झुंझुनूं : 1947 में जम्मू कश्मीर के भारत में विलय की संधि के बाद कबायली के भेष में आए पाकिस्तानी सैनिकों ने कश्मीर में हमला कर दिया। राजपूताना राइफल्स के कई जवान शहीद और घायल हो चुके थे। पीरू सिंह अकेले रह गए थे। उन्हें पता था कि जंग मुश्किल दौर में है, फिर भी वे बाहर निकले और दुश्मन की चौकी पर अकेले ही ग्रेनेड से हमला किया। इस दौरान दुश्मन के फेंके गए एक ग्रेनेड ने उनके चेहरे को जख्मी कर दिया।
चेहरा लहूलुहान हो चुका था, आंखों में घाव हो गए, बावजूद इसके वे निरंतर हमला करते रहे। 6 पाकिस्तानी सैनिकों को उन्होंने अपने चाकू से ही मार दिया और 2 पाकिस्तानी पोस्ट को फतेह कर लिया था। तीसरी पोस्ट की तरफ आगे बढ़ते हुए उन्हें सिर में एक घातक गोली लगी जिसकी वजह से वो वीरगति को प्राप्त हुए। युद्ध के दौरान 18 जुलाई, 1948 को ग्रेनेड विस्फोट से पहले वॉकी -टॉकी पर पीरू सिंह का आखिरी संदेश था “राजा रामचंद्र की जय”।
शहीद पीरू सिंह राजस्थान के झुंझुनूं के रहने वाले थे। शौर्य के लिए राजपूताना राइफल्स में परमवीर चक्र प्राप्त करने वाले पहले जवान है। शत्रु के सामने वीरता के लिए दिया जाने वाला सर्वोच्च भारतीय सम्मान मरणोपरांत 1952 में दिया गया। वहीं, प्रधानमंत्री ने सम्मान में अंडमान निकोबार में द्वीप का नाम ‘पीरू’ रखा है। जो देश में वीरों के शौर्य को गौरवान्वित करने वाला है। शहीद पीरू सिंह शेखावत का आज 75वां बलिदान दिवस है।
तो आइए पहले शहीद पीरू सिंह की जीवनी के बारे में जानते हैं…
शहीद हवलदार पीरू सिंह शेखावत मूल रूप से झुंझुनूं जिले के पिलानी ब्लॉक के निवासी थे। बेरी गांव के लाल सिंह शेखावत के 7 बच्चों में सबसे छोटे पीरू सिंह का जन्म 20 मई, 1918 को हुआ था। पीरू सिंह बचपन से ही निडर प्रवृत्ति के थे, यहां तक कि विद्यालय का प्रतिबंधित वातावरण भी उन्हें रास नहीं आया था। एक बार सहपाठी से झगड़ा करने पर शिक्षक द्वारा डांटे जाने पर वे स्कूल से वापस आ गए और फिर कभी स्कूल नहीं गए। बाद में माता-पिता के साथ उन्होंने खेती के काम में उनकी मदद करना शुरू कर दिया। बाल्यावस्था से ही वे सेना में भर्ती होना चाहते थे, 2 बार उन्होंने सेना भर्ती में हिस्सा भी लिया, लेकिन 18 से कम आयु होने के चलते वे सेना के लिए चयनित नहीं हो पाए।
बाद में 20 मई, 1936 को वे ब्रिटिश भारतीय सेना में भर्ती हुए और उन्हें पहली पंजाब रेजिमेंट में नियुक्त किया गया। स्कूली शिक्षा के प्रति अपनी पहले की अरुचि के बावजूद पीरू सिंह ने शिक्षा को गंभीरता से लिया और भारतीय सेना वर्ग शिक्षा प्रमाणपत्र पास किया। कुछ अन्य परीक्षणों को पास करने के बाद, उन्हें 7 अगस्त 1940 को लांस नायक ( लांस कॉर्पोरल ) के रूप में पदोन्नत किया गया। ब्रिटिश कॉमनवेल्थ ऑक्यूपेशन फोर्स में 1940 से 1945 के बीच जापान में तैनात होने से पहले, उन्होंने उत्तर-पश्चिम सीमा पर एक प्रशिक्षक के रूप में सेवाएं दी।
आखिरी संदेश ‘राजा रामचंद्र की जय’
स्वतंत्रता के बाद, उन्होंने भारतीय सेना की 6 राजपूताना राइफल्स में रहते हुए 1947 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में भाग लिया। लड़ाई के दौरान पीरू सिंह जिस कम्पनी में थे, उसे जम्मू और कश्मीर के टिथवाल में एक पाकिस्तानी चौकी पर कब्जा करने का काम सौंपा गया था। हमला शुरू होने के तुरंत बाद, कम्पनी को भारी नुकसान उठाना पड़ा फिर भी सिंह ने एक पाकिस्तानी मध्यम मशीन-गन (एमएमजी) पोस्ट पर कब्जा कर लिया।
लड़ाई में उनकी कम्पनी के सभी जवान शहीद हो गए या घायल हो चुके थे। लक्ष्य को हासिल करने के लिए पीरू सिंह अकेले रह गए थे। उन्हें पता था कि जंग मुश्किल दौर में है, फिर भी वे बाहर निकले और दुश्मन की चौकी पर अकेले ही ग्रेनेड से हमला किया। इस दौरान दुश्मन के फेंके गए एक ग्रेनेड ने उनके चेहरे को जख्मी कर दिया। चेहरा लहूलुहान हो चुका था, आँखों में घाव हो गए, बावजूद इसके वे निरंतर हमला करते रहे। 6 पाकिस्तानी सैनिकों को उन्होंने अपने चाकू से ही मार दिया और 2 पाकिस्तानी पोस्ट को फतेह कर लिया था।
तीसरी पोस्ट की तरफ आगे बढ़ते हुए उन्हें सिर में एक घातक गोली लगी जिसकी वजह से वो वीरगति को प्राप्त हुए। युद्ध के दौरान 18 जुलाई, 1948 को ग्रेनेड विस्फोट से पहले वाॅकी-टाॅकी पर पीरू सिंह का आखिरी संदेश था “राजा रामचंद्र की जय”।
परमवीर चक्र से किया सम्मानित
भारत सरकार ने इस भूतपूर्व शौर्य और पराक्रम के लिए हवलदार मेजर पीरू सिंह को परमवीर चक्र से सम्मानित किया और यह राजपूताना राइफल्स को मिलने वाला पहला परमवीर चक्र था। बाद के वर्षों में भी सरकार ने शहीद पीरू सिंह शेखावत को कई अन्य सम्मान प्रदान किए। नेताजी सुभाष चंद्र बोस की जयंती 23 जनवरी, 2023 को ‘पराक्रम दिवस’ दिवस के मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अंडमान निकोबार द्वीप समूह के 21 द्वीपों का नामकरण देश के परमवीर चक्र विजेताओं के नाम पर किया है।
अंडमान निकोबार का INAN-374 द्वीप अब पीरू द्वीप
इनमें दो परमवीर चक्र विजेता पूर्व सैनिक राजस्थान के थे। एक हवलदार मेजर पीरू सिंह शेखावत व दूसरे मेजर शैतान सिंह। द्वीपों का नामकरण राष्ट्र की अखंडता की सुरक्षा के लिए अपना सर्वाच्च बलिदान देने वाले वीर सपूतों को नमन के तौर पर किया गया है। अंडमान निकोबार का INAN-374 द्वीप अब पीरू द्वीप के नाम से जाना जाता है। पराक्रम दिवस पर अंडमान निकोबार द्वीप समूह के द्वीपों के नामकरण समारोह में पीरू सिंह के दत्तक पुत्र ओमपाल सिंह शेखावत ने भी शिरकत की। उनके साथ पीरू सिंह के पोते महेश सिंह शेखावत भी थे।
मकान में आज भी रह रहा परिवार
गांव में आज भी वो मकान मौजूद है, जहां पीरू सिंह रहते थे। उनके मकान में उन्हीं के परिवार के लोग आज भी रह रहे हैं। प्रति वर्ष 18 जुलाई को उनके बलिदान दिवस पर गांव में बने परमवीर पीरू सिंह शेखावत स्मारक पर उन्हें श्रद्धांजलि दी जाती है। हाल ही में उनके स्मारक का पुनर्निर्माण करवाया गया है।
पीरू सिंह खेल मैदान पर ओपन कबड्डी प्रतियोगिता
आज बलिदान दिवस (18 जुलाई) के अवसर पर गांव में परमवीर पीरू सिंह खेल मैदान पर ओपन कबड्डी प्रतियोगिता का आयोजन ग्रामवासियों द्वारा किया गया है, जिसमें आसपास के ग्रामीण अंचल से सैंकड़ों युवा खिलाड़ी हिस्सा लेने पहुंचे हैं। गांव में एक नि:शुल्क नेत्र चिकित्सा शिविर का आयोजन भी किया गया है, जिसमें डॉ. नरेन्द्र चौहान अपनी सेवाएं देंगे। गांव के लोग आज भी परमवीर चक्र विजेता पीरू शेखावत की शौर्य गाथा का वर्णन करते हुए फक्र महसूस करते हैं।