Rajasthan Health Services: राजस्थान की कांग्रेस सरकार जनता को उपचार का कानूनी अधिकार देने के लिए प्रदेश में राइट टू हेल्थ बिल लागू करने जा रही है. हालांकि, इस बिल को पिछले विधानसभा सत्र में ही पेश किया गया था, लेकिन चिकित्सकों के विरोध के कारण इसे टाल दिया गया था. अब एक बार फिर अशोक गहलोत की सरकार इसे लाने जा रही है. यह देख प्रदेश के निजी चिकित्सकों ने फिर से इसका विरोध शुरू भी कर दिया है.
जब यह बिल पास हो जाएगा तो राजस्थान अपने प्रदेश के 8 करोड़ से ज्यादा लोगों को स्वास्थ्य का अधिकार देने वाला देश का पहला राज्य बन जाएगा।
सरकार ने इसे पब्लिक हेल्थ का राजस्थान मॉडल बताया है, जो एडवांस्ड पब्लिक हेल्थ के युग की शुरुआत करेगा। इस बिल की खास बात यह है कि राजस्थान के 8 करोड़ लोगों को फ्री में इलाज मिलेगा। कैसी भी इमरजेंसी हो यदि मरीज प्राइवेट हॉस्पिटल में भी जाता है तो वहां भी उसका फ्री इलाज होगा। इसके साथ ही प्रदेश के हर व्यक्ति का इंश्योरेंस सरकार करवाएगी। इसके अलावा मरीज से लेकर डॉक्टर्स के लिए भी इस बिल में कई प्रावधान जोड़े गए हैं।
पढ़िए- राजस्थान के राइट टू हेल्थ बिल के बारे में, क्या-क्या सुविधा मिलेगी…
14.55 करोड़ रुपए सालाना बजट
इसमें 14 करोड़ 55 लाख रुपए हर साल खर्च हो सकेगा। इसमें ह्युमन रिसोर्सेज के लिए 14 करोड़ 50 लाख रुपए, स्टेट हेल्थ अथॉरिटी औ डिस्ट्रिक्ट हेल्थ अथॉरिटी मेंबर्स के भत्तों के लिए 5 लाख रुपए का प्रोविजन किया गया है। वक्त के साथ खर्चों में बढ़ोतरी हो सकती है।
राइट टू हेल्थ में यह सब कवर होगा
- राइट टू हेल्थ में बायो-टेरोरिज्म (जैव आतंकवाद), बायो टेक्नोलॉजी, नेचुरल बायोलॉजिकल खराबी पैदा करने वाले या बायोलॉजिकल वेपन, बैक्टीरिया, वायरस, जहरीले तत्व, बायो प्रोडक्ट्स से होने वाले नुकसान भी कवर होंगे।
- केमिकल अटैक, नेचुरल हॉरर (प्राकृतिक विभीषिका), परमाणु हमला या दुर्घटना, प्रभावित आबादी की बड़ी तादाद में मौत, जन हानि, प्रभावित आबादी पर लम्बे समय के लिए प्रभाव या गम्भीर रूप से अक्षम होने, वायरल या जहरीले तत्वों, गैसों का फैलना और उससे होने वाले जोखिम शामिल किए गए हैं।
- एपिडेमिक यानी महामारी के दौरान राइट टू हेल्थ प्रदेश के लोगों के स्वास्थ्य को इलाज का सुरक्षा कवच देगा।
- मेडिकल एंड हेल्थ के किसी भी मेथड (पद्धति) में रिप्रोडक्टिव हेल्थ, इमरजेंसी मेडिकल ट्रीटमेंट, डायग्नोसिस, नर्सिंग, रिहेबिलिटेशन, हेल्थ रिकवरी, रिसर्च, जांच, उपचार, प्रोसीजर्स और अन्य सर्विसेज इसमें शामिल हैं।
- सभी तरह के गवर्नमेंट और प्राइवेट इंस्टीट्यूट, फैसिलिटी, बिल्डिंग, जगह या उसका पार्ट इसमें शामिल हैं।
- इनडोर, आउटडोर यूनिट्स, सरकारी या प्राइवेट स्वामित्व से चलाए जा रहे संस्थान, फंडेड और कंट्रोल्ड इंस्टीट्यूट्स इसमें शामिल होंगे।
- हेल्थ सर्विस प्रोवाइडर में हेल्थ साइंस डॉक्टर्स, नर्स, पैरा मेडिकल स्टाफ, सोशल वर्कर्स, स्पेशियलाइज्ड हेल्थ प्रोवाइडर, नर्सिंग, रिहैब, हेल्थ रिकवरी, ट्रीटमेंट और दूसरी स्वास्थ्य सेवाएं शामिल हैं।
- लॉ, पॉलिसी, प्रोग्राम, प्रोजेक्ट, टेक्नोलॉजी, नुकसान पहुंचाने वाली एक्टिविटीज की पहचान करने, प्रीडिक्शन करने, एनालिसिस और इवेल्यूएशन (मूल्यांकन) करना, संभावित प्रभावों को कम करने के लिए प्रोसीजर, मेथड्स और साधनों का कॉर्डिनेशन इसमें शामिल रहेगा।
- इलाज के खर्चे, जोखिम, फायदों, विकल्पों को भी इसमें शामिल किया गया है।
राइट टू हेल्थ में लोगों को यह मिलेगा
- राइट टू हेल्थ में राजस्थान के हर व्यक्ति को बीमारी का डायग्नोसिस, जांच, इलाज, भावी रिजल्ट और संभावित जटिलताओं और एक्सपेक्टेड खर्चों के बारे में अच्छी तरह जानकारी मिल सकेगी।
- एक्ट के तहत बनाए गए रूल्स के जरिए आउट डोर पेशेंट्स (OPD), इनडोर भर्ती पेशेंट्स, डॉक्टर को दिखाना और परामर्श, दवाइयां, डायग्नोसिस, इमरजेंसी ट्रांसपोर्टेशन यानी एम्बुलेंस सुविधा, प्रोसीजर और सर्विसेज, इमरजेंसी ट्रीटमेंट मिलेगा।
- मरीज को बीमारी की नेचर, कारण, वास्तविक जांच, केयर, इलाज और रिजल्ट, सम्भावित जटिलताओं और एक्सपेक्टेड खर्चों के बारे में पूरी जानकारी मिल सकेगी।
- मरीजों को सभी पब्लिक हेल्थ इंस्टीट्यूट्स की ओर से उनके मेडिकल केयर लेवल के अनुसार फ्री ट्रीटमेंट दिया जाएगा।
- फीस या चार्ज के एडवांस पेमेंट के बिना इमरजेंसी कंडीशन के दौरान बिना देरी किए प्राइवेट सर्विस प्रोवाइडर जरूरी इमरजेंसी ट्रीटमेंट फैसिलिटी और इंटेंसिव केयर, इमरजेंसी डिलेवरी और ट्रीटमेंट देंगे।
- कोई मेडिको-लीगल मामला है, तो हेल्थ केयर प्रोवाइ़डर केवल पुलिस की एनओसी या पुलिस रिपोर्ट मिलने के आधार पर इलाज में देरी नहीं करेगा।
- मरीज को डॉक्यूमेंट, जांच रिपोर्ट, इलाज के डिटेल और पार्टिकुलर वाइज बिलों तक पहुंच होगी।
- सर्जरी, कीमोथैरेपी की पहले से ही सूचना देकर मरीज या उसके परिजनों से सहमति लेनी होगी।
- इलाज के दौरान सीक्रेसी, मानव गरिमा और गोपनीयता का ख्याल रखा जाएगा।
- किसी मेल वर्कर की ओर से महिला पेशेंट के फिजिकल टेस्ट के दौरान महिला की उपस्थिति जरूरी होगी।
- उपलब्ध ऑप्शनल ट्रीटमेंट मेथड का सलेक्शन मरीज कर सकेगा।
- हर तरह की सर्विस और फैसिलिटी की रेट और टैक्स के बारे में सूचना पाने का हक मिलेगा।
- ट्रीटमेंट के दौरान दवा लेने और जांच के सोर्सेस का सलेक्शन किया जा सकेगा।
- हेल्थ की कंडीशन के बारे में मरीज को एजुकेट किया जाएगा।
- सभी गवर्नमेंट और प्राइवेट मेडिकल इंस्टीट्यूट से रेफरल ट्रांसपोर्टेशन की सुविधा मिलेगी।
- डॉक्टर की सलाह के खिलाफ जाकर हॉस्पिटल या ट्रीटमेंट सेंटर छोड़ने वाले मरीज के मामले में इलाज का ब्योरा प्राप्त किया जा सकेगा।
- रोड एक्सीडेंट्स में फ्री ट्रांसपोर्टेशन, फ्री ट्रीटमेंट औरर फ्री इंश्योरेंस कवर इस्तेमाल होगा।
- सेकेंड ओपिनियन लेने के लिए पहले से ट्रीटमेंट करने वाले हेल्थ प्रोवाइडर से ट्रीटमेंट डिटेल और इन्फॉर्मेशन लेने का अधिकार मिलेगा।
- राजस्थान सरकार बाउंड होगी कि राइट टू हेल्थ के लिए बजट में उचित प्रोविजन करे।
- सरकार ट्रीटमेंट क्वालिटी और सेफ्टी मेजरमेंट्स और नॉर्म्स शामिल करेगी।
- गारंटीड सर्विसेज से कोई भी डायरेक्ट या इनडायरेक्ट तौर पर इनकार नहीं किया जा सकेगा।
- पोषण (न्यूट्रिशियन) के लिए पर्याप्त और सुरक्षित खाना देने, सेफ पीने के पानी की व्यवस्था, हाईजीन के लिए सरकारी डिपार्टमेंट्स के बीच कॉर्डिनेशन किया जाएगा।
शिकायत निवारण सिस्टम डेवलप होगा
- एक्ट शुरू होने की तारीख से 6 महीने के अंदर सरकार कम्प्लेंट रिड्रेसल सिस्टम क्रिएट करेगी।
- वेब पोर्टल, सहायता केंद्र शिकायतों को 24 घंटे के अंदर संबंधित अधिकारी या ऑब्जर्वर को भेजेगा।
- संबंधित अधिकारी अगले 24 घंटे के अंदर शिकायत करने वाले को जवाब देगा।
- अगर 24 घंटे में शिकायत का सॉल्यूशन अधिकारी नहीं करता है तो वह शिकायत डिस्ट्रिक्ट हेल्थ अथॉरिटी को तुरंत फॉरवर्ड की जाएगी।
- डिस्ट्रिक्ट हेल्थ अथॉरिटी शिकायत मिलने के 30 दिन में उचित कार्रवाई करेगी और उसकी रिपोर्ट वेब पोर्टल पर अपलोड करेगी। शिकायतकर्ता को भी सूचना दी जाएगी। शिकायतकर्ता को बुलाकर सॉल्यूशन की कोशिश भी की जाएगी।
- डिस्ट्रिक्ट हेल्थ अथॉरिटी की ओर से 30 दिन में सॉल्यूशन नहीं होने पर शिकायत को स्टेट हेल्थ अथॉरिटी को फॉरवर्ड किया जाएगा।
अथॉरिटी के अधिकारी-कर्मचारी पर लीगल कार्यवाही या केस नहीं होगा
राजस्थान सरकार, स्टेट हेल्थ अथॉरिटी, डिस्ट्रिक्ट हेल्थ अथॉरिटी के अध्यक्ष, सदस्य या अथॉरिटी की कमेटी के अधिकारियों, सदस्यों पर सद्भावना से की गई किसी भी बात के लिए कोई केस, अभियोजन या लीगल कार्यवाही नहीं होगी।
स्टेट हेल्थ अथॉरिटी बनेगी
राजस्थान में स्टेट हेल्थ अथॉरिटी बनेगी। जिसमें जॉइंट सेक्रेटरी या उससे ऊपर रैंक का आईएएस अधिकारी अध्यक्ष होगा। हेल्थ डायरेक्टर मेंबर सेक्रेटरी होंगे। जबकि मेडिकल एजुकेशन कमिश्नर, राजस्थान स्टेट हेल्थ एश्योरेंस एजेंसी के जॉइंट सीईओ, आयुर्वेद डायरेक्टर, होम्योपैथी डायरेक्टर, यूनानी डायरेक्टर पदेन सदस्य होंगे। सरकार की ओर से नॉमिनेटेड दो लोग जिन्हें पब्लिक हेल्थ और हॉस्पिटल मैनेजमेंट की नॉलेज हो, वह मेंबर होंगे। पदेन सदस्य के अलावा सभी मेंबर्स की नियुक्ति 3 साल के लिए होगी। 6 महीने में कम से कम एक बार हेल्थ अथॉरिटी की बैठक होगी। साल में 2 बार बैठक करनी होगी।
हर जिले में डिस्ट्रिक्ट हेल्थ अथॉरिटी बनेगी
राजस्थान के सभी जिलों में डिस्ट्रिक्ट हेल्थ अथॉरिटी भी बनाई जाएगी। स्टेट हेल्थ अथॉरिटी बनने की तारीख से 1 महीने के अंदर डिस्ट्रिक्ट हेल्थ अथॉरिटी की ऑटोनॉमस बॉडी बनाई जाएगी। इसमें जिला कलेक्टर पदेन अध्यक्ष होगा। जिला परिषद सीईओ पदेन सह अध्यक्ष होगा। डिप्टी सीएमएचओ पदेन सदस्य, जिला आयुर्वेद अधिकारी और पीएचईडी के एसई पदेन सदस्य होंगे। राज्य सरकार करी ओर से नॉमिनेटेड दो मेंबर सदस्य होंगे। जिला परिषद का प्रमुख इसका सदस्य होगा। साथ ही पंचायत समितियों के 3 प्रधान सदस्य होंगे। पदेन मेंबर्स के अलावा सभी सदस्यों की नियुक्ति 3 महीने के लिए होगी।
प्रदेश भर में डॉक्टरों ने की हड़ताल
शनिवार को राजस्थान के कई जिलों में डॉक्टरों ने हड़ताल की. इसमें निजी क्लीनिक और अस्पतालों के डॉक्टर तो शामिल हुए ही, सरकारी अस्पतालों के डॉक्टरों ने भी हिस्सा लिया. इस कारण प्रदेश भर में चिकित्सा व्यवस्था पूरी तरह से ठप रही. सभी अस्पतालों में इमरजेंसी सेवाएं भी ठप रहीं. इस कारण लोग इलाज के लिए इधर-उधर भटकने को मजबूर रहे. कितने ही मरीजों के आपरेशन तक टाल दिए गए. इलाज के लिए लोग डॉक्टरों के घर भी पहुंचे, लेकिन उन्हें निराशा ही हाथ लगी.
वार्ता से भी नहीं निकला हल
राजस्थान के डॉक्टरों ने इस बिल को राइट टू हेल्थ की जगह राइट टू किल बताया है. डॉक्टरों का कहना है कि इस बिल के आने के बाद वे मरीजों का फ्री में इलाज करने को मजबूर होंगे. डॉक्टरों के प्रतिनिधिमंडल ने बीते 18 जनवरी को स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों के साथ इस पर वार्ता भी की थी. लेकिन, उससे भी कोई हल नहीं निकला. अब डॉक्टर आंदोलन की राह पर हैं.
जानिए, डॉक्टरों के क्या हैं आरोप
प्रदेश सरकार का बहुप्रतीक्षित राइट टू हेल्थ बिल इसी सत्र में पारित होने के आसार बन गए हैं। इस बिल में बदलाव को लेकर सरकार और डॉक्टर्स के बीच करीब 8 बिंदुओं पर सहमति बन गई है। अब सरकार बिल लाती है तो बदलाव के साथ ही आएगा। इसके बाद बिल लागू किया जाएगा। मुख्य सचिव स्तर पर वार्ता सफल रही है। अब मुख्यमंत्री स्तर पर निर्णय होना है।
इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के मीडिया प्रभारी डॉ. संजीव गुप्ता ने कहा है कि ज्वाइंट एक्शन कमेटी के चेयरमैन डाॅ. सुनील चुग के नेतृत्व में चिकित्सकों की मुख्य सचिव स्तर पर हुई वार्ता हुई। अब राइट टू हेल्थ बिल में चिकित्सकों के हितों का समावेश किया गया है। इसके अलावा चिकित्सकों को आ रही परेशानी के अनेक बिंदुओं पर भी सैद्धांतिक सहमति बनी। नए बिंदुओं पर जो सहमति बनी है, वह लागू हुए तो निजी अस्पताल बिना भुगतान के इलाज के लिए बाध्य नहीं होंगे। बता दें कि बिल का डॉक्टर्स लंबे समय से विरोध कर रहे हैं।
सहमति और उसका असर
1 निजी अस्पतालों में कर्मचारियों और सुविधाओं व बिना भुगतान के सभी आपात स्थितियों का इलाज करने की बाध्यता नहीं होनी चाहिए।
यानी : अब निजी अस्पतालों को बिना भुगतान के इलाज नहीं करने की बाध्यता खत्म जो जाएगी। डॉक्टर्स का कहना था कि इमरजेंसी की परिभाषा तय नहीं है।
2 दुर्घटना पीड़ितों के लिए मुफ्त रेफरल परिवहन की सुविधा सरकार को करनी होगी।
यानी : किसी मरीज को बड़े अस्तपालों में रेफर करना हो तो एंबुलेंस की व्यवस्था या तो सरकार करेगी या मरीज को करनी होगी।
3 जिला स्वास्थ्य समिति में ग्राम प्रधान और अन्य स्थानीय प्रतिनिधि होंगे जो पूर्वाग्रह के चलते डाॅक्टर्स के खिलाफ पक्षपाती हो सकते हैं, उन्हें प्राधिकरण में शामिल नहीं किया जाए।
यानी : कोई भी जनप्रतिनिधि सीधे तौर पर अस्पताल पर एक्शन नहीं ले सकेगा। मरीज की शिकायत के बाद सुनवाई बोर्ड में डॉक्टर्स होंगे।
4 डॉक्टर्स और अस्पतालों के खिलाफ एक ही शिकायत निवारण प्रणाली हो। सभी मरीज केवल इसमें ही शिकायत करें।
यानी : शिकायत की जांच विषय विशेषज्ञ ही करेंगे।
5 राज्य सरकार की स्वास्थ्य योजनाओं से जुड़ने के लिए प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से बाध्यता नहीं होनी चाहिए। इसके अलावा पैकेज की दरें ठीक की जाएं।
यानी : निजी अस्पतालों की बाध्यता पूरी तरह खत्म हो जाएगी और संभवत: पैकेज दरें भी बढ़ाई जाएंगी।
डॉक्टरों के क्या हैं आरोप
1. डॉक्टरों का कहना है कि इस बिल के तहत आपात स्थिति में निजी अस्पतालों को भी फ्री इलाज करना है. लेकिन, आपात स्थित क्या हो सकती है, इसे डिफाइन नहीं किया गया है. इस कारण हम किसी भी मरीज का फ्री में इलाज करने को बाध्य होंगे. ऐसी स्थिति में हम अपने खर्चे कैसे चलाएंगे.
2. डॉक्टरों का कहना है कि इस बिल में गंभीर बीमारी से ग्रसित मरीज को रेफर करने की स्थिति में एंबुलेंस की व्यवस्था करना अनिवार्य है. अब इस एंबुलेंस का खर्च कौन वहन करेगा, यह क्लियर नहीं किया गया है.
3. इस बिल में राज्य और जिला स्तर पर प्राइवेट अस्पतालों में इलाज और मरीजों के अधिकारों के लिए प्राधिकरण का गठन किया जाना है. डॉक्टरों की मांग है कि इस प्राधिकरण में विषय विशेषज्ञों को शामिल किया जाए ताकि वे पूरी प्रक्रिया को समझ सकें. अगर ऐसा नहीं होगा, तो चिकित्सकों को ब्लैकमेल किया जाएगा.
4. इस बिल के अनुसार निजी अस्पतालों को भी सरकारी योजना के अनुसार सभी बीमारियों का इलाज नि:शुल्क करना है. अब डॉक्टरों का कहना है कि इसके लिए प्राइवेट अस्पतालों को बाध्य क्यों किया जा रहा है. योजनाओं के पैकेज अस्पताल में इलाज और सुविधाओं के खर्च के मुताबिक नहीं हैं.
5. दुर्घटनाओं के दौरान घायल मरीज को अस्पताल पहुंचाने वालों के लिए तो पांच हजार रुपये प्रोत्साहन का प्रावधान है. लेकिन, अस्पताल वालों को फ्री इलाज करना है. ऐसा कैसे संभव है.
6. दुर्घटनाओं में घायल होने वाले मरीजों को ब्रेन हैमरेज या हार्ट अटैक भी हो सकता है. ऐसे मरीजों का सभी निजी अस्पतालों में तो इलाज भी संभव नहीं है. इस हालत में क्या होगा.
इसके अलावा डॉक्टरों ने अन्य कई मामलों में भी सरकार से अपनी स्थिति स्पष्ट करने की मांग की है. उनका कहना है कि इस बिल में ऐसे प्रावधान किए गए हैं, जिनमें कोई भी चिकित्सक स्वतंत्र होकर मरीज का इलाज नहीं कर सकता.