मोहन भागवत का चुनाव को लेकर बड़ा बयान कहा- ‘लड़ने में भी एक मर्यादा होती है लेकिन उसका पालन नहीं हुआ…’

आरएसएस का ‘राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ कार्यकर्ता विकास वर्ग-द्वितीय समापन समारोह’ कल यानी सोमवार को नागपुर में हुआ। इस दौरान संघ प्रमुख मोहन भागवत धर्म, समाज और लोकतंत्र जैसे विषयों पर अपने विचार रखे साथ ही हाल ही में संपन्न हुए लोकसभा चुनाव पर भी वो बयान देते हुए कहा कि चुनाव के परिणाम आ चुके हैं। सरकार भी बन गई है लेकिन चर्चा अभी भी चल रही है। जो हुआ वो क्यों हुआ, कैसे हुआ और क्या हुआ ? ये (चुनाव) देश के प्रजातंत्र में हर पांच साल में होने वाली घटना है। अपने देश के संचालन के लिए कुछ निर्धारण करने वाला महत्वपूर्ण प्रसंग है। मगर उस पर ही चर्चा करते रहें, इतना महत्वपूर्ण क्यों है। समाज ने अपना मत दे दिया है। उसके हिसाब से सब कुछ होगा। क्यों और कैसे हुआ? हम संघ के लोग इसमें नहीं पड़ते।

 

मोहन भागवत ने कहा कि कल ही सत्य प्रकाश महाराज जी ने कबीर जी वचन बताया ‘निर्बंधा बंधा रहे बंधा निर्बंधा होय, कर्म करे कर्ता नहीं, दास कहाय सोय’। जो सेवा करता है वो मर्यादा से चलता है। काम करते सब लोग हैं लेकिन ‘कुसलस्स उपसम्पदा’ का ध्यान रखते हुए काम करना चाहिए। काम करते समय दूसरों को धक्का नहीं लगना चाहिए। इसी मर्यादा का ध्यान रखते हुए हम काम करते हैं। यही हमारा धर्म और संस्कृति है। इसका पालन करके जो चलता है, उसमें अहंकार नहीं आता है। वही सेवा करने का अधिकारी होता है।

 

हम इन बातों में उलझे रहेंगें तो काम रुक जाएंगे। चुनाव प्रचार में दो पक्ष रहते हैं, इस वजह से स्पर्धा रहती है लेकिन इसमें भी एक मर्यादा है कि असत्य का उपयोग नहीं करना है। चुने गए लोग संसद में जाकर अपने देश को चलाएंगे। सहमति से चलाएंगे। हमारे यहां यही परंपरा है।

 

‘समानो मंत्र: समिति: समानी, समानम् मनः सह चित्तम् एषाम्’ इसमें कहा गया है कि प्रत्येक व्यक्ति का चित्त मानस अलग होता ही है। इसलिए 100 प्रतिशत मतों का मिलान होना संभव नहीं है।

 

आगे संघ प्रमुख ने कहा कि संसद क्यों है और उसमें दो पक्ष क्यों हैं? ये इसलिए हैं क्योंकि सिक्के के दो पहलू होते हैं। सहमति बने इसलिए संसद बनती है। चुनाव में जिस तरह एक-दूसरे को लताड़ना हुआ और लोग बटेंगे, इसका भी ख्याल नहीं रखा गया। बिना कारण संघ जैसे संगठन को घसीटा गया। टेक्नोलॉजी का सहारा लेकर असत्य बातें परोसी गईं। सज्जन विद्या का इस तरह उपयोग नहीं करते। ऐसे देश कैसे चलेगा। मैं विरोधी पक्ष को प्रतिपक्ष कहता हूं। वो एक पहलू उजागर करता है। हमारे देश के सामने चुनौतियों खत्म नहीं हुई हैं। पिछली दस सालों में बहुत कुछ अच्छा हुआ है। विज्ञान और संस्कृति के क्षेत्र में हम आगे बढ़ रहे हैं लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि हम चुनौतियों से मुक्त हो गए हैं। हमें अभी अन्य समस्याओं से राहत लेनी है।

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