राजस्थान के जयपुर में राइट टू हेल्थ (आरटीएच) बिल पर आज डॉक्टर्स और सरकार के बीच 8 मांगों पर समझौता हो गया है। मुख्य सचिव उषा शर्मा से मीटिंग के बाद इस पर फैसला लिया गया।
वहीं, समझौते के बाद भी डॉक्टर्स आज महारैली निकाल रहे हैं। पिछले 10 दिन में डॉक्टर्स का ये दूसरा शक्ति प्रदर्शन है। इससे पहले 27 मार्च को भी बड़ी रैली जयपुर में निकाली गई थी। संभावना है कि इस रैली के बाद डॉक्टर्स का डेलिगेशन मुख्यमंत्री या मुख्य सचिव से मिलकर अपना आंदोलन खत्म करने का ऐलान कर सकता है।
प्राइवेट हॉस्पिटल्स एंड नर्सिंग होम्स सोसाइटी के सेक्रेटरी विजय कपूर ने बताया- आज करीब 10.30 बजे डॉक्टरों का एक प्रतिनिधि मंडल सरकार से वार्ता के लिए मुख्य सचिव के निवास पर पहुंचा था।
इन 8 बिंदुओं पर हुआ समझौता :
1. 50 बिस्तरों से कम वाले निजी मल्टी स्पेशियलिटी अस्पतालों को आरटीएच से बाहर कर दिया है।
2. सभी निजी अस्पतालों की स्थापना सरकार से बिना किसी सुविधा के हुई है और रियायती दर पर बिल्डिंग को भी आरटीएच अधिनियम से बाहर रखा जाएगा।
3. ये अस्पताल आरटीएच के दायरे में आएंगे-
– निजी मेडिकल कॉलेज अस्पताल
– पीपीपी मोड पर बने अस्पताल
– सरकार से मुफ्त या रियायती दरों पर जमीन लेने के बाद स्थापित अस्पताल (प्रति उनके अनुबंध की शर्तें)
– अस्पताल ट्रस्टों द्वारा चलाए जाते हैं(भूमि और बिल्डिंग के रूप में सरकार द्वारा वित्तपोषित)
4. राजस्थान के विभिन्न स्थानों पर बने अस्पतालों को कोटा में नियमित करने पर विचार किया जायेगा
नमूना
5. आंदोलन के दौरान दर्ज किए गए पुलिस केस और अन्य मामले वापस लिए जाएंगे
6. अस्पतालों के लिए लाइसेंस और अन्य स्वीकृतियों के लिए सिंगल विंडो सिस्टम होगा
7. फायर एनओसी नवीनीकरण हर 5 साल में करवाया जाएगा
8. नियमों में कोई और परिवर्तन, यदि कोई हो, आईएमए के दो प्रतिनिधियों के परामर्श के बाद किया जाएगा
जाएगा
समझौते के बाद मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने ट्वीट कर कहा- मुझे खुशी है कि राइट टू हेल्थ पर सरकार व डॉक्टर्स के बीच अंततः सहमति बनी और राजस्थान राइट टू हेल्थ लागू करने वाला देश का पहला राज्य बना है।मुझे उम्मीद है कि आगे भी डॉक्टर-पेशेंट रिलेशनशिप पहले जैसी रहेगी।
दूसरे राज्यों से भी पहुंचे डॉक्टर्स
वहीं, SMS रेजिडेंट हॉस्टल ग्राउंड में डॉक्टर बड़ी संख्या में जुटना शुरू हो गए थे। साथ ही राइट टू हेल्थ बिल के विरोध में हरियाणा, गाजियाबाद और उत्तर प्रदेश से भी डॉक्टर्स का दल शामिल होने आया है।
डॉक्टर्स की रैली रेजिडेंट्स हॉस्टल ग्राउंड एसएमएस मेडिकल कॉलेज से शुरू होकर। गोखले हॉस्टल रोड होते हुए टोंक रोड, महारानी कॉलेज तिराहा, अशोक मार्ग, राजपूत सभा भवन, पांच बत्ती, एमआई रोड, अजमेरी गेट, न्यू गेट, अल्बर्ट हॉल होते हुए एसएमएस मेडिकल कॉलेज पहुंचेगी।
इस रैली को सफल बनाने के लिए प्रदेश के सभी जिलों से डॉक्टर्स को बुलाया गया है। इस रैली के बाद हमारी संघर्ष समिति की बैठक होगी, जिसमें आगे के लिए निर्णय किया जाएगा।
जानिए- राइट टू हेल्थ बिल से जुड़े उन सभी सवालों के जवाब जो आप जानना चाहते हैं..
बिल का मकसद : पैसों की वजह से किसी का इलाज न रुके
बिल को हेल्थ सेक्टर में क्रांतिकारी कदम बताया जा रहा है। सरकार की मानें तो बिल का मकसद प्रदेश के हर व्यक्ति को हेल्थ का अधिकार मुहैया कराना है। यानी कोई भी व्यक्ति पैसे की वजह से इलाज के लिए परेशान न हो। मोटे तौर पर यह बिल इमरजेंसी के दौरान हर व्यक्ति को बिना फीस और पुलिस की रिपोर्ट का इंतजार किए बगैर इलाज किए जाने की बात करता है। इस पर होने वाले खर्च का पैसा अगर व्यक्ति नहीं दे सकता है तो सरकार भरेगी। इसके अलावा बिल मरीजों को कई तरह की हेल्थ सुविधाएं देता है।
किस स्टेज पर है बिल ?
फिलहाल यह बिल विधानसभा से पारित हुआ है। विधानसभा से पारित होने के बाद यह बिल अब राज्यपाल के पास है। बिल राज्यपाल से मंजूरी के बाद एक्ट बन जाएगा और उसके बाद इसके सभी नियम डिफाइन किए जाएंगे। उसके बाद यह प्रदेश में लागू हो जाएगा।
10 मुद्दे जिन्हें लेकर डॉक्टर्स जता रहे विरोध
- इमरजेंसी को डिफाइन कौन करेगा : बिल का मोटे तौर पर विरोध प्राइवेट डॉक्टर्स कर रहे हैं। हालांकि कई मुद्दों को लेकर सरकारी डॉक्टर्स भी यह मानते हैं कि इससे उन्हें दिक्कतें आएंगी। बिल को लेकर सबसे बड़ा गतिरोध इमरजेंसी सेवाओं के लिए ही है। डॉक्टर्स का कहना है कि इमरजेंसी को डिफाइन कौन करेगा। एक मरीज और डॉक्टर के लिए इमरजेंसी का मतलब अलग हो सकता है। डॉक्टर्स का कहना है इमरजेंसी में तीन कैटेगरी बनाई गई है। इनमें स्नैक बाइट, पॉइजनिंग और रोड एक्सीडेंट हैं। डॉक्टर्स का कहना है कि स्नैक बाइट टोटल इमरजेंसी का एक प्रतिशत भी नहीं होता। वहीं जो होते हैं उनमें 95 प्रतिशत हार्मलेस होते हैं। जिनमें ट्रीटमेंट की जरूरत नहीं पड़ती। वहीं रोड एक्सीडेंट को लेकर डॉक्टर्स का यह मानना है कि बिल के अनुसार, इमरजेंसी में कोई भी पेशेंट आएगा तो उस समय स्पेशलाइज्ड डॉक्टर वहां हो या न हो पेशेंट का इलाज करना है, स्टेबलाइज करना है। अगर सुविधा नहीं है तो अपनी एंबुलेंस में पेशेंट को रेफर करना पड़ेगा।
- हर बीमारी के फ्री इलाज का माहौल बनाना : डॉक्टर्स का कहना है कि अभी तो बिल ने कानून की शक्ल भी नहीं ली है। अभी से सरकार के नेता, कार्यकर्ताओं ने यह भ्रामक प्रचार करना शुरू कर दिया है कि इस बिल के आने से जनता को सब कुछ शानदार तरीके से मिलने वाला है। कोई भी परेशानी या इमरजेंसी होती है तो आपका अधिकार है कि आप नजदीकी प्राइवेट अस्पताल में जाएं और वहां से ट्रीटमेंट कराकर आप निकल जाएं, बाकी सरकार देखेगी। हर बीमारी के फ्री इलाज का माहौल बनाया जा रहा है। यह भी कहा जा रहा है वहां अगर अस्पताल या डॉक्टर को लेकर कोई भी शिकायत है तो प्राधिकरण में जाइए, आपकी सुनवाई होगी। पहले 10 हजार फिर 25 हजार की पेनल्टी लगाई जाएगी।
- पेशेंट का गोल्डन हावर निकल जाएगा : डॉक्टर्स कहते हैं कि बिल के तहत लोगों को इमरजेंसी में यह सुविधा उन सरकारी अस्पताल या डेजिगनेटेड हेल्थ सेंटर में मिलेगी जिसे सरकार चुनेगी। ऐसे में किसी को चेस्ट पेन हुआ या हार्ट अटैक हुआ तो वह नजदीकी सेंटर पर अप्रोच करेगा। वह प्राइवेट अस्पताल अगर इस श्रेणी में नहीं आता है तो बवाल होंगे, झगड़े होंगे। अस्पताल और पेशेंट में बहस होगी, इससे इलाज का गोल्डन हावर निकल जाएगा। शुरुआती 2 से 4 घंटे में पेशेंट को सही इलाज नहीं मिलता है तो हानिकारक हो सकता है, जान भी जा सकती है। इसके अलावा जरूरी नहीं कि जिस डेजिगनेटेड अस्पताल में पहुंचे वहां वो स्पेशलिस्ट डॉक्टर हो।
- स्पेशलिस्ट नहीं तो स्टेबलाइजेशन खतरा: डॉक्टर्स कहते हैं कि यह बिल बोलता है कि आपके पास सुविधा नहीं है, स्पेशलाइज्ड डॉक्टर नहीं है तो भी इमरजेंसी में उस पेशेंट को अटेंड करना पड़ेगा, उसको स्टेबेलाइज करना पड़ेगा। उसके बाद सही सलामत वह पेशेंट हायर सेंटर जहां सुविधा उपलब्ध हो वहां पहुंच जाए। स्पेशलिस्ट डाॅक्टर नहीं होने के बाद यह भी देखना है कि पेशेंट की डेथ न हो और वो सही सलामत ट्रांसफर करे। अगर कोई प्रेग्नेंसी केस हुआ तो नॉन-गायकॉनालॉजिस्ट कैसे ट्रीट कर सकता है। इस दौरान अगर पेशेंट को कोई भी दिक्कत होती है तो उसकी जिम्मेदारी डॉक्टर और हॉस्पिटल पर आएगी।
- इन्फॉर्म कंसेंट कोई अनजान कैसे देगा : डॉक्टर्स बोलते हैं कि इस बिल में कहा गया है कि अगर आप क्वालिफाइड हैं तो पेशेंट का ट्रीटमेंट स्टार्ट करने से पहले इन्फॉर्मड कन्सेंट लेना पड़ेगा। अगर कोई रोड एक्सीडेंट हुआ और उस व्यक्ति को कोई अननॉन व्यक्ति सड़क से उठाकर लाता है तो कंसेंट कौन देगा। अनजान व्यक्ति वहां पर इन्फॉर्मेड कन्सेंट कैसे देगा। इस सूरत में इलाज नहीं हो पाएगा, देरी होगी। नतीजा पेशेंट को भुगतना पड़ेगा।
- आम आदमी बिल पढ़कर नहीं आएगा: डॉक्टर्स का कहना है कि वैसे ही राजस्थान में पेशेंट-डॉक्टर रिलेशन बेहतर नहीं है। इस बिल से झगड़े बढ़ेंगे, डॉक्टर्स और पेशेंट के बीच दूरियां बढ़ेंगी। माहौल बनाया जा रहा है कि हर बीमारी का इलाज फ्री में होगा। इससे रोज झगड़े होंगे। पेशेंट कहेगा कि फ्री में इलाज दो। बेबुनियादी शिकायतें होंगी, गैर जरूरी ब्यूरोक्रेसी का इंटरफेरेंस होगा, इससे भ्रष्टाचार को और बढ़ावा मिलेगा। खास तौर से हिंसा की घटनाएं बढ़ने लगेंगी।
- 3-4 साल पुराना पैसा भी अब तक नहीं मिला : प्राइवेट डॉक्टर्स का कहना है कि सरकार कहती है कि वो इमरजेंसी सेवाओं का पैसा उन्हें देगी। मगर सरकार की ओर से पैसा समय पर कभी नहीं आता। तीन-चार साल तक पैसा सरकार से नहीं मिलता, आधा पैसा रिजेक्ट कर देते हैं। पहले फ्री में इलाज करवा लेते हैं, उसके बाद बिल में आपत्तियां लगाकर आधा रिजेक्ट कर दिया जाता है। जबकि आधा पैसा आने में सालों लग जाते हैं।
- हर पेशेंट को आधा घंटा तो कितने पेशेंट देख पाएगा डॉक्टर : डॉक्टर्स का यह भी कहना है कि बिल में पेशेंट के अधिकार बताए गए हैं। इसमें कहा गया है कि पेशेंट को डॉक्टर एक-एक चीज समझाएगा। अगर डॉक्टर ने एक पेशेंट को समझाने में आधा घंटा लगाया तो दिनभर में कितने पेशेंट देख सकेगा। हमारे यहां डॉक्टर्स पर वैसे ही पेशेंट का भार होता है। अगर ऐसा नहीं किया तो बिल के तहत आप कानूनन मुजरिम हो जाओगे। सरकारी अस्पतालों में दिक्कतें ज्यादा होंगी।
- गैर-क्लीनिकल व्यक्ति डॉक्टरी प्रक्रिया कैसे समझेगा : आईएमए राजस्थान के प्रेसिडेंट डॉ. सुनील चुग कहते हैं कि शिकायतों और समाधान के लिए अथॉरिटी बनाई गई हैं। ग्रीवनेंस कमेटी में एमएलए-प्रधान को सदस्य बनाया गया था। अगर डॉक्टर के विरूद्ध शिकायत हुई तो कमेटी का कोई भी सदस्य उसके घर, क्लीनिक में घुसकर सर्च एंड सीज कर सकता है। अब डॉक्टर्स को शामिल किया है मगर अब भी ब्यूरोक्रेटस को रखा है।
- बार-बार धोखे में रखा, कैसे मान लें बातें मानी जाएंगी :डॉ. चुग कहते हैं कि सरकार की नियत साफ होती तो मिनट्स के मीटिंग देने में क्या तकलीफ होती। स्वास्थ्य मंत्री का व्यवहार भी ठीक नहीं है। सीएम ने अच्छे से बात की मगर जब हमें बार-बार धोखा मिला हो तो हम कैसे मान लें कि सरकार रूल्स में हमारे अनुसार बदलाव कर देगी।
प्राइवेट हॉस्पिटल एंड नर्सिंग होम सोसायटी के सेक्रेटरी डॉ. विजय कपूर से भी बात की। पढ़िए- उनका क्या कहना था…
बिल को लेकर आपकी क्या आपत्तियां हैं?
डॉ. कपूर : सरकार चिरंजीवी योजना में 20-25 साल के एक्सपीरियंस्ड डॉक्टर सुपर स्पेशियलिटी डॉक्टर को 135 रुपए कन्सलटेशन फीस दे रही है। 135 रुपए में एक प्लम्बर भी नहीं मिलेगा। चिरंजीवी में हम क्वालिटी सर्विस दे रहे हैं। डॉक्टर को एक पूरा इंफ्रास्ट्रक्चर चाहिए, इक्विपमेंट, स्टाफ, बहुत कुछ चाहिए। हमें सेवा के साथ-साथ अपने परिवार भी चलाने हैं। मंत्री, नेताओं को 5-5 पेंशन मिल रही, ब्यूरोक्रेट्स को जितनी सैलरी मिल रही है, उससे आधी सैलरी हमें दे दीजिए, हमारे अस्पतालों को ले लीजिए, हम 24 घंटे सेवा करने को तैयार हैं।
विरोध लोगों की जान की कीमत पर क्यों?
डॉ. कपूर : वाटर कैनन, फीमेल डॉक्टर्स के साथ मारपीट, सरकार के कान पर जूं तक नहीं रैंग रही। ऐसा क्या तरीका हो सकता है जो हम अपनाएं। डॉक्टर्स को भी परेशानी है। हमारी कोर कमेटी के मेंबर डॉ. रामेदव की दोहिती की डेथ हो गई, उनकी दोहिती को ट्रीटमेंट नहीं मिल पाया। हमारे सीनियर कलीग ने कहा कि मेरी सास क्रिटिकल है, कीमोथैरेपी चल रही है, दुर्लभजी में ट्रीटमेंट चल रहा है। उन्होंने कहा कि व्यवस्था करा दें, मेरी आंखों में आंसू आ गए। मैंने कहा मैं कुछ नहीं कर पाऊंगा। हम भी जनता हैं, हम भी भुगत रहे हैं।
डॉ. राकेश पारीक : बिल लागू हुआ तो रास्ते पर आ जाएंगे
डायबैटोलॉजिस्ट डॉ. राकेश पारीक का कहना है कि किसी भी हॉस्पिटल में रोजाना 70 प्रतिशत से ज्यादा एडमिशन इमरजेंसी से होते हैं। सरकार ने जिस तरह से प्रचार किया है, हर आदमी हर चीज के लिए आकर अस्पताल में लड़ाई करेगा। कहेगा-ये मेरा राइट है, मुझे फ्री में भर्ती करिए। वो बिल पढ़कर नहीं आएगा, न ही आप उसको बिल पढ़ा सकते हो। हम अपने एम्पलॉयज को सेलरी तक नहीं दे पाएंगे।
ड्राफ्ट बनने के साथ ही शुरू हो गया था विवाद
राइट टू हेल्थ बिल का ड्राफ्ट जैसे ही सरकार ने तैयार किया, तभी से इसे लेकर डॉक्टर्स में असंतोष शुरू हो गया था। मार्च 2022 में यह राइट टू हेल्थ का ड्राफ्ट सामने आया था।
- ड्राफ्ट में सुझाव मांगे जाने के बाद इंडियन मेडिकल एसोसिएशन की राजस्थान यूनिट ने अप्रैल 2022 में सरकार को पत्र देकर बताया कि बिल में क्या खामियां हैं और वो क्या बदलाव चाहते हैं।
- डॉक्टर्स का कहना है कि इसके बाद हेल्थ सेक्रेटरी की ओर से आश्वासन दिया गया कि बिल में कुछ गलत नहीं होगा, जो बातें कही गई हैं उनका ध्यान रखा जाएगा।
- 22 सितम्बर 2022 को बिल विधानसभा में पेश हुआ। डॉक्टर्स कहते हैं कि जब बिल की कॉपी आई तो उसे देखकर वो हैरान रह गए। बिल को लेकर डॉक्टर्स ने आपत्तियां जताई।
- इसके बाद बिल की खामियों को सिम्पलिफाई कर डॉक्टर्स ने कई विधायकों को दिया। इस पर दर्जनों विधायकों ने विधानसभा में अपनी बात रखी।
- डॉक्टर्स और उनके संगठनों की ओर से 53 पेज का ऑब्जेक्शन लैटर सरकार को दिया गया। साथ ही कमेटी बनाने की भी मांग की गई।
- 17 जनवरी 2023 को इस मामले में सलेक्ट कमेटी बनाई गई। 18 जनवरी को बैठक हुई। इसमें डॉक्टर्स की ओर से 49 पेज का प्रेजेंटेशन सरकार को दिया गया।
- इसे लेकर 22 और 23 जनवरी को प्राइवेट डॉक्टर्स ने पूरे प्रदेश में हड़ताल की।
- 11 फरवरी को फिर से सलेक्ट कमेटी की बैठक रखी गई। इस दिन भी डॉक्टर्स ने काम बंद रखा।
- इसके बाद डॉक्टर्स को सीएम से मुलाकात के लिए कहा गया। 23 फरवरी को यह मुलाकात हुई। इसमें चीफ सेक्रेटरी और फाइनेंस सेक्रेटरी की कमेटी बनाई गई।
- प्राइवेट हॉस्पिटल्स ने जिन चिकित्सीय सेवाओं का बहिष्कार कर रखा था उन्हें फिर से शुरू करने को कहा गया। 10 मार्च तक डॉक्टर्स ने बॉयकॉट बंद कर दिया।
- अखिल अरोड़ा ने कहा कि जो बहिष्कार कर रखा है वो सस्पेंड कर दो। हमने कमेटी में बात की। 25 में से 19 लोगों ने कहा कि बहिष्कार बंद कर देना चाहिए। 10 मार्च तक बॉयकॉट सस्पेंड किया।
- 15 मार्च को सलेक्ट कमेटी की फिर से बैठक हुई। बैठक में डॉक्टर्स को जो बिल दिया गया उसे लेकर डॉक्टर्स ने फिर से आपत्तियां जताई। इसे लेकर 16 मार्च को डाक्टर्स की ओर से चीफ सेक्रेटरी को पत्र लिखा गया।
- इस बीच सरकार की ओर से 18 और 19 मार्च को फिर से बैठक की बात की गई। मगर डॉक्टर्स नहीं पहुंचे और बैठक नहीं हो पाई। इसके बाद 20 मार्च को डॉक्टर्स ने बड़ी रैली निकाली जिसमें डॉक्टर्स पर लाठीचार्ज हुआ।
- 21 मार्च को सरकार ने विधानसभा से बिल पास कर दिया।
राजस्थान में 55 हजार से ज्यादा डॉक्टर्स, 2400 प्राइवेट हॉस्पिटल
राजस्थान में सरकारी, प्राइवेट मिलाकर 55 हजार से ज्यादा डॉक्टर्स हैं। सैकड़ों सरकारी अस्पतालों के अलावा 2400 से ज्यादा प्राइवेट अस्पताल हैं। इनमें जयपुर में ही कम से कम 500 से 600 अस्पताल हैं।