झुंझुनूं : ऑपरेशन कावेरी:जान बचाने के लिए पासपोर्ट भी छोड़ आए, बोले- हम ही जानते हैं कैसे बमबारी के बीच जिंदा घर लौट पाए

जनमानस शेखावाटी संवाददाता : नीलेश मुदगल

झुंझुनूंसूडान में सेना और अर्द्ध सैनिक बलाें के बीच चल रहे युद्ध में हालात काफी भयावह है। वहां फंसे भारतीयाें काे ऑपरेशन कावेरी के जरिए भारत लाया जा रहा है। सूडान से रेस्क्यू मिशन में झुंझुनूं के दो सगे भाइयों समेत 13 लोग जिले में लौटे हैं। इस युद्ध ने वहां मजदूरी करने गए लाेगाें का राेजगार छीन लिया है। जान बचाकर लाैटे झुंझुनूं के लाेगाें ने वहां के हालात बताते हुए कहा-माैत काे नजदीक से देखा है।

बोले- हम ही जानते हैं कैसे बम और गोलीबारी के बीच वहां से लौटे हैं। मिलिट्री और पैरामिलिट्री के बीच छिड़े इस वॉर में के बीच इन लाेगाें को सुरक्षित घर लाैटने की खुशी है ताे राेजगार छीनने का मलाल। सूडान से लाैटे झुंझुनूं के केहरपुरा कलां निवासी राकेश झाझड़िया, भिर्र निवासी सगे भाई सतीश मान व त्रिपाल मान, सिरियासर के रमेश लाेयल, विपिल लाेयल, कंवरपुरा के सत्येंद्र कटेवा, रतनगढ़ के मुकेश दूलड़ ने वहां के हालाताें के बारे में जानकारी दी। इन लाेगाें काे एग्जिट पास बनाने के लिए चार दिन तक इंतजार करना पड़ा।

सूडान पोर्ट तक बस में सफर किया, बस पर तिरंगा लगा होने से वहां सेना ने रोका नहीं

हम सुडान की राजधानी खार्तून में टाइल बनाने वाली फैक्ट्री में काम करते थे। इसमें 42 लाेग काम करते थे। सब कुछ बढ़िया चल रहा था। इसमें झुंझुनूं जिले के 13 लाेग काम करते थे। 15 अप्रैल काे अचानक हालात बिगड़ गए। हमारी फैक्ट्री के पास भी बम गिरा था। बम अगर प्लांट के ऊपर गिरता तो वहां मौजूद 70 टन गैस इतनी तबाही मचाती कि कोई नहीं बचता। चौथे दिन अचानक से प्लांट पर गोलीबारी कर दी गई और आग लग गई। आग में घिरे हम 42 लोगों ने पांच घंटे में उसे काबू में पाया।

हर शनिवार हमारा राशन आता था, लेकिन सात दिन हो जाने से वह भी खत्म हो चुका था। फिर हमने तय किया कि यहां से निकला जाए। दो दिन एंबेसी की गाड़ी का इंतजार किया, लेकिन पेट्रोल पंप जला देने के कारण डीजल नहीं होने से वह खार्तुम इंडस्ट्रियल एरिया में गाड़ी नहीं भेज पाए। 24 अप्रैल को एक बस की व्यवस्था की और कंपनी से ही डीजल लिया। इंडस्ट्रियल एरिया से सूडान पोर्ट 850 किलोमीटर दूर था। रास्ते में हथियारों से लैस सूडान की सेना ने हमें रोका भी, लेकिन गाड़ी पर भारत का तिरंगा था तो हमें छोड़ दिया गया। करीब 11 घंटे की यात्रा कर हम सुडान पोर्ट पहुंचे।

वहां से हमे हेलीकाॅप्टर से जेद्दाह लाया गया। वहां से हवाई जहाज से दिल्ली पहुंचे। हमारी फैक्ट्री से पोर्ट 850 किलोमीटर दूर था। ऐसे में सभी ने 1-1 लाख रुपए देकर 50 लाख में एक बस की। कई लोग थे, जिनका पासपोर्ट एंबेसी में था। ऐसे में सूडान पोर्ट पर वॉइट पासपोर्ट जारी कर हमें दिल्ली लाया गया। येलाे कार्ड वहीं रह जाने के कारण कुछ साथियाें काे दिल्ली में क्वारेंटाइन भी किया गया है।

4 हजार लाेग थे, 2500 आ गए

सूडान में गृह युद्ध से पहले करीब चार हजार भारतीय थे। पहले बैच में 278 लोगों को रेस्क्यू किया गया था। दूसरे और तीसरे बैच में 121 और 135 लोगों को निकाला गया। चौथे और पांचवें बैच में 136 और 297 लोगों को एयरलिफ्ट किया गया। छठे बैच में 128 लोगों को लाया गया। सिविलियन रूल लागू करने की डील को लेकर सेना और अर्द्ध सैनिक बल आरएसएफ आमने-सामने हैं। आरएसएफ सिविलियन रूल को 10 साल बाद लागू करना चाहती है, जबकि आर्मी का कहना है कि ये 2 साल में ही लागू हो जाना चाहिए।

Web sitesi için Hava Tahmini widget