जयपुर : देश के विधानमंडलों को दलबदल कानून पर न्यायपालिका का हस्तक्षेप पसंद नहीं है। एक के बाद एक अलग-अलग राज्यों में हुई घटनाओं को लेकर विधानमंडलों के मुखिया चाहते हैं कि दलबदल कानून पर कोर्ट के नोटिस नहीं आने चाहिए। वे यह भी चाहते हैं कि कोर्ट की ओर से विधानसभा अध्यक्ष व उपाध्यक्षों को आने वाले कानूनी नोटिस बंद होने चाहिए। इसका समाधान निकालने के लिए राजस्थान विधानसभा में शुरू हुए अखिल भारतीय पीठासीन अधिकारी सम्मेलन में चर्चा हो रही है।
सम्मेलन के बुधवार को उद्घाटन के बाद चर्चा सत्र में विधानसभा अध्यक्षों ने कहा कि विधायिका और न्यायपालिका के बीच सौहार्दपूर्ण संबंध बनाए रखने की आवश्यकता है। अध्यक्षों का मानना है कि इस सम्मेलन के जरिए विधायकों के दलबदल और इस्तीफों के मामले में हाईकोर्ट, सुप्रीम कोर्ट से मिलने वाले नोटिस का मुद्दा उठेगा। दलबदल कानून के तहत विधायकों को अयोग्य ठहराने पर फैसला विधानसभा अध्यक्ष करते हैं लेकिन ये मामले जब न्यायपालिका पहुंचते हैं तो वहां से कानूनी प्रक्रिया शुरू होती है जो मौजूदा समय में लोकतंत्र के दो अहम स्तंभ विधायिका और न्यायपालिका के बीच टकराव का कारण बन रहे हैं।
न्यायपालिका के अलावा विधानसभा अध्यक्षों ने कार्यपालिका को लेकर भी विचार करने की मांग की। उनका कहना है कि कार्यपालिका की जवाबदेही सुनिश्चित करना विधायिका का सर्वप्रथम दायित्व है और जनता की आकांक्षाएं, अपेक्षाओं को पूरा करने में कार्यपालिका की स्क्रूटनी लोकतंत्र को परिपक्व करती है। इसलिए जरूरी है कि कार्यपालिका की स्क्रूटनी की दिशा में जल्द से जल्द काम शुरू हो। इसके लिए देश के सभी विधानमंडलों को मिलकर कार्य करने की जरूरत है। लोकसभा और राज्यसभा इसमें अहम भूमिका निभा सकते हैं। लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने कहा कि देश की सभी विधानसभा इसी साल में डिजिटल हो जाएंगी। इसके बाद उन्हें संसद के डिजिटल संसद प्लेटफॉर्म से जोड़ा जाएगा जहां देश का कोई भी व्यक्ति एक प्लेटफॉर्म पर आकर किसी भी सदन की लाइव कार्यवाही को देख सकेगा।
संसद-विधानसभाओं में गिरता जा रहा जनप्रतिनिधियों का बर्ताव : धनखड़
जयपुर। उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने पीठासीन अधिकारियों के सम्मेलन में कहा कि वर्तमान में संसद और विधानसभाओं में जो माहौल है, वह बहुत निराशाजनक है। हमारे जनप्रतिनिधियों का बर्ताव संसद और विधानसभा में बहुत गिरता जा रहा है। इस निराशाजनक माहौल का समाधान निकाला जाए, इसके अलावा कोई विकल्प नहीं है। जनप्रतिनिधियों के अशोभनीय बर्ताव से जनता भी नाराज है। उन्होंने कहा कि जनप्रतिनिधियों को हमारी संविधान सभा से प्रेरणा लेनी चाहिए जिसकी करीब 3 वर्षों की अवधि में 11 सत्रों के दौरान व्यवधान की एक घटना भी नहीं हुई। उन्होंने एक ऐसी व्यवस्था विकसित करने का आह्वान किया जिससे लोकतंत्र के ये मंदिर मर्यादित और सार्थक संसदीय कार्यपद्धति में उत्कृष्टता के केंद्र बनकर उभर सकें।
जी-20 की अध्यक्षता पर जताई प्रसन्नता
उपराष्ट्रपति ने भारत के जी-20 की अध्यक्षता ग्रहण करने पर प्रसन्नता जताई और कहा कि हमने स्थायी विकास और समावेशी समृद्धि के लिए विश्व को नया मंत्र दिया है ‘एक पृथ्वी, एक परिवार, एक भविष्य’। एक समृद्ध और सशक्त भारत के निर्माण के लिए उन्होंने सभी से आजादी के अमृतकाल में सकारात्मक योगदान करने का आह्वान किया।
विधेयकों पर सदन में व्यापक बहस की जरूरत : बिरला
लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने कहा कि शिमला में पीठासीन अधिकारी सम्मेलन हुआ था। इसमें कई विषयों पर विचार विमर्श हुआ था। इसके बाद संसद और विधानमंडल में प्रक्रियाओं को लेकर बदलाव किए गए। बदलते परिदृश्य में किस तरह से लोकतंत्र और सदन को मजबूत कर सकते है। इन पर चर्चा होती आई हैं। लोकतंत्र भारत की अवधारणा और विचारधारा हैं। दुनिया हमें देख रही हैंं। जी-20 का सम्मेलन हो रहा हैं। लोकतंत्र की जननी भारत हैं। सदन को मजबूत, उत्तरदायी होना चाहिए। जनता की समस्याओं पर चर्चा हों, कानूनों पर चर्चा हो और इसमें भी जनता की भागीदारी हो। उन्होंने कहा कि हमें चिंतन करने की जरूरत है कि 75 साल बाद भी सदन में शालीनता की बात करनी पड़ रही हैं।
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विधानमंडलों को मिले वित्तीय स्वायत्तता : जोशी
राजस्थान विधानसभा के अध्यक्ष डॉ. सीपी जोशी ने कहा कि सदन ज्यादा दिन चले, इसके लिए कानून बनाया जाना चाहिए। वहीं विधानमंडलों को सशक्त करने के लिए उन्हें वित्तीय स्वायत्तता देने की भी आवश्यकता है। न्यायपालिका और विधायिका के बीच संबंध बेहतर रहे इस बारे में भी विचार करने की जरूरत है।
स्पीकर की भूमिका पर चिंता जताते हुए कहा कि यह दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति है कि विधानसभा स्पीकर को सदन बुलाने तक का अधिकार नहीं है। स्पीकर का काम सिर्फ सदन चलाने का ही है।