हरियाणा : HC में हरियाणा सरकार का पक्ष: नूंह में निर्माण गिराना जातीय सफाए की कवायद नहीं, कार्रवाई कानून के तहत

हरियाणा : नूंह में हिंसा के बाद सैकड़ों निर्माण पर बुलडोजर चलाने की कार्रवाई को लेकर हरियाणा सरकार ने शुक्रवार को पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट में अपना जवाब दाखिल किया। हरियाणा सरकार ने स्पष्टीकरण देते हुए कहा कि यह कार्रवाई अतिक्रमण हटाओ अभियान का हिस्सा थी। इसे जातीय सफाए के तौर पर नहीं देखा जाना चाहिए। कार्रवाई कानून के तहत उचित प्रक्रिया का पालन करते हुए की गई थी, इसे राजनीतिक एजेंडा नहीं बनने दिया जाना चाहिए।

शुक्रवार को मामला जस्टिस अरुण पल्ली पर आधारित खंडपीठ के समक्ष सुनवाई के लिए पहुंचा था, जहां सरकार ने इस मामले में हलफनामा दाखिल करने के लिए मोहलत मांगी थी। जस्टिस अरुण पल्ली ने कहा कि यह एक जनहित याचिका है, जिसे न्यायालय ने संज्ञान लेते हुए सुनना आरंभ किया है। चैप्टर 2 नियम 9 के तहत जब किसी मामले पर अदालत स्वत: संज्ञान लेती है तो उस मामले को हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस के समक्ष प्रस्तुत किया जाता है। उनके आदेश के तहत केस को रोस्टर के अनुसार तीन दिन में किसी बेंच को विचारार्थ भेजा जाता है। आज चीफ जस्टिस की बेंच मौजूद नहीं है, इसलिए केस की सुनवाई अगले शुक्रवार तक के लिए उन्होंने स्थगित कर दी।

हाईकोर्ट के जस्टिस जीएस संधावालिया व जस्टिस हरप्रीत कौर जीवन पर आधारित बेंच ने सात अगस्त को इस मामले में संज्ञान लेकर सरकार से जवाब-तलब किया था। तोड़े गए निर्माणों की जानकारी तलब करते हुए प्रदेश सरकार से पूछा था कि क्या तय कानूनी प्रक्रिया के तहत यह कार्रवाई की जा रही है।

कोर्ट ने कहा था कि ऐसी परिस्थितियों में, हम राज्य को नोटिस जारी करने के लिए बाध्य हैं, क्योंकि यह हमारे संज्ञान में आया है कि हरियाणा सरकार अनावश्यक बल का प्रयोग कर रही है। कोर्ट ने कहा था कि कहीं कानून-व्यवस्था की समस्या की आड़ में किसी विशेष समुदाय की इमारतों को तो नहीं गिराया जा रहा है और क्या यह जातीय सफाए की कवायद तो नहीं है।

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