भारत मंगलवार को अपना 77वां स्वतंत्रता दिवस मना रहा है। आजाद भारत को एकजुट करना इतना आसान नहीं था। खासतौर से राजस्थान सहित उन राज्यों में जो देश के बॉर्डर पर थे। राजस्थान में ऐसी कई रियासतें थी, जो पाकिस्तान में मिलना चाहती थी।
इतिहास के जानकार बताते हैं कि अंग्रेजों का प्लान भारत को मल्टीपल डिविजन में बांटने का था। 1947 में 4 जून को तय हुआ था कि देश को 15 अगस्त को आजाद करेंगे। आजादी के दौरान रियासतों के एकीकरण के वक्त रियासतों के सामने तीन विकल्प रखे गए।
- वे भारत के साथ आएं
- पाकिस्तान के साथ चले जाएं
- रियासतें स्वतंत्र रहना चाहें तो वो विकल्प भी था। इसे स्टैंडस्टिल कहा गया।
इतिहास के जानकार बताते हैं कि अंग्रेजों को कम्यूनल आधार पर भारत को डिवाइड करना था। इसलिए रियासतों को स्वतंत्र रहने का थर्ड ऑप्शन दिया गया। इस विकल्प के चलते देशी रियासतें अपना फायदा देखने में उलझ गई। इनमें बॉर्डर स्टेटस ने सबसे ज्यादा परेशान किया। राजस्थान में भी दिक्कतें आई।
इस स्टोरी में जानेंगे राजस्थान की कौनसी रियासतें सबसे पहले जुड़ी और किन रियासतों को जोड़ने में मुश्किलों का सामना करना पड़ा…
मारवाड़ को पाकिस्तान में मिलाने के लिए दिया लालच
राजस्थान की मारवाड़, बीकानेर और जैसलमेर रियासतें इतनी आसानी से जुड़ने को तैयार नहीं थी। इन रियासतों को पाकिस्तान भी खुद में सम्मिलित कर लेना चाहता था। इसके लिए पाकिस्तान और मोहम्मद अली जिन्ना की ओर से कई तरह के प्रलोभन भी दिए थे। मगर जैसे तैसे उस दौरान रियासती विभाग के सीनियर मोस्ट आईपीएस ऑफिसर और रिफॉर्म कमिश्नर वीपी मेनन की मदद से सरदार पटेल ने इन्हें ऐसा करने से रोका।
डॉ. भानू कपिल बताते हैं कि जोधपुर के महाराजा उम्मेद सिंह का निधन 9 जून 1947 को हो गया था। वे अंग्रेजों और लार्ड माउंटबैटन के काफी करीबी थे। तबतक रियासतों के विलय की कार्रवाई शुरू नहीं हुई थी।
ऐसे में उम्मेद सिंह के निधन के बाद हनवंत सिंह राजा बने। तब वे 24 साल के थे। हनवंत सिंह के दिमाग में था कि उसे कराची तक के रेलवे के अधिकार मिल जाएं। माउंटबेटन की डायरी, सरदार पटेल के कॉरसपोंडेंस और इंटेलिजेंस ब्यूरो की रिपोर्ट में भी इसका जिक्र है।
डॉ. कपिल बताते हैं कि हनवंत सिंह ने जिन्ना से साइलेंटली मुलाकात भी की थी। यही वजह थी कि अंत तक मारवाड़ को लेकर नेगोसिएशन चलता रहा।
15 अगस्त से मात्र कुछ दिनों पहले तक मारवाड़ सहित कुछ रियासतों ने साइन किए थे। जिन्ना ने इसके लिए मारवाड़ को रेलवे के राइट देने, सांसद बनाने और ब्लैंक चेक देकर मुआवजे सहित अन्य लालच भी दिए थे।
किस वजह से पाकिस्तान से नहीं जुड़ा मारवाड़
बॉर्डर स्टेट होने के चलते मारवाड़, बीकानेर और जैसलमेर का विलय आसान नहीं हो रहा था। जब पाकिस्तान के साथ जाने की बात आई तो जैसलमेर राज्य के एक सवाल ने हालात पूरी तरह बदल दिए। उस दौरान जैसलमेर के महारावल गिरधर सिंह ने यह बात रखी कि इन राज्यों में मोटे तौर पर जनता हिंदू है।
ऐसे में बंटवारे के वक्त हिंदू-मुस्लिम फसाद होंगे तो पाकिस्तान का रुख क्या रहेगा। इसपर जिन्ना और पाकिस्तान कोई जवाब नहीं दे पाए। इसी बात का असर मारवाड़ और बीकानेर पर भी पड़ा।
इसी दौरान ये मुलाकातों और बातें वीपी मैनन और सरदार वल्लभ भाई पटेल तक पहुंची। इसके बाद वीपी मैनन हनवंत सिंह से मिले। इतिहासकार बताते हैं कि हनवंत सिंह अच्छे पायलट थे और उन्हें प्लेन उड़ाना आता था। जब वीपी मेनन उनसे मिले तो हनवंत सिंह खुद उन्हें प्लेन उड़ाकर दिल्ली लेकर आए।
यहां माउंटबैटन और सरदार पटेल से उनकी मुलाकात हुई। इसके बाद हनवंत सिंह को यह आश्वासन दिया गया कि जो जिन्ना कह रहे हैं वो हम भी पूरा कर सकते हैं। इसके बाद मारवाड़ ने भी भारत के साथ आने के लिए साइन कर दिए।
तिरंगा फहराया तो काले साफे में थे हनवंत सिंह
इतिहासकार बताते हैं कि जब 15 अगस्त को जोधपुर में तिरंगा फहराया गया तब हनवंत सिंह ने काला साफा पहना था। इसपर जब लोगों ने बात की तो हनवंत सिंह का कहना था कि ये हमारे लिए खुशी की बात नहीं है। हालांकि इस तरह की अप्रोच के बावजूद हनवंत सिंह चुनाव जीते। उन्होंने पूर्व सीएम रहे जयनारायण व्यास को पहले विधानसभा चुनाव में हराया।
विदेशी ताकतों के लिए महत्वपूर्ण थी हवाई पटि्टयां
जोधपुर का एयरपोर्ट कई विदेशी ताकतों के लिए महत्वपूर्ण था। इस एयरपोर्ट पर अमेरिकियों की भी नजर थी। रणनीतिक तरीके से यह काफी महत्वपूर्ण था। अमेरिका और इंग्लैंड के लिए रूस को कंट्रोल करने की दृष्ठि से यह एयरपोर्ट काफी जरूरी था।
मगर जवाहरलाल नेहरू इसके पक्ष में नहीं थे। यही वजह रही कि भारत ने जोधपुर एयरपोर्ट का इस्तेमाल नहीं होने दिया। जबकि पाकिस्तान ने अपना पेशावर और क्वैटा अमेरिकियों को दे दिया। वहां से वे रूस को कंट्रोल करते थे। इस वजह से भी जोधपुर के विलय को लेकर परेशानियां थी।
सबसे पहले मेवाड़ ने की भारत में मिलने की पहल
- मेवाड़ : मेवाड़ वो रियासत थी जो सबसे पहले भारत से जुड़ी। तब मेवाड़ के महाराणा भूपाल सिंह ने कहा था कि स्वाधीनता का यज्ञ हो रहा है तो मैं इसमें अपनी आहूति दूंगा। सबसे पहले भारत में सम्मलित होने वालों में महाराणा भूपाल थे। सबसे महत्वपूर्ण स्टेट का सबसे पहले समर्पित होना एक बड़े मैसेज के तौर पर गया।
- यही वजह रही कि महाराणा मेवाड़ और भूपाल सिंह को महाराज प्रमुख बनाया गया। इसके लिए भूपाल सिंह को 20 लाख पेंशन दी जाती थी। लाख तो सिर्फ धर्म-कर्म और पुण्य के लिए मिलते थे। मेवाड़ कई केंद्रीय नेताओं की निगाहों में महत्वपूर्ण था। इसी का असर अन्य रियासतों पर भी पड़ा। जब मेवाड़ सबसे आगे आया तो मनोवैज्ञानिक दबाव अन्य रियासतों पर भी पड़ा और उन्होंने भी हामी भरी।
- आमेर : आमेर के राजा सवाईमानसिंह यूरोप के ट्रिप पर थे। तब आमेर के प्रधानमंत्री ने भारत के साथ जुड़ने के दस्तखत किए। आमेर के मुगलों के समय से लेकर अंग्रेजों से भी अच्छे संबंध रहे थे। आमेर इस मसले पर बिलकुल चुप था। वह शांति से भारत के साथ जुड़ गया।
- अलवर : अलवर रियासत भारत के साथ जुड़ तो गई थी मगर उसके महात्मा गांधी और जवाहरलाल नेहरू से मतभेद थे। इतिहासकार बताते हैं कि महात्मा गांधी के मर्डर में नाथूराम गोडसे के सहयोग का आरोप अलवर पर लगा था। इसी वजह से अलवर स्टेट के महाराज तेज सिंह को कनॉट पैलेस पर होटल मरीना में हाउस अरेस्ट करके रखा गया था।
- यह भी कहा गया था कि अलवर स्टेट के प्रधानमंत्री एनबी खरे ने रिवॉल्वर नाथूराम गोडसे को अलवर म्यूजियम से उपलब्ध करवाई थी। हालांकि बाद में खौसला कमीशन सहित अन्य रिपोर्ट में इसे निराधार बताया गया। इनके खासतौर से जवाहरलाल नेहरू से वैचारिक मतभेद थे।
- बीकानेर : काफी हद तक मारवाड़ के नक्शे कदम पर चलता था। दोनों रियासतों को राठौड़ ही संभालते थे। दोनों रियासतों के राजा आपस में भाई थे। यही वजह रही कि मारवाड़ के साथ बीकानेर ने भी उस दौरान आंख दिखाई थी। वहीं बॉर्डर स्टेट होने के कारण भी बीकानेर के साथ थोड़ी समस्या आई। इसके अलावा कोटा, झालावाड़, बूंदी और डूंगरपुर जैसी रियासतें पहले से ही भारत से मिल गई थी।
इतिहासकार प्रोफेसर चंद्रशेखर शर्मा बताते हैं कि मारवाड़ ने उस दौरान काफी अड़ंगे लगाए थे। सिरोही का इलाका और मारवाड़ उस समय पाकिस्तान में शामिल होना चाहता था। इसमें मेवाड़ के राजा भूपाल सिंह का भी बड़ा रोल रहा। जब उन्हें मालूम चला तो कई तरीकों से इन्हें मैनेज करने की कोशिश की। इसे बाद इन्हें एकीकरण में बैठाया। यही वजह थी कि भूपाल सिंह को आमेर से भी ऊपर महाराज प्रमुख का पद दिया गया। जबकि आमेर को उनसे नीचे रखा गया।
इस तरह हुआ था राजस्थान का एकीकरण
राजस्थान का एकीकरण 7 चरणों में पूरा हुआ था। 19 रियासतों में सबके अपने पद और प्रतिष्ठा को लेकर अभिमान थे। भाषा और संस्कृति को लेकर अलग पहचान थी। वे ये चाहते थे कि उन्हें किस तरह महत्व का पद प्राप्त हो। इस आधार पर परिसीमन कर दिया गया था कि 10 लाख से ज्यादा आबादी और 1 करोड़ से ज्यादा आय है वो स्वतंत्र रियासत के रूप में रह सकते थे। ऐसे में बड़ी रियासतें यही चाहती थी कि स्वतंत्र रहें।
प्रोफेसर चंद्रशेखर शर्मा बताते हैं कि महात्मा गांधी की हत्या के बाद अलवर को लेकर एकीकरण में दिक्कतों का सामना करना पड़ा। वहीं सिरोही रियासत का प्रशासन बम्बई को सौंपा हुआ था। वहीं अजमेर केंद्र की रियासत के रूप में थी। इसी तरह जोधपुर और टोंक रियासत नहीं चाहती थी कि वे भारत में शामिल हो, वे पाकिस्तान में शामिल होने की बात करती थी। इसी तरह सभी रियासतों को साथ में जोड़ते हुए एकीकरण किया गया।
इसमें मेवाड़ के शासक भूपाल सिंह को महाराज प्रमुख का पद दिया गया। उनके पास फिर ये दायित्व भी आ गया था कि कैसे सभी रियासतों को एक किया जाए। मेवाड़ के बाद कोटा को ने सबसे पहले एकीकरण की इच्छा जाहिर की। उन्होंने अपना संघ बनाया इस कारण से कोटा को भी राजप्रमुख का पद दिया गया। वहीं बाद में जयपुर शामिल हुआ तो उन्हें भी राजप्रमुख का पद दिया गया।
- सोर्स : वीपी मैनन, द ट्रांसफर ऑफ पावर, दस वाल्यूम, द स्टोरी ऑफ इंटीग्रेशन ऑफ इंडियन स्टेट, एचवी हडसन : द ग्रेट डिवाइड, लियोर्नाड मौसले : द लास्ट डेज ऑफ ब्रिटिश राज इन इंडिया, सरदार पटेल कॉरसपोंडेंस : एडिटेड बाय दुर्गादास, मिशन विद माउंटबैटन, सीएच फिलिप्स : पार्टिशन ऑफ इंडिया, पेंड्रल मून : डिवाइड एंड क्विट