जयपुर : राजस्थान विधानसभा में मंगलवार को राइट टू हेल्थ बिल पास हो गया। कार्यवाही के दौरान पक्ष और विपक्ष के बीच इस बिल को लेकर जमकर बहस हुई। राजस्थान देश का पहला ऐसा राज्य बन गया, जहां राइट टू हेल्थ बिल पारित हुआ है। अब यहां के हर व्यक्ति को इलाज की गारंटी मिलेगी।
सदन में जमकर हुई बहस
सदन में इस बिल पर बहस को लेकर सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच जमकर बहस हुई। बहस में उप नेता प्रतिपक्ष राजेंद्र राठौड़ के बोलने पर संसदीय कार्य मंत्री शांति धारीवाल ने आपत्ति जताई। इसी मुद्दे पर बीजेपी और कांग्रेस विधायकों के बीच बहस हुई। शांति धारीवाल ने तर्क दिया कि प्रवर समिति का मेंबर बहस में भाग नहीं ले सकता।
राठौड़ प्रवर समिति के मेंबर हैं। इस मुद्दे पर बीजेपी विधायकों ने हंगामा किया। बहस के बाद में बीजेपी विधायकों ने इसके कई प्रावधानों को बताते हुए इसे वापस लेने की मांग उठाई। बीजेपी विधायकों ने कहा कि जिन्होंने जिंदगी दांव पर लगा दी थी, उनसे भी नहीं मिल रहे हैं। इससे शर्मनाक क्या होगा?
इमरजेंसी के लिए अलग से फंड बनेगा
बिल पर अपनी बात रखते हुए स्वास्थ्य मंत्री परसादी लाल मीणा ने कहा कि इमरजेंसी की हालत में प्राइवेट अस्पताल को भी फ्री में इलाज करना होगा। प्राइवेट हाॅस्पिटल में इमरजेंसी इलाज के लिए अलग से फंड बनेगा।
लापरवाही करने पर जिला और राज्य स्तर पर प्राधिकरण बनेगा। दोषी पाए जाने पर 10 से 25 हजार का जुर्माना लगाया जाएगा। प्राधिकरण के फैसले को किसी सिविल कोर्ट में चुनौती नहीं दी जा सकेगी।
अब जानिए क्या है राइट टू हेल्थ?
- मरीजों को निजी हॉस्पीटल में भी आपातकालीन स्थिति में निशुल्क इलाज मिल सकेगा।
- बिल के नियमों के तहत आउट डोर पेशेंट्स (OPD), इनडोर भर्ती पेशेंट्स, डॉक्टर को दिखाना और परामर्श, दवाइयां, डायग्नोसिस, इमरजेंसी ट्रांसपोर्टेशन यानी एम्बुलेंस सुविधा, प्रोसीजर और सर्विसेज, इमरजेंसी ट्रीटमेंट मिलेगा।
प्रदेश के प्रत्येक व्यक्ति का हेल्थ इंश्योरेंस सरकार अपने स्तर पर करवाएगी। - अब डॉक्टरों द्वारा दिए जा रहे इलाज की जानकारी मरीज और उसके परिजन ले सकेंगे।
- फीस या चार्ज के एडवांस पेमेंट के बिना इमरजेंसी कंडीशन के दौरान बिना देरी किए प्राइवेट सर्विस प्रोवाइडर जरूरी इमरजेंसी ट्रीटमेंट फैसिलिटी और इंटेंसिव केयर, इमरजेंसी डिलेवरी और ट्रीटमेंट देंगे।
- किसी भी तरह की महामारी के दौरान होने वाले रोगों के इलाज को इसमें शामिल किया गया है।
- इलाज के दौरान यदि मरीज की अस्पताल में मौत हो जाती है और अस्पताल में इलाज का भुगतान नहीं होता है तब भी डेड बॉडी को अस्पताल रोक नहीं सकेंगे।
- किसी मरीज को गंभीर स्थिति में दूसरे हॉस्पीटल में रैफर करने की जिम्मेदारी अस्पताल की होगी। सर्जरी, कीमोथैरेपी की पहले से ही सूचना देकर मरीज या उसके परिजनों से सहमति लेनी होगी।
- किसी मेल वर्कर की ओर से महिला पेशेंट के फिजिकल टेस्ट के दौरान महिला की उपस्थिति जरूरी होगी। उपलब्ध ऑप्शनल ट्रीटमेंट मेथड का सलेक्शन मरीज कर सकेगा।
- रोड एक्सीडेंट्स में फ्री ट्रांसपोर्टेशन, फ्री ट्रीटमेंट और फ्री इंश्योरेंस कवर इस्तेमाल होगा। कोई व्यक्ति एक्ट के नियमों का उल्लंघन करता है तो पहली बार 10 हजार और दूसरी बार 25 हजार का जुर्माना देना होगा।
- इस बिल में मरीज और उनके परिजनों को लेकर भी कुछ कर्तव्य निर्धारित किए गए हैं। स्वास्थ्य देखभाल प्रदाता के साथ मरीज या उसके परिजन दुर्व्यवहार नहीं करेंगे।
निजी अस्पताल इसलिए कर रहे हैं विरोध
राइट टू हेल्थ बिल को लेकर निजी चिकित्सकों के संगठन का कहना है कि राइट टू हेल बिल का मकसद केवल वोटर को लुभाना है क्योंकि इस बिल से नागरिकों को कोई भी अधिक स्वास्थ्य लाभ होता नहीं दिख रहा है। इस बिल से डॉक्टर और मरीज के संबंध खराब होंगे उनके विश्वास में कमी आएगी और उपचार की क्वालिटी में भी कमी आएगी। सभी का स्वास्थ्य का अधिकार सुरक्षित हो यह सरकार की जिम्मेदारी है।
नागरिकों को अधिकार है, लेकिन इसे निजी चिकित्सकों व चिकित्सालय पर थोपा नहीं जा सकता है, संगठन का कहना है कि बिल में इमरजेंसी में मरीज का बिना शुल्क जमा किए, उपचार करना होगा। लेकिन बिल में इमरजेंसी की परिभाषा को स्पष्ट नहीं किया गया है। ना ही चिकित्सालय को भुगतान किस तरह से किया जाएगा इस बारे में भी कोई स्पष्ट प्रावधान है।
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