दिल्ली : केंद्रीय अस्पतालों की उपेक्षा से बिस्तरों और चिकित्सा कर्मचारियों की कमी के कारण अस्पतालों में इलाज कराना हो रहा कठिन !

दिल्ली प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष अरविंदर सिंह लवली ने कहा कि यह गंभीर चिंता का विषय है कि दिल्ली में केंद्र सरकार द्वारा आर्थिक सहायता प्राप्त अस्पताल जिनमें अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान, सफदरजंग, राम मनोहर लोहिया, लेडी हार्डिंग और सुचेता कृपलानी अस्पताल शामिल हैं। इनमें कर्मचारियों और बिस्तरों की भारी कमी जिसके कारण हजारों रोगियों को इन अस्पतालों में प्रवेश पाने के लिए महीनों तक इंतजार करना पड़ता है।

 

अरविंदर सिंह लवली ने कहा कि कांग्रेस सरकार ने राष्ट्रीय राजधानी में प्रमुख केंद्र-वित्त पोषित अस्पतालों की स्थापना इस उद्देश्य के साथ की कि लोगों को उचित और उत्तम चिकित्सा, उपचार व सुविधाएं प्रदान करना था। उन्होंने कहा कि दुख की बात है कि पिछले 10 वर्षों में भाजपा सरकार ने दिल्ली में केंद्र-वित्त पोषित अस्पतालों की इतनी उपेक्षा की। पड़ोसी राज्यों से लाखों लोग, जो गुणवत्तापूर्ण इलाज के लिए दिल्ली आते हैं, उन्हें बिना इलाज के कारण जीने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है।  इनमें से अधिकतर अस्पतालों में बिस्तरों और कर्मचारियों की कमी है, जिससे ओपीडी (बाह्य रोगी विभाग) में प्रवेश पाना एक कठिन काम हो गया है। उन्होंने कहा कि दलाल इन अस्पतालों के बाहर भोले-भाले मरीजों को लूट रहे हैं।

 

अरविंदर सिंह लवली ने कहा कि दिल्ली में केंद्र सरकार के अस्पतालों की यह खस्ता हालत इसलिए हुई क्योंकि भाजपा सरकार का ध्यान झूठे वादों और आश्वासनों से लोगों को गुमराह करने पर रहा, जबकि दिल्ली के सातों भाजपा सांसदों ने न तो राजधानी के लिए कुछ किया और न ही दिल्ली के विकास के लिए कुछ किया। स्वास्थ्य के बुनियादी ढांचे को बेहतर बनाने भाजपा सांसदों ने कोई महत्वपूर्ण भूमिका नही निभाई, जिसका सबसे खराब उदाहरण कोविड-19 महामारी के दौरान देखा गया था जब दिल्ली के अस्पतालों में मेडिकल ऑक्सीजन सहित बेड और दवाओं की भारी कमी हो गई थी, जिससे हजारों रोगियों की महामारी से मौत हुई थी।

 

लवली ने कहा कि लोकसभा चुनावों के दौरान हर पांच साल के बाद अपने सांसद उम्मीदवारों को बदलना भाजपा की एक नियमित प्रक्रिया बन गई है क्योंकि मौजूदा सांसद लोकसभा के लिए निर्वाचित होने के बाद अपने संसदीय क्षेत्रों से गायब हो जाते हैं, यह एक आम बात है, पिछले दो लोकसभा चुनावों में लगातार भाजपा द्वारा उम्मीदवार बदलने घटना जीता जागता उदाहरण है।

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