एक सच्चे पत्रकार, समाज सेवी ओर एक कवि चाहे तो अपनी लेखनी से समाज की हर बुराई को खतम कर सकता है। एक नए नोजवान ने अपनी कविता के माध्यम से हरियाणा के नूह में हुये दंगे को अपने शब्दो में कुछ इस तरह पिरोया है।
इन दंगाइयों को सत्ता का कोई फरमान आया था,
तुम यह ना कहो हिंदू – मुस्लिम यहां तो महजब का कोई तूफान आया था
ना तुम्हें अल्लाह ने , ना तुम्हें भगवान ने, आदेश दिए होंगे
तुम किसकी खुशी में मौत का पैगाम लेकर आए हो
तुम पूछो इन दंगाइयों से बचकर तुम कहां पर जाओगे
घर जला कर, जिस्म नोच कर औरों का
क्या तुम अपनी रूह बचा पाओगे
आग लगेगी जब तुम्हारे घर पर क्या तुम उसे बचा पाओगे
एक महजब के खातिर कितने घर जला दिए तुमने
क्या कभी तुम अपने आप को माफ कर पाओगे
जिस्म था उसका एक भीड़ ने उसे नोच डाला
मैं पूछता हूं उस भीड़ के हर एक शख्स से
क्या कभी तुम अपनी बहन से नजर मिला पाओगे
मेरा मुल्क, मेरा मुल्क, मैं बड़ा, तू छोटा
इस वहम ने न जाने कितने लोगों को अतीत ने दफन कर दिया
मैं पूछता हूं इन सत्ता के हुक्मरानों से क्या तुमने भी अपनों को इसमें शामिल कर लिया
जो भूल की थी इतिहासो में फिर भूल वही कर बैठे हो
मंदिर- मस्जिद चिल्लाने वालों तुम अपना आपा खो बैठे हो
रवि कुमार
स्वामी सेही (राजस्थान)