राजस्थान अब 50 जिलों के साथ देश का तीसरा सबसे ज्यादा जिलों वाला राज्य बन गया है, लेकिन चुनाव से पहले कई और नए जिले और संभाग बनाए जा सकते हैं। खुद मुख्यमंत्री भी इसके संकेत दे चुके हैं। इसलिए नए जिलों के लिए गठित रामलुभाया कमेटी का कार्यकाल भी 6 महीने के लिए बढ़ा दिया गया है। इस कमेटी के पास फिलहाल 32 शहरों या बड़े कस्बों को जिला बनाने के प्रस्ताव आ चुके हैं, जिनका पिछले डेढ़ महीने से परीक्षण किया जा रहा था।
इनमें से 8 से 10 शहरों को जिला बनाने योग्य माना जा रहा है। कई क्षेत्रों की फाइल तो खुद मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने विधायकों-मंत्रियों और आम जनता की मांग पर कमेटी के पास भिजवाई है। सूत्रों की मानें तो सरकार जल्द ही और नए जिलों की घोषणा कर सकती है।
इस स्पेशल रिपोर्ट में पढ़िए, कौन-से वो कस्बे हैं, जिन्हें जिला बनाने पर तेजी से मंथन चल रहा है? उन्हें जिला बनाए जाने के पीछे क्या सियासी या भौगोलिक कारण हैं?
कमेटी के पास पहुंचे 30 से ज्यादा नाम
जिला बनाने के लिए गठित राज्य स्तरीय कमेटी के चेयरमैन रिटायर्ड आईएएस रामलुभाया ने मीडिया को बताया कि हमारे पास अब भी 30-32 प्रस्ताव विचाराधीन हैं, जिन्हें जिला बनाने की मांग है। इनमें से 8 से 10 प्रस्ताव ऐसे हैं, जो जिला बनने की लगभग सभी योग्यताओं व मापदंडों को पूरा करते हैं।
उन्होंने कहा कि उनके नेतृत्व वाली कमेटी का कार्यकाल पहले 30 सितंबर था। अब 6 महीने का एक्सटेंशन मिलने के बाद यह कमेटी 31 मार्च-2024 तक काम करेगी। रामलुभाया ने बताया कि जल्द ही कुछ नए जिलों के प्रस्ताव की पूरी रिपोर्ट तैयार कर सरकार को भेजेंगे। इसके बाद आगे राज्य सरकार पर निर्भर करता है कि वो उन शहरों को जिला बनाए या नहीं।
राजस्व मंत्री रामलाल जाट की मानें तो जिलों के साथ-साथ नए संभाग के नाम भी सामने आ सकते हैं।
1. सुजानगढ़ : दिवंगत मंत्री ने किया था वादा, अब तक जिला नहीं बन पाने से है रोष
सुजानगढ़ (चूरू) से कांग्रेस के दिग्गज दिवंगत नेता मास्टर भंवरलाल 2018 का चुनाव जीतने पर जिला बनाने का वादा किया था। 2020 में उनका निधन हो गया। उप चुनाव में यह सीट उनके बेटे मनोज मेघवाल ने जीती। विधायक मनोज मेघवाल ने 15 नवगठित जिलों में सुजानगढ़ का नाम नहीं आने पर क्षेत्र में आंदोलन कर रहे लोगों से वादा किया था कि सीएम गहलोत यहां भी जिले की सौगात देंगे। सुजानगढ़ राजस्थान के 10 सबसे विकसित शहर-कस्बों (गैर जिला) में गिना जाता है। पिछले तीन महीनों से कई बार नागरिक संगठन जिला बनाने की मांग को लेकर प्रदर्शन कर चुके हैं। ऐसे में कमेटी सुजानगढ़ पर भी गंभीरता से विचार कर रही है।
2. सूरतगढ़ : खुद सीएम गहलोत दे चुके जिला बनाने का आश्वासन
भारत-पाकिस्तान की सरहद पर बसा हुआ सूरतगढ़ सैन्य दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण शहर है। साथ ही वहां तापीय बिजली का बड़ा प्लांट है, जो प्रदेश के लिए बहुत खास है। रेगिस्तानी इलाका होने से गांव ढाणी दूर-दूर बसे हुए हैं। सूरतगढ़ फिलहाल जिला मुख्यालय श्रीगंगानगर से 70 और नवगठित जिले अनूपगढ़ से करीब 78 किलोमीटर दूर है। जिला बनाने पर इलाके में सरकार के लिए प्रशासनिक व्यवस्था चलाना ज्यादा आसान हो सकेगा।
सूरतगढ़ को जिला नहीं बनाए जाने के विरोध में एक महीना पहले क्षेत्र के लोग आंदोलनरत थे। पूर्व विधायक गुरुशरण छाबड़ा की पुत्रवधू पूजा छाबड़ा भी धरने पर बैठ गई थीं। तब सीएम गहलोत ने स्वयं पूजा छाबड़ा को अनशन समाप्त करने के लिए मनाया। साथ ही वादा किया कि सूरतगढ़ को जल्द ही जिला बनाया जाएगा। कमेटी सूरतगढ़ को जिला बनाने की फाइल पर स्टडी कर रही है।
3. भिवाड़ी : दो शहर जिले बने, लेकिन भिवाड़ी छूट गया
बसपा से जीतकर कांग्रेस में शामिल हुए 6 विधायकों में से दो संदीप यादव और दीपचंद खैरिया दोनों अपने-अपने क्षेत्र क्रमश भिवाड़ी-तिजारा और खैरथल को जिला बनाने की मांग कर रहे थे। खैरथल को जिला बनाने की घोषणा तो कर दी गई। ऐसे में तिजारा से विधायक संदीप यादव विधानसभा के बाहर ही धरने पर बैठ गए। अंतत: सरकार ने उनकी मांग भी पूरी कर दी और तिजारा को खैरथल के साथ (बहरोड़-कोटपूतली और डीडवाना-कुचामन की तर्ज पर) शुक्रवार को जिला घोषित कर दिया।
अब समस्या यह है कि दोनों शहरों में बड़ा डिस्टेंस है। एसपी-कलेक्टर के कार्यालय कहां होंगे? क्योंकि एसपी पहले से ही भिवाड़ी में बैठ रहे हैं। फिर प्रदेश में सबसे ज्यादा राजस्व देने वाला ब्लॉक भिवाड़ी में कौनसे कार्यालय होंगे। प्रदेश के चुनिंदा 14 शहरों में यूआईटी की तर्ज पर भिवाड़ी में BIDA (भिवाड़ी इंटीग्रेटेड डेवलपमेंट अथॉरिटी) भी है। रीको, उद्योग विभाग, हाईवे के कार्यालय भी हैं। राजस्थान के 33 जिलों के अलावा पुलिस अधीक्षक (एसपी) का केवल भिवाड़ी में ही कार्यालय संचालित है। ऐसे में कमेटी अब भिवाड़ी के लिए भी नए जिले की सिफारिश कर सकती है।
4. भीनमाल : बड़ा व्यापारिक-औद्योगिक कस्बा, राजनीतिक इच्छा शक्ति कमजोर
भीनमाल जालोर जिले में स्थित है और दक्षिणी-पश्चिमी राजस्थान का सबसे बड़ा व्यापारिक-औद्योगिक कस्बा है। हाल ही सीएम गहलोत जब इस क्षेत्र में गए थे तो स्थानीय नागरिकों ने उनसे जिला बनाने की मांग की थी। हालांकि क्षेत्र में किसी बड़े राजनेता की मौजूदगी नहीं होने से जिला बनाने की मांग को लेकर भीनमाल में कोई बड़ा आंदोलन खड़ा नहीं हो पाया है।
पास में स्थित बालोतरा और सांचौर को भी जिला बना दिया गया है। बालोतरा से विधायक मदन प्रजापत करीब ढाई वर्ष से नंगे पैर रहे। उन्होंने बालोतरा को जिला बनाने की मांग के लिए विधानसभा में ही जूते खोल दिए थे। ऐसे ही सीएम गहलोत की कैबिनेट में मंत्री सुखराम विश्नोई ने अपने विधानसभा क्षेत्र सांचौर को जिला बनवा लिया है। अब भीनमाल की व्यापारिक-औद्योगिक प्रगति को देखते हुए कमेटी इसे जिला बनाने पर विचार कर रही है।
5. निम्बाहेड़ा : सीमेंट उद्योग में नंबर वन
चित्तौड़गढ़ जिले में आने वाला निम्बाहेड़ा दक्षिणी राजस्थान का सबसे समृद्ध शहर है। सीमेंट उत्पादन इकाइयों और औद्योगिक कारखानों से यहां समृद्धि आई है। मध्य प्रदेश व राजस्थान की सरहद पर है। यहां से विधायक उदयलाल आंजना गहलोत कैबिनेट में ताकतवर मंत्री हैं। उनकी तरफ से मांग है कि चित्तौड़गढ़ जिले को संभाग और निम्बाहेड़ा को जिला बनाया जाए। अब नए प्रस्तावों में दोनों में से एक मांग संभव लग रही है।
6. लाडनूं : पायलट समर्थक मुकेश भाकर की है मांग
नागौर जिले के लाडनूं कस्बे को कोटपूतली-बहरोड़ और डीडवाना-कुचामन की तर्ज पर सुजानगढ़-लाडनूं (सुजला नाम से) जिला घोषित करवाने की मांग लंबे अर्से से की जा रही है। लाडनूं से सचिन पायलट के समर्थक विधायक मुकेश भाकर प्रयास कर रहे हैं कि लाडनूं जिला बने, हालांकि फिलहाल यह मुश्किल लग रहा है, क्योंकि पायलट समर्थक विधायकों के चुनाव क्षेत्रों को नए जिलों का उपहार नहीं मिला है। अब कमेटी की सिफारिश पर ही सब कुछ निर्भर करता है। लाडनूं कस्बा कमेटी के चुनिंदा विचाराधीन प्रस्तावों में शामिल तो है।
7. मालपुरा (टोंक) : दो-दो विधायकों की नहीं चलने दी
टोंक जिले में आने वाला मालपुरा को जिला बनाने की मांग बरसों पुरानी है, लेकिन हाल ही में जब केकड़ी और दूदू को जिला घोषित किया गया, तब मालपुरा को इनमें मिलाया जा रहा था। मालपुरा को केकड़ी और दूदू में मिलाने के लिए दोनों जगहों के विधायक डॉ. रघु शर्मा व बाबूलाल नागर प्रयास कर रहे थे पर मालपुरा में स्थानीय लोगों ने अनशन, धरने और प्रदर्शन के जरिए राजनीतिक माहौल गर्मा दिया।
वर्तमान विधायक कन्हैयालाल चौधरी सहित चार पूर्व विधायक भी विरोध में उतर गए थे। प्रदेश के बीस सूत्री कार्यक्रम (बीसूका) के चेयरमेन डॉ. चंद्रभान ने भी सीएम से मालपुरा के पक्ष में फैसला करने की मांग की थी। सभी ने एक स्वर में मांग जारी रखी कि मालपुरा को या तो वर्तमान टोंक जिले में ही रखा जाए अन्यथा नया जिला बनाया जाए। अंतत: मालपुरा को दूदू और केकड़ी में नहीं मिलाया गया। अब मालपुरा को अलग से जिला बनाने का प्रस्ताव भी कमेटी के विचाराधीन है।
8. देवली : केकड़ी और शाहपुरा में बंटने का विरोध, अब नए जिले पर विचार
देवली को शाहपुरा (भीलवाड़ा) और केकड़ी (अजमेर) के नए जिलों में शामिल किया जाना प्रस्तावित था। राजस्थान के पूर्व डीजीपी हरीश मीना यहां से कांग्रेस विधायक हैं। मीना वरिष्ठ कांग्रेसी नेता और पूर्व केन्द्रीय मंत्री नमोनारायण मीना के भाई हैं, जो सीएम गहलोत के नजदीकी लोगों में से एक रहे हैं।
देवली को केकड़ी या शाहपुरा में मिलाने से आगामी विधानसभा चुनावों में मीना को परेशानी का सामना करना पड़ता। क्षेत्र के लोगों का विरोध था। क्षेत्रीय लोगों के अनुसार देवली जनसंख्या, उपखंड-तहसील, विधानसभा, हाईवे, कॉलेज, अस्पताल, परिवहन आदि हर दृष्टिकोण से केकड़ी व शाहपुरा से बेहतर स्थिति में है। ऐसे में देवली को केकड़ी या शाहपुरा में मिलाने की बजाय नया जिला बनाया जाना चाहिए। अंतत: सीएम गहलोत ने देवली को केकड़ी व शाहपुर से बाहर ही रखा है। अब कमेटी देवली को जिला बनाने की सिफारिश करने पर विचार कर रही है।
9. खेतड़ी : खेतड़ी को नीमकथाना मे मिलाने में विरोध, अब नए जिले पर विचार होना चाहिए
खेतड़ी को जिला बनाने की मांग को लेकर ग्रामीणो ने एसडीएम को ज्ञापन दिया, खेतड़ी के बाजार बंद किए, अनिश्चितकालीन अनशन भी किया, सर्व समाज के लोगों ने निकाली आक्रोश रैली भी निकाली, लोगों ने किया सद्बुद्धि यज्ञ भी किया लेकिन किसी का कोई फाइदा यहा की जनता को नहीं हुआ।
वेसे ऐतिहासिक व भौगोलिक दृष्टि से देखा जाए तो खेतड़ी पूरे विश्व में अपनी एक अलग पहचान रखता है। खेतड़ी के राजा अजीत सिंह ने स्वामी विवेकानंद को शिकागो के धर्म सम्मेलन में भेज कर सनातन धर्म के प्रचार को लेकर महत्वपूर्ण कदम उठाया था, जिसकी वजह से खेतड़ी की पूरे विश्व में अपनी अलग पहचान बनी हुई है।
खेतड़ी में विश्व प्रसिद्ध तांबे की खाने भी हैं, खेतड़ी कॉपर की बहुत बड़ी टाउनशिप भी हैं, और लेपर्ड सफारी भी खुल चुकी है बड़े धार्मिक स्थल भी हैं।
जिला बनाओ संघर्ष समिति द्वारा उपखंड अधिकारी कार्यालय के सामने किए जा रहे क्रमिक अनशन पर बैठे लोग
लोग अनशन पर भी बैठे हैं
10. सांभर-फुलेरा : आम लोगों ने जीती सीएम के सलाहकार विधायक की जिद के खिलाफ लड़ाई
राजस्थान के सबसे ज्यादा विकसित 10 उपखंड मुख्यालयों में शामिल सांभर व फुलेरा जयपुर जिला मुख्यालय से अलग होकर अब जयपुर ग्रामीण जिले में चले गए हैं। इन्हें दूदू में लिए जाने की घोषणा दूदू के विधायक बाबूलाल नागर ने कर दी थी। नागर निर्दलीय विधायक हैं और सीएम गहलोत के सलाहकार भी, लेकिन क्षेत्र के लोगों ने पिछले चार महीनों में पूरी मजबूती से आंदोलन कर नागर की राजनीतिक जिद का पुरजोर विरोध किया। क्षेत्रीय लोगों ने स्टेट-नेशनल हाईवे तक जाम कर दिए। अब सांभर व फुलेरा को दूदू में तो नहीं डाला गया है। दोनों शहर अब जयपुर ग्रामीण जिले में शामिल हैं, लेकिन कमेटी अब भी इन्हें जिला बनाने की सिफारिश कर सकती है।
भीलवाड़ा-अलवर को संभाग और कुछ अन्य शहरों को जिला बनाने के प्रयास जारी : राजस्व मंत्री
प्रदेश के राजस्व मंत्री रामलाल जाट ने भास्कर को बताया कि भीलवाड़ा व अलवर को संभाग बनाने सहित कुछ अन्य शहरों को जिला बनाने के प्रयास किए जा रहे हैं। राज्य स्तरीय कमेटी का समय भी इसीलिए बढ़ाया गया है। भीलवाड़ा को फिलहाल उदयपुर संभाग में शामिल किया गया है, लेकिन राजस्व संबंधी संभावनाएं देखने के बाद भीलवाड़ा को अलग से संभाग घोषित किया जाएगा।
इसी तरह अलवर अभी जयपुर संभाग में है। दोनों ही जिला मुख्यालय हर दष्टि से संभाग बनने लायक हैं। मुझे उम्मीद है सीएम भीलवाड़ा और अलवर दोनों को संभाग बनाएंगे। मैं स्वयं भीलवाड़ा जिले से ही विधायक भी हूं, ऐसे में मेरे पूरे प्रयास हैं कि यह काम हो जाए। इसके अलावा सुजानगढ़, मालपुरा, भिवाड़ी, सूरतगढ़ सहित कुछ और शहर-कस्बे हैं, जो जिले बनाए जा सकते हैं। कमेटी ऐसे प्रस्तावों पर विचार कर रही है।
गुढ़ा की लाल डायरी से चूका उदयपुरवाटी, अब नीमकाथाना का हिस्सा बना
झुंझुनूं जिले के उदयपुरवाटी कस्बे को नए जिले नीमकाथाना में जोड़ दिया गया है। नीमकाथाना सीकर जिले से अलग करके बनाया गया है। यहां से मौजूदा विधायक हैं कांग्रेस के सुरेश मोदी। मोदी लंबे समय से अपने क्षेत्र को जिला बनाने के लिए प्रयासरत थे। सीएम गहलोत के विश्वस्त होने से उनकी मांग को पूरा कर दिया गया है। इसी बीच उदयपुरवाटी को नीमकाथाना में शामिल करने के विरोध में जनवरी-23 में तत्कालीन मंत्री राजेन्द्र सिंह गुढ़ा ने कहा था कि किसी भी स्थिति में उदयपुरवाटी को नीमकाथाना में नहीं मिलाया जाएगा।
गुढ़ा ने तब कहा था कि वह मंत्री हैं, उनकी बात सरकार में ज्यादा वजनदार है और मोदी केवल विधायक हैं। उन्हें कुछ भी पता नहीं है कि जिला कैसे बनता है। गुढ़ा की बात रखने के लिए सरकार उदयपुरवाटी को भी जिला बनाने पर विचार कर रही थी, लेकिन इसी बीच गुढ़ा ने लाल डायरी का मामला उछाल दिया। उनको मंत्री पद भी खोना पड़ा और उदयपुरवाटी को अब नीमकाथाना जिले में शामिल कर दिया गया है।
टोडारायसिंह, बदनोर, शाहपुरा, और दूदू बने अजीब मिसाल, सरकार करेगी नई गाइडलाइन जारी
प्रदेश में नए जिलों की शुक्रवार को अधिसूचना लागू होते ही कुछ शहर-कस्बों में असमंजस की स्थिति बन गई है। जिला, संभाग, प्रशासन, पुलिस, चुनाव आदि के संदर्भ में विचित्र हालात पैदा हो गए हैं। जल्द ही राज्य सरकार उनके लिए कोई नई गाइडलाइन जारी करेगी।
1. टोडारायसिंह
टोडारायसिंह उपखंड मुख्यालय और तहसील दोनों है। शुक्रवार से पहले तक टोडारायसिंह टोंक जिले का बड़ा कस्बा था। अधिसूचना जारी होते ही ये अब केकड़ी जिले का हिस्सा बन गया है। नई स्थिति कुछ यूं है कि टोडारायसिंह के लगभग 4 लाख लोगों के लिए लोकसभा क्षेत्र तो टोंक-सवाईमाधोपुर है। विधानसभा क्षेत्र मालपुरा लगता है जो टोंक जिले में आता है।
2. दूदू
एक ऐसा जिला घोषित किया गया है, जिसमें केवल एक ही विधानसभा क्षेत्र है, वह खुद दूदू ही है। दूदू में शामिल होने का अरांई, मालपुरा, सांभर, फुलेरा, जोबनेर, बगरू सभी पड़ोसी कस्बों-शहरों में विरोध किया गया। अब दूदू के करीब दो लाख लोग विधानसभा में दूदू में वोट करेंगे और संसदीय सीट के लिए अजमेर में वोट करेंगे। जिला उनका दूदू होगा और संभागीय मुख्यालय जयपुर होगा।
3. बदनोर
भीलवाड़ा जिले की यह तहसील बदनोर अब ब्यावर जिले में शामिल कर ली गई है। लोकसभा चुनावों में बदनोर के लोग भीलवाड़ा सीट के लिए मतदान करेंगे। जबकि ब्यावर जिले के लोग राजसमंद सीट के लिए मतदान करेंगे। बदनोर क्षेत्र के लोग विधानसभा में आसींद सीट के लिए मतदान करेंगे जबकि आसींद ब्यावर नहीं बल्कि भीलवाड़ा जिले में है। भीलवाड़ा जिला अब उदयपुर संभाग में आएगा, जबकि ब्यावर अजमेर जिले में।
4. शाहपुरा
भीलवाड़ा जिले का यह कस्बा अब स्वयं एक नया जिला है, लेकिन यहां के लोग संसदीय सीट के लिए भीलवाड़ा के मतदाता हैं। भीलवाड़ा अब उदयपुर संभाग में है और शाहपुरा अब अजमेर संभाग में।