासना के इस महापर्व के बारे में कई पौराणिक कथाएं भी प्रचलित है।
छठ पूजा से जुड़ी 4 प्रचलित कहानियां
1- भगवान राम ने रावण की हत्या के पाप से मुक्त होने के लिए ऋषि-मुनियों की सलाह से राजसूर्य यज्ञ किया। इस यज्ञ के लिए अयोध्या में मुग्दल ऋषि को आमंत्रित किया गया। मुग्दल ऋषि ने मां सीते को कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को सूर्यदेव की उपासना करने का आदेश दिया। इसके बाद मां सीता मुग्दल ऋषि के आश्रम में रहकर छह दिनों तक सूर्यदेव भगवान की पूजा की थी।
2- छठ या सूर्य पूजा महाभारत काल से की जाती है। कहते हैं कि छठ पूजा की शुरुआत सूर्य पुत्र कर्ण ने की थी। कर्ण भगवान सूर्य के परम भक्त थे। मान्याताओं के अनुसार वे प्रतिदिन घंटों कमर तक पानी में खड़े रहकर सूर्य को अर्घ्य देते थे। सूर्य की कृपा से ही वे महान योद्धा बने थे।
3- इसके अलावा महाभारत काल में छठ पूजा का एक और वर्णन मिलता है। जब पांडव जुए में अपना सारा राजपाठ हार गए तब द्रौपदी ने छठ व्रत रखा था। इस व्रत से उनकी मनोकामना पूरी हुई थी और पांडवों को अपना राजपाठ वापस मिल गया था।
4- छठ पूजा के संबंध में राजा प्रियवंद और रानी मालिनी की कहना भी प्रसिद्ध है। बताया जाता है कि राजा प्रियवंद और रानी मालिनी की कोई संतान नहीं थी। हर्षि कश्यप की सलाह ने दंपति ने यज्ञ करवाया लेकिन दुर्भाग्य में उनके घर मरा हुआ बच्चा पैदा हुआ। इससे परेशान राजा-रानी ने प्राण त्यागने की कोशिश करने लगे। उसी समय भगवान ब्रह्मा की मानस पुत्री देवसेना प्रकट हुईं। उन्होंने राजा से कहा कि वो सृष्टि की मूल प्रवृति के छठे अंश से उत्पन्न हुई हैं और इसी वजह से वो षष्ठी कहलातीं हैं। उनकी पूजा करने से उन्हें संतान सुख की प्राप्ति होगी। राजा प्रियंवद और रानी मालती ने देवी षष्ठी की व्रत किया और उन्हें पुत्र की प्राप्ति हुई। कहते हैं ये पूजा कार्तिक शुक्ल षष्ठी को हुई थी। और तभी से छठ पूजा हो रही है।
छठ महापर्व की तारीख
1. छठ पूजा का पहला दिन
नहाय खाय- 28 अक्टूबर, 2022 को
सूर्योदय- 06:30 AM पर
सूर्यास्त- 05:39 PM पर
2. छठ पूजा का दूसरा दिन
लोहंडा और खरना- 29 अक्टूबर, 2022 को
सूर्योदय- 06:31 AM पर
सूर्यास्त- 05:38 PM पर
3. छठ पूजा का तीसरा दिन
सन्ध्या अर्घ्य- 30 अक्टूबर, 2022 को
सूर्योदय- 06:31 AM पर
सूर्यास्त- 05:38 PM पर
4. छठ पूजा का चौथा और अंतिम दिन
उषा अर्घ्य- 31 अक्टूबर, 2022 को
सूर्योदय – 06:32 AM पर
सूर्योस्त – 05:37 PM पर
1. नहाय खाए (पहला दिन)
यह छठ पूजा का पहला दिन है। नहाय खाय से मतलब है कि इस दिन स्नान के बाद घर की साफ-सफाई की जाती है और मन को तामसिक प्रवृत्ति से बचाने के लिए शाकाहारी भोजन किया जाता है।
2. खरना (दूसरा दिन)
खरना, छठ पूजा का दूसरा दिन है। खरना का मतलब पूरे दिन के उपवास से है। इस दिन व्रत रखने वाला व्यक्ति जल की एक बूंद तक ग्रहण नहीं करता है। संध्या के समय गुड़ की खीर, घी लगी हुई रोटी और फलों का सेवन करती हैं, साथ ही घर के बाकि सदस्यों को इसे प्रसाद के तौर पर दिया जाता है।
3. संध्या अर्घ्य (तीसरा दिन)
छठ पर्व के तीसरे दिन कार्तिक शुक्ल षष्ठी को संध्या के समय सूर्य देव को अर्घ्य दिया जाता है। शाम को बाँस की टोकरी में फलों, ठेकुआ, चावल के लड्डू आदि से अर्घ्य का सूप सजाया जाता है, जिसके बाद व्रति अपने परिवार के साथ सूर्य को अर्घ्य देती हैं। अर्घ्य के समय सूर्य देव को जल और दूध चढ़ाया जाता है और प्रसाद भरे सूप से छठी मैया की पूजा की जाती है। सूर्य देव की उपासना के बाद रात्रि में छठी माता के गीत गाए जाते हैं और व्रत कथा सुनी जाती है।
4. उषा अर्घ्य (चौथा दिन)
छठ पर्व के अंतिम दिन सुबह के समय सूर्य देव को अर्घ्य दिया जाता है। इस दिन सुबह सूर्योदय से पहले नदी के घाट पर पहुंचकर उगते सूर्य को अर्घ्य देते हैं। इसके बाद छठ माता से संतान की रक्षा और पूरे परिवार की सुख शांति का वर मांगा जाता है। पूजा के बाद व्रति कच्चे दूध का शरबत पीकर और थोड़ा प्रसाद खाकर व्रत को पूरा करती हैं, जिसे पारण या परना कहा जाता है।
छठ पूजा विधि
छठ पूजा के लिए पूजन सामग्री
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बांस की 3 बड़ी टोकरी, बांस या पीतल के बने 3 सूप, थाली, दूध और ग्लास
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चावल, लाल सिंदूर, दीपक, नारियल, हल्दी, गन्ना, सुथनी, सब्जी और शकरकंदी
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नाशपती, बड़ा नींबू, शहद, पान, साबुत सुपारी, कैराव, कपूर, चंदन और मिठाई
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प्रसाद के रूप में ठेकुआ, मालपुआ, खीर-पुड़ी, सूजी का हलवा, चावल के बने लड्डू
अर्घ्य देने की विधि
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बांस की टोकरी में उपरोक्त सामग्री रखें।
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सूर्य को अर्घ्य देते समय सारा प्रसाद सूप में रखें और सूप में ही दीपक जलाएँ।
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फिर नदी में उतरकर सूर्य देव को अर्घ्य दें।
छठ पूजा से जुड़ी पौराणिक कथा
छठ पर्व पर छठी माता की पूजा की जाती है, जिसका उल्लेख ब्रह्मवैवर्त पुराण में भी मिलता है। एक कथा के अनुसार प्रथम मनु स्वायम्भुव के पुत्र राजा प्रियव्रत को कोई संतान नहीं थी। इस वजह से वे दुःखी रहते थे। महर्षि कश्यप ने राजा से पुत्र प्राप्ति के लिए यज्ञ करने को कहा। महर्षि की आज्ञा अनुसार राजा ने यज्ञ कराया। इसके बाद महारानी मालिनी ने एक पुत्र को जन्म दिया लेकिन दुर्भाग्य से वह शिशु मृत पैदा हुआ। इस बात से राजा और अन्य परिजन बेहद दुःखी थे। तभी आकाश से एक विमान उतरा जिसमें माता षष्ठी विराजमान थीं। जब राजा ने उनसे प्रार्थना कि, तब उन्होंने अपना परिचय देते हुए कहा कि
मैं ब्रह्मा की मानस पुत्री षष्ठी देवी हूं। मैं विश्व के सभी बालकों की रक्षा करती हूं और निःसंतानों को संतान प्राप्ति का वरदान देती हूं।
इसके बाद देवी ने मृत शिशु को आशीष देते हुए हाथ लगाया, जिससे वह जीवित हो गया। देवी की इस कृपा से राजा बहुत प्रसन्न हुए और उन्होंने षष्ठी देवी की आराधना की। ऐसी मान्यता है कि इसके बाद ही धीरे-धीरे हर ओर छठ पूजा का प्रसार हो गया।
आइये जानते हैं छठ पूजा की क्या है कहानी
कथा के अनुसार प्रियव्रत नाम के एक राजा थे और उनकी पत्नी मालिनी थी। राजा को कोई संतान नहीं थी जिसकी वजह से राजा और रानी दोनों बहुत दुखी रहते थे। पुत्र प्राप्ति के लिए राजा ने महर्षि कश्यप से पुत्रेष्टि यज्ञ करवाया।
इस यज्ञ के फलस्वरूप रानी गर्भवती हो गईं लेकिन 9 महीने बाद रानी को मरा हुआ बच्चा पैदा हुआ। जब ये खबर राजा तक पहुंची तो वो इतना दुखी हुए कि आत्महत्या का मन बना लिया। राजा ने जैसे ही आत्महत्या की कोशिश की वैसे ही उनके सामने एक देवी प्रकट हुईं।
देवी ने राजा से कहा कि मैं षष्ठी देवी हूं और मैं लोगों को पुत्र का सौभाग्य प्रदान करती हूं। देवी ने राजा से कहा कि अगर तुम सच्चे मन से मेरी पूजा करते हो तो मैं तुम्हारी सभी मनोकामनाएं पूरी करूंगी और तुम्हें पुत्र रत्न दूंगी। राजा ने देवी के कहे अनुसार उनकी पूजा की।
राजा और उनकी पत्नी ने कार्तिक शुक्ल की षष्ठी तिथि को पूरे विधि विधान से देवी षष्ठी की पूजा की और उसके फलस्वरूप उन्हें पुत्र की प्राप्ति हुई। तब से छठ पर्व मनाया जाने लगा। छठ पर्व को लेकर एक और कथा कही जाती है और वो ये कि जब पांडव अपना सारा राजपाट जुए में हार गए तो द्रौपदी ने छठ व्रत रखा। इस व्रत के प्रभाव से उनकी मनोकामनाएं पूरी हुई और पांडवों को उनका राजपाट वापस मिल गया।
छठ पूजा का महत्व
छठ पूजा धार्मिक और सांस्कृतिक आस्था का लोकपर्व है। यही एक मात्र ऐसा त्योहार है जिसमें सूर्य देव का पूजन कर उन्हें अर्घ्य दिया जाता है। हिन्दू धर्म में सूर्य की उपासना का विशेष महत्व है। वे ही एक ऐसे देवता हैं जिन्हें प्रत्यक्ष रूप से देखा जाता है। वेदों में सूर्य देव को जगत की आत्मा कहा जाता है। सूर्य के प्रकाश में कई रोगों को नष्ट करने की क्षमता पाई जाती है। सूर्य के शुभ प्रभाव से व्यक्ति को आरोग्य, तेज और आत्मविश्वास की प्राप्ति होती है। वैदिक ज्योतिष में सूर्य को आत्मा, पिता, पूर्वज, मान-सम्मान और उच्च सरकारी सेवा का कारक कहा गया है। छठ पूजा पर सूर्य देव और छठी माता के पूजन से व्यक्ति को संतान, सुख और मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है।