सतयुग दर्शन वसुन्धरा, गाँव भूपानी, फरीदाबाद, के प्रांगण में, रामनवमी-यज्ञ, वार्षिक-महोत्सव के अवसर पर हर्षोल्लास के साथ विशाल शोभायात्रा आयोजित की गई। आश्चर्यजनक किन्तु सत्य कि इन देश-विदेश से आए हजारों श्रद्धालुओं की श्रद्धा और विश्वास का केन्द्र बिंदु न कोई शरीर है न कोई तस्वीर अपितु यहाँ तो सभी सतवस्तु के कुदरती ग्रन्थ को आधार मानकर व्यक्तिगत चरित्र-निर्माण की अवधारणा पर ही महत्व देते हैं। वार्तालाप के दौरान मालूम हुआ कि सभी के श्रद्धेय इस कुदरती ग्रन्थ में आने वाले युग यानि सतयुग के संविधान का विस्तृत वर्णन है। इस अभूतभूर्व शोभा-यात्रा में आगे-आगे सतवस्तु के कुदरती ग्रन्थ की सवारी, मार्ग के दोनों ओर श्रद्धा और विश्वास को प्रकट करता बैंड, पीछे-पीछे अपने हार्दिक उद्गारों को नृत्य-शैलियों के द्वारा व्यक्त करते सुसज्जित बाल कलाकारों तथा प्रसन्नमुद्रा में श्वेत वस्त्र धारण किए हुए और गुलानारी दुपट्टा ओढ़े हुए हजारों श्रद्धालुओं की लम्बी कतारें चल रही थीं। पूरे वसुन्धरा प्रांगण की शोभा दर्शनीय थी। सम्पूर्ण वातावरण आनंद और हर्षोल्लास से पूर्ण था।
इसी आनंदमय वातावरण में शोभा-यात्रा जैसे ही समभाव-समदृष्टि के स्कूल ‘ध्यान-कक्ष’’ में पहुँची तो वैसे ही ट्रस्ट के मार्गदर्शक सजन ने कहा कि संसार में व्यापक नैतिक परिवर्तन लाने हेतु, कुदरत के हुक्मानुसार आज और अभी से आध्यात्मिक क्रांति की लहर के आरम्भ होने का बिगुल बजा दिया गया है। अत: सजनों समय रहते ही अपने आचार-विचार व व्यवहार को परिष्कृत कर व अपने ख़्याल को ध्यान वल व ध्यान को प्रकाश वल जोड़, अपने मन को अखंडता से प्रभु में लीन कर दो ताकि आत्मदर्शन कर परमानंद का अनुभव कर सको।
सब ऐसा करने में कामयाब हो सको इस हेतु उन्होंने कहा कि यह आध्यात्मिक क्रांति सामाजिक जीवन में त्वरित स्वाभाविक बदलाव लाने के निमित्त समर्पित है। अत: युगों-युगांतरों से अपनाई अधर्मयुक्त विकृत नकारात्मक विचारधाराओं से उबर, कुदरती आत्मिक ज्ञान की महत्ता से परिचित हो, अंतर्निहित विवेकशक्ति के बलबूते पर आत्मा-परमात्मा के यथार्थ को समझ, आत्मोद्धार करने में सक्षम बनो। मानो यही आज समय की माँग भी है और इस माँग को पूरा करने पर ही आप अपनी आद्सभ्यता यानि सतयुगी आचार-संहिता को पुन अपना कर समभाव-समदृष्टि की युक्ति अनुसार, सत्य-धर्म के निष्काम मार्ग पर प्रशस्त होने में कामयाब हो, परमशांति प्राप्त कर सकते हो व सारे ब्रह्माण्ड में, सुकर्मों का राज स्थापित कर, सजन युग की बुनियाद को पक्का कर सकते हो। श्री सजन जी ने कहा कि निश्चित रूप से ऐसा होने पर ही पुन: धर्म का परचम लहरा सकता है और पापों के बोझ तले दबी, रोती हुई भारत माता पुन: हर्षा कर वीर सुपुत्रों के शौर्य पर गौरान्वित होते हुए कह सकती है:- इंकलाब जिन्दाबाद, इंकलाब जिन्दाबाद, इंकलाब जिन्दाबाद
सजन ने आगे कहा कि नि:संदेह सजनों सामाजिक स्तर पर इतना बड़ा सार्थक परिवर्तन लाने हेतु, समय – हमसे न केवल विषय विकृतियों का त्याग करने की अपितु सम, संतोष, धैर्य जैसे महान सद्गुणों को अपना कर, सच्चाई-धर्म की राह पर निष्कामता व परोपकारिता की भावना से स्थिरता से चलने वाले निषंग वीरों का आदर्श कायम करने की अपेक्षा भी करता है। अत: इस कार्य की सिद्धि हेतु सर्वप्रथम खुद में स्वाभाविक परिवर्तन लाओ यानि सत्यता से अपने गुण/दोषों, अच्छाइयों/बुराईयों, सबलताओं/दुर्बलताओं का — ध्यानपूर्वक अवलोकन कर, आत्मसंयम द्वारा उनको दूर करो। इस तरह अपने मन और इंद्रियों पर पूर्णत: नियंत्रण रखते हुए, आत्मसुधार करो और अपने व्यक्तित्व/चरित्र को परिष्कृत यानि संशोधित कर आत्मविजय प्राप्त करो। मानो ऐसा करने पर ही जिह्वा स्वतन्त्र, संकल्प स्वच्छ, दृष्टि कंचन, वृत्ति, स्मृति, बुद्धि व स्वाभाविक ताना-बाना निर्मल हो सकता है। मानवीयता पुष्ट हो सकती है और हम विषमता से समता की ओर प्रशस्त होते हुए सहज ही आत्मोद्धार के लक्ष्य को भेद सकते हैं।