जयपुर : गोवर्धन पर्वत की पूजा क्यों की जाती है, जानिए गोवर्धन पर्वत का धार्मिक महत्व

गोवर्धन पूजा : दीपावली के ठीक अगले दिन गोवर्धन पूजा की परंपरा रही है, लेकिन इस बार Solar Eclipse के चलते गोवर्धन पूजा बुधवार को की जा रही है। आज घरों में जहां गोबर के गोवर्धन बनाकर उनकी सपरिवार पूजा-अर्चना होगी। वहीं मंदिरों में ठाकुरजी को Annakoot का भोग लगाकर दोना प्रसादी व पंगत प्रसादी का आयोजन किया जाएगा। गोवर्धन पूजा के दिन प्रातः स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण कर अपने इष्ट देवता गिरिराज जी का ध्यान किया जाता है।

इसके पश्चात अपने घर या फिर देव स्थान के मुख्य द्वार के सामने गोवर्धन पर्वत बनाकर पूजा की जाती है। यहां साक्षात गोवर्धन स्वयं विराजमान हैं। सनातन धर्म में गोवर्धन पर्वत को रक्षा कर मनोकामना पूरी करने वाला देवता बताया है। दीपावली के बाद देश में ही नहीं बल्कि पूरे विश्व में गोवर्धन जी की पूजा होती है। गोवर्धन पूजा के मुख्य केंद्र गोवर्धन धाम में विराजमान गोवर्धन पर्वत की पूजा क्यों होती है इसके पीछे सोलह कला अवतारी भगवान श्रीकृष्ण की लीलाओं का अनूठा वर्णन है।

गोवर्धन पूजा अन्नकूट के रूप में:
इन्द्र का गर्व चूर करने के लिए गोवर्धन पूजा का आयोजन श्रीकृष्ण ने ब्रजवासियों से करवाया था। यह आयोजन अन्नकूट पूजन के रूप में किया जाता है। इसकी शुरूआत द्वापर युग से मानी जाती है। उस समय लोग इंद्र देवता की पूजा करते थे। अनेकों प्रकार के भोजन बनाकर तरह-तरह के पकवान व मिठाईयों का भोग लगाते थे। कहते हैं कि मेघ देवता राजा इंद्र का पूजन कर प्रसन्न करने के लिए ऐसा आयोजन करते थे। एक बार भगवान श्रीकृष्ण ग्वाल-वालों के साथ गाय चराते हुए गोवर्धन पर्वत के पास पहुंचे तो वह यह देखकर हैरान हो गए कि गोपियां 56 प्रकार के भोजन बनाकर बड़े उत्साह से उत्सव मना रही थीं। कृष्ण ने गोपियों से इस बारे में पूछा तो गोपियों ने बताया कि इंद्र देवता प्रसन्न होंगे और ब्रज में वर्षा होगी जिसमें अन्न पैदा होगा। इस पर कृष्ण ने गोपियों से कहा कि इंद्र देवता में ऐसी क्या शक्ति है जो पानी बरसाता है।

गोवर्धन पर्वत की शरण में चलो:

इससे ज्यादा शक्ति तो गोवर्धन पर्वत में है, इसी कारण वर्षा होती है। हमें इंद्र देवता के स्थान पर गोवर्धन पर्वत की पूजा करनी चाहिए। ब्रजवासी कृष्ण के बताए अनुसार गोवर्धन की पूजा मेें जुट गए। सभी ब्रजवासी घर में अनेकों प्रकार के पकवान बनाकर बताई विधि के अनुसार गोवर्धन पर्वत की पूजा करने लगे। कृष्ण द्वारा किए गए इस अनुष्ठान को देवराज इंद्र ने अपना अपमान समझा तथा क्रोधित होकर अहंकार में मेघों को आदेश दिया कि वे ब्रज में मूसलाधार बारिश कर पूरे ब्रज को तहस-नहस कर दें। ब्रज में मूसलाधार बारिश होने पर ब्रजवासी घबरा गए तथा कृष्ण के पास पहुंचकर इंद्र देव के प्रकोप से रक्षा का निवेदन करने लगे। ब्रजवासियों की पुकार पर कृष्ण बोले कि सभी अपनी गऊओं सहित गोवर्धन पर्वत की शरण में चलो। यही गोवर्धन पर्वत ही सबकी रक्षा करेंगे।

इद्र देवता को अपनी भूल पर पश्चाताप हुआ:

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सभी ब्रजवासी अपने पशुधन के साथ गोवर्धन पर्वत की तलहटी में पहुंच गए। यहीं श्रीकृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को अपनी कनिष्ठ उंगली पर उठा लिया। सात दिन तक सात वर्ष के बालक कृष्ण ने सात कोस में फैले गोवर्धन पर्वत को सुरक्षा का कवच बनाया। यह चमत्कार देख देवराज इंद्र ब्रह्मा जी की शरण में आ गए तो ब्रह्मा जी ने उन्हें श्रीकृष्ण की वास्तविकता बताई। इद्र देवता को अपनी भूल पर पश्चाताप हुआ। ब्रज जाकर श्रीकृष्ण के चरणों में गिरकर क्षमा-याचना करने लगे। सातवें दिन श्रीकृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को नीचे रखा और ब्रजवासियों से कहा कि आज से प्रत्येक ब्रजवासी गोवर्धन पर्वत की प्रत्येक वर्ष अन्नकूट कर पूजा करके उत्सव मनाया करेंगे। यही उत्सव अन्नकूट उत्सव के नाम से कहलाता है।

गोवर्धन पर्वत का धार्मिक महत्व:
हिंदू धर्म में मान्यता है कि इसकी परिक्रमा करने से मांगी गई सभी मुरादें पूरी हो जाती हैं। यह आस्था का अनूठा मिसाल हैं। इसलिए इस पर्वत की लोट-लोट कर भी परिक्रमा की जाती है। परिक्रमा के लिए 21 किमी के फेरे लगाते हैं। परिक्रमा के रास्ते में पूजनीय स्थल हैं। दानघाटी मंदिर, आन्यौर, राजस्थान सीमा के अंतर्गत पूंछरी के लौठा, जतीपुरा मुखारविंद मंदिर, राधाकुंड में राधा-श्याम कुंड, कुसुम सरोवर, मानसी गंगा मुखारविंद मंदिर दर्शनीय हैं जहां आज श्रद्धालु पहुंचते हैं।

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