एक श्मशान घाट, जिसमें ताजमहल की तरह संगमरमर पर नक्काशी की गई है। एक किला जिसकी नींव में जिंदा इंसाफ को दफन किया गया था। ज्वालामुखी फटने से बहे लावा से बनी चट्टानें।
राजस्थान के जोधपुर में ऐसी ही कई ऐतिहासिक धरोहर हैं, जिनसे दुनिया अनजान है। दुनिया इन हेरिटेज को देखेगी तो जोधपुर या राजस्थान ही नहीं, पूरे देश को विश्व में अलग पहचान मिलेगी।
…लेकिन इसके लिए जरूरी है जियो पार्क।
जियो पार्क…ये दो शब्द सिर्फ जोधपुर ही नहीं, पूरे देश की तकदीर बदल सकते हैं। टूरिज्म 15 गुना तक बढ़ सकता है, हर साल अरबों की कमाई।
अब आप सोच रहे होंगे कैसे?
तो इसका सबसे अच्छा उदाहरण है जेजू द्वीप जियो पार्क का सुवोलबोंग गांव। कभी यह सिर्फ 40 लोगों की आबादी का गांव था। मछली पकड़ना लोगों का कमाने का एकमात्र जरिया था। जियो पार्क का दर्जा मिलने के बाद इस गांव की तकदीर बदल गई। अब इस गांव में हर साल 3 लाख विदेशी पर्यटक घूमने के लिए आते हैं। नए रेस्टोरेंट, कैफे और गेस्ट हाउस बन गए हैं। अब यहां रहने वाले लोग करोड़पति हो गए।
जिस तरह जियो पार्क ने सुवोलबोंग गांव की किस्मत बदली, वैसे ही जोधपुर की भी कायापलट हो सकती है। जोधपुर का दावा इसलिए मजबूत है, क्योंकि पूरे देश में 34 जियो साइट्स हैं, लेकिन जियो पार्क नहीं है। जोधपुर इकलौता शहर है, जहां 2 जियो हेरिटेज साइट हैं। इसके अलावा स्पेन-ताइवान जहां जियो पार्क का दर्जा मिला है, वहां से दोगुना हेरिटेज जोधपुर में है।
मीडिया कर्मीयो ने विश्व के कई जियो पार्क का दौरा करने वाले साइंटिस्ट और एक्सपट्र्स के साथ स्टडी कर जानने की कोशिश की कि आखिर दावा मजबूत होने के बाद क्यों जोधपुर को जियो पार्क का दर्जा नहीं मिल पा रहा।
पढ़िए पूरी रिपोर्ट…
जियो पार्क जरूरी : क्योंकि 10 गुना बढ़ जाते हैं टूरिस्ट, अरबों में कमाई
एक रिसर्च के अनुसार चीन, जापान, स्पेन जैसे जियो पार्क वाले देशों में 36 प्रतिशत पर्यटक जियो पार्क देखने जाते हैं। जिस देश में जियो पार्क बनता है, वहां टूरिस्ट्स की संख्या 10 गुना से ज्यादा और इनकम अरबों में होने लगती है।
जोधपुर में जियो पार्क का दावा क्यों मजबूत…
जोधपुर में 745 मिलियन वर्ष पुरानी वेल्डेड टफ और मालानी इग्नियस, दो जियो हेरिटेज साइट्स हैं। इनमें मालानी इग्नियस विश्व का सबसे बड़ा वेल्कोनिक इलाका है। प्रो. सुरेश माथुर ने करीब 12 से ज्यादा साइट्स चिन्हित कर रखी हैं। जहां ज्वालामुखी विस्फोट से लावा, राख से बनी चट्टानें और विभिन्न घटनाओं के सबूत वाली चट्टान हैं। वहीं यहां समुद्र से बनी चट्टानें और एडियाकरन समय के फॉसिल्स हैं।
लावा और राख से बनी चट्टानें
जोधपुर में ज्वालामुखी से लावा और राख से चट्टानें बनीं। लावा और राख ठंडे होने के बाद ये कॉलम की तरह बन गए। कई स्थानों पर ये कॉलम 30 मीटर या उसे अधिक लम्बे हैं। शहर में नागौरी गेट चौराहा से मेहरानगढ़ किले की तरफ जाने वाले रास्ते पर चढ़ाई पर दाएं हाथ की तरफ वेल्डेड टफ की चट्टानें है। किले के पास स्थित जसवंत थड़ा के पास भी वेल्डेड टफ की चट्टानें देख सकते हैं।
मालानी इग्नियस साइट
प्रीकैम्ब्रियन युग में ज्वालामुखी से बनने वाली आग्नेय चट्टानों से मालानी इग्नियस साइट बनी। मालानी इग्नियस साइट दुनिया में सबसे बड़ा वेल्कोनिक इलाका है। मालानी इग्नियस साइट के सबसे अच्छे अवशेष मेहरानगढ़ किले की पहाड़ी है। इस साइट का नाम भी पूर्व मारवाड़ राज्य (जोधपुर) के एक जिले मालानी पर रखा गया। जहां ज्वालामुखी चट्टानें पाई गई थीं।
हेरिटेज साइट- मेहरानगढ़
मारवाड़ की राजधानी पहले जोधपुर का मंडोर किला हुआ करता था। मंडोर किले को राव चूड़ा ने 1394 में जीता था। इसके बाद राव जोधा के पिता की मृत्यु के बाद यह किला हाथ से निकल गया। 1453 में राव जोधा ने मंडोर किले को फिर से जीता, लेकिन उन्हें अब लगा कि यह किला सुरक्षित नहीं, नए किले का निर्माण करना होगा। उन्होंने पहले मसूरिया पहाड़ी पर किले का निर्माण शुरू कराया, लेकिन वहां अनहोनी के डर से किला नहीं बनाया। इसके बाद वे पंचटेकरियां पर किले के लिए जमीन का निरीक्षण कर रहे थे, तब उन्होंने वर्तमान में सिघोंडियों की बाड़ी के पास एक बकरी को एक बाघ से मुकाबला करते देखा। बकरी के साहस को देख कर उन्होंने पहाड़ी पर 12 मई 1459 में किले की नींव डालकर मेहरानगढ़ किला बनवाया।
संत ने श्राप दिया तो नींव में दफन हुआ जिंदा इंसान, फिर बना किला
मेहरानगढ़ का किला जिस पहाड़ी पर बना है, वहां कभी पक्षियों का बसेरा हुआ करता था। यहां चिड़ियानाथ नाम के संत रहते थे। संत ने श्राप दिया कि यहां किला बनाया तो राज्य में हमेशा सूखा रहेगा। राजा ने संत के लिए एक मंदिर और घर बनाकर उनसे क्षमा मांगी। उन्होंने श्राप को बेअसर करने का उपाय बताया और कहा कि किले को बनाते समय किसी जिंदा शख्स को नींव में दफन करना पड़ेगा। इसके बाद राजाराम मेघवाल ने अपनी इच्छा से नींव में जिंदा दफन होकर बलिदान दिया। राजाराम मेघवाल ने जिस जगह अपना बलिदान दिया, उस जगह पर उनके नाम से स्मारक बनाया गया।
कुतुब मीनार से ऊंची पहाड़ी पर बना किला
जोधपुर का मेहरानगढ़ किला कुतुब मीनार से भी ऊंची पहाड़ी पर बना है। किले के चारों ओर 10 किलोमीटर लम्बी सुरक्षा दीवार बनी हुई है। इनकी ऊंचाई 20 से 120 फीट तथा चौड़ाई 12 से 70 फीट तक है। किले में सात द्वार हैं। किले में मुगल डिजाइन की भी इमारतें बनी हुई हैं। इसके अलावा मोती महल, फूल महल, दौलत खाना, शीश महल और सुरेश जैसे कई शानदार शैली के कमरे बने हैं।
रानियों ने किया था जौहर, आज भी हैं हथेलियों के निशान
मेहरानगढ़ किले के लोहा गेट के बायीं ओर महिलाओं की हथेलियों के निशान के चित्र हैं। किले में जब राजा युद्ध के लिए जाते थे और शहीद हो जाते थे तो रानियां अपने स्वाभिमान के लिए जौहर कर लेती थीं। इसके अलावा राजा की मौत के बाद कई रानियां उनकी चिता पर सती हो जाती थीं। सती और जौहर करने से पहले महिलाएं अपनी हथेलियों के निशान दीवारों पर लगाती थीं। ये रानियों के साहस और वीरता को बताते हैं।
ताजमहल जैसा राजाओं का श्मशान घाट
मेहरानगढ़ किले के पास सफेद संगमरमर से बना ताजमहल जैसा जसवंत थड़ा स्मारक है। स्मारक 1906 में महाराजा सरदार सिंह ने बनवाया था। यह मारवाड़ शाही परिवार के लिए श्मशान घाट के रूप में उपयोग किया जाता है। जसवंत थड़ा के पास एक पार्क और झील भी बनी हुई है। स्मारक में संगमरमर की पतली चादरों पर जटिल नक्काशी की गई है। स्मारक में कई गुंबद, शिखर और मूर्तियां लगी हैं, जो इसे मंदिर जैसा रूप देते हैं।
500 साल पुरानी नहर और दो लेक में बना राव जोधा पार्क
मेहरानगढ़ ट्रस्ट ने वर्ष 2005 में मेहरानगढ़ किले के पास 72 हेक्टेयर में राव जोधा डेजर्ट रॉक पार्क बनाया। पार्क के मैनेजर डेंजल ने बताया कि पार्क जोधपुर शहर में 17वीं शताब्दी में बने प्रवेश द्वार और सिंघोरिया पोल में बनाया गया। इस पार्क में 300 से ज्यादा पौधों की प्रजातियां हैं। इनमें ज्यादातर पौधों की प्रजाति राजस्थान की हैं। वहीं कुछ दुर्लभ विदेशी पौधों की प्रजातियां भी लगाई गईं। इसमें सबसे खास हैं चट्टानों और बालू मिट्टी में उगने वाले पौधे। पार्क में 210 प्रजाति के पक्षी पाए जाते हैं। पार्क को सबसे खास बनाती है पार्क में मिलने वाली ज्वालामुखीय और बलुआ पत्थर की संरचना। पार्क में घूमने के लिए नहर बनाई गई। इस नहर को हाथियों की मदद से बनाया गया। इसी कारण इसे हाथी नहर भी कहते हैं। पार्क में पदमसर और रानीसर लेक भी है।
हाइड्रो टूरिज्म के लिए तालाब और बावड़ियां
पूरी दुनिया में सैकड़ों साल पुरानी बावड़ियां सिर्फ इंडिया में देखने को मिलती हैं। इनमें भी सबसे ज्यादा बावड़ियां राजस्थान में हैं। जोधपुर में जियो हेरिटेज साइट के साथ हाइड्रो टूरिज्म के लिए तालाब और बावड़ियां भी हैं। इनमें मेहरानगढ़ किले में रानीसर, पदमसर, देवकुण्ड, भवानी कुण्ड, नागेश्वर कुण्ड, चाखोंलाई का बेरा, पाताल बेरा, चामुण्डा नाडी, चिड़ियानाथ का झरना है।
यूनेस्को 181 पॉइंट्स पूरे होने पर जियो पार्क का दर्जा देता है
यूनेस्को पहले सर्वे करके इन्हें जियो हेरिटेज साइट घोषित करता है। फिर ग्लोबल जियो पार्क के लिए फिर से सर्वे करता है। करीब 181 पॉइंट्स पर हेरिटेज साइट खरी उतरने पर ग्लोबल जियो पार्क का दर्ज मिलता है। जियो पार्क के लिए 6 चीजें होना सबसे अहम है। इनमें इंटरनेशनल सिग्नीफिकेंस, साइट का प्रोटेक्शन और कंजर्वेशन, मेरिट रिसर्च और पब्लिकेशन, साइट एजुकेशनल, लोकल कम्युनिटी इन्वॉल्वमेंट, बायोडायवर्सिटी, संस्कृति सबसे महत्वपूर्ण पॉइंट्स हैं।
जोधपुर से आधे हेरिटेज भी नहीं थे फिर भी जियो पार्क बना लिए
1. ताइवान का येहलू : महज 4 हजार साल पुरानी हेरिटेज साइट
ताइवान का येहलू जियो पार्क समुद्र में 1700 मीटर तक फैला है। इसका निर्माण दातुन पर्वत के समुद्र से बाहर आने से हुआ था। यहां तलछटी (समुद्र की लहरों से कटने वाली चट्टान) चट्टानों के कटाव वाली सरंचनाएं हैं। उन्होंने उनका अलग-अलग नाम रखा है। इनमें सबसे प्रसिद्ध रानी का सिर (queen head), ड्रैगन हेड, फयरी शू, जिंजर रॉक्स, सी कैंडल्स नाम की चट्टानें हैं। सीमित हेरिटेज होने के बावजूद ताइवान ने पर्यटकों के आने के लिए अच्छे रास्ते, साइन बार्ड, परिवहन, होटल, रेस्तरां, कैंपेनिंग और मार्केटिंग करके इसे जियो हेरिटेज साइट बना दिया। अब यहां हर साल लाखों पर्यटक पार्क में घूमने के लिए आते हैं और करोड़ों की इनकम होती है।
क्वींस हेड रॉक : क्वींस हेड रॉक यहां की सबसे फेमस चट्टान है। यह ऐसे दिखती है, जैसे किसी रानी ने सिर पर ताज पहन रखा है। इसलिए इसे क्वींस हेड रॉक कहते हैं। इसकी गर्दन की लंबाई 125 सेंटीमीटर है और यह प्रति वर्ष 0.2 से 0.5 सेंटीमीटर (0.079 से 0.197 इंच) की दर से नष्ट होती है।
2. स्पेन का जारा : एजुकेशन से लोगों को जागरूक किया
स्पेन के जारा जियो पार्क में तलछटी चट्टानें और एडियाकरन फॉसिल्स हैं। इसके अलावा बंद हो रखी जारा फॉस्फोराइट खदान है। सीमित हेरिटेज साइट होने के बावजूद जारा को स्पेन ने जियो पार्क बनवाया। जियो पार्क में ग्वाडालूप का शाही मठ स्थित है। इसे 1993 में वर्ल्ड हेरिटेज साइट घोषित किया था। स्पेन ने जियो हेरिटेज साइट को लेकर लोगों में जागरूकता लाने के लिए जूलॉजी को एजुकेशन से जोड़ दिया। बच्चों की किताबों में हेरिटेज साइट और भू सरंचना के चैप्टर रखे गए। जूलॉजी से जुड़ी 77 एक्टिविटी स्कूलों में रखी गई। 76 एजुकेशन सोसाइटी के साथ मिलकर हर साल 2500 स्टूडेंट्स की जियो हेरिटेज साइट पर एजुकेशन एक्टिविटी रखी जाती है। इसे बच्चों और लोगों में हेरिटेज साइट को लेकर जागरूकता आई।
3. जेजू आईलैंड : 4 गुना बढ़ गए टूरिस्ट
जेजू आईलैंड कोरिया गणराज्य का पहला ग्लोबल जियो पार्क है। इस ज्वालामुखीय द्वीप का निर्माण 2 मिलियन वर्ष पहले हुआ था। यहां ज्वालामुखी घटनाएं जैसे लावा ट्यूब गुफाएं, छोटी ज्वालामुखीय इमारतें, ज्वालामुखीय ढाल अच्छी तरह से संरक्षित हैं। यहां ऐसी 13 जियो साइट्स बना रखी हैं। पहले यहां 4.5 मिलियन पर्यटक आते थे। जियो पार्क बनने के बाद 2019 में यह संख्या 15.2 मिलियन पहुंच गई। वर्ष 2019 तक यहां की आबादी 696,657 थी।
जियो पार्क से टूरिज्म 15 गुना तक बढ़ गया
1. इटोइगावा जियो पार्क
इटोइगावा जापान का सबसे पहला जियो पार्क है। इटोइगावा में तीन थीम पर 24 जियो साइटस बनाई गईं। इनमें 50 करोड़ साल पहले एशिया महाद्वीप से जापान के द्वीपों के अलग होने और ज्वालामुखी विस्फोट के सबूत हैं। यहां जियो पार्क बनने से पहले महज 6 हजार 411 पर्यटक हर साल आते थे। जियो पार्क बनने के बाद पर्यटकों की संख्या 15 गुना बढ़ गई। वर्ष 2019 में 90 हजार 390 पर्यटक आए। इससे जियो पार्क को 24 करोड़ का रेवेन्यू मिला।
2. डोंग वान कार्स्ट पठार
डोंग वान कार्स्ट पठान ग्लोबल जियो पार्क वियतनाम में स्थित है। लगभग 550 मिलियन वर्ष पूर्व कैम्ब्रियन युग की घटनाओं के सबूत यहां हैं। इसके अलावा यहां पृथ्वी के इतिहास की फ्रिसियन-फेमेनियन (360 मिलियन वर्ष पहले) और पर्मियन-ट्राइऐसिक (250 मिलियन वर्ष पहले) की घटनाओं के फॉसिल हैं। इनमें पुराजैविकी, स्ट्रेटीग्राफी, भू-आकृति विज्ञान, टेक्टोनिक्स, कार्स्ट, गुफाएं हैं।
जियो पार्क बनने से पहले यहां वर्ष 2010 में 90,000 पर्यटक आए थे। जियो पार्क बनने के बाद 2019 में दस गुना अधिक 980,000 पर्यटक आए। देश के दूसरे शहरों की तुलना में अब सबसे ज्यादा पर्यटक यहां आते हैं। जियो पार्क बनने से पहले यहां 100 करोड़ का रेवेन्यू था, अब यह आंकड़ा 463 करोड़ पहुंच गया है।