जोधपुर : राजस्थान का सिगड़ी डोसा, ठेले से 50 लाख का टर्नओवर:पढ़ाई छोड़ कर्नाटक जाकर सीखा, 12 तवों पर बनती हैं 99 वैरायटी

जोधपुर : ऐसा हो सकता है कि देश की कोई फेमस खाने-पीने की आइटम हो और उसका राजस्थानी वर्जन न आए। करीब 2100 साल पहले यूनान से आया पिज्जा, जब राजस्थान पहुंचा तो कुल्हड़ पिज्जा बन गया। ऐसी ही फेमस साउथ इंडियन डिश है डोसा, जो 5वीं सदी से चली आ रही है। दुनिया की टॉप-10 सबसे लजीज डिशेज में शुमार डोसा जोधपुर में बड़े ही अनूठे और देसी अंदाज में तैयार हो रहा है।

ये है डोसा का मारवाड़ी वर्जन, सिगड़ी डोसा। इसे बनाने के लिए 1 नहीं बल्कि 12-12 सिगड़ियों का इस्तेमाल होता है। इतना ही नहीं डोसा की एक से बढ़कर एक 99 वैरायटी भी मिलती हैं। सिगड़ी डोसा को खाने के लिए लोगों की इतनी भीड़ टूटती है कि टोकन कटवाकर लाइन में लगना पड़ता है।

शहर के सरदारपुरा चिल्ड्रन पार्क के पास डेली शाम 5 बजे के बाद कहीं भीड़ खड़ी मिले जाए तो समझ जाइएगा कि यहां सिगड़ी पर डोसा सिक रहा है। भास्कर टीम वहां पहुंची तो ठेले पर डोसा खाने के लिए आए ग्राहक ये बोलते दिखे कि भाईसाहब हम आधे घंटे से खड़े हैं, पहले हमारा ऑर्डर प्लीज।

फूड स्टॉल लगाने वाले राजेंद्र चौधरी ने बताया हर कोई फास्ट फूड का दीवाना है। स्वाद ऐसा है कि महज 4 घंटे में लगभग 100 से ज्यादा ऑर्डर तो केवल ‘पिज्जा डोसा’ वैरायटी के मिल जाते हैं।

गैस पर सिकने वाला डोसा खाने के बाद कई लोगों के पेट में गैस की समस्या हो जाती है। लेकिन सिगड़ी पर यहां नेचुरल कोयले पर सिकाई की जाती है। राजेन्द्र ने दावा किया कि उनके यहां डोसा खाने से एसीडीटी जैसी समस्या नहीं होती।

इसलिए हमने साउथ इंडियन डिश के साथ वेस्टर्न का मिक्सअप करके डोसा की नई रेंज तैयार की है। जिसमें पिज्जा डोसा, जीनी डोसा, पाव भाजी कॉम्बिनेशन, मैसूर डोसा जैसी 99 वैरायटी शामिल हैं। खास बात यह है कि इसमें साउथ इंडियन के साथ-साथ लोकल मसालों का इस्तेमाल होता है।

B.Com छोड़ खोला बिजनेस
जायका टीम को राजेन्द्र ने बताया कि 12वीं के बाद मेरा पढ़ाई में बिल्कुल मन नहीं था। साल 2020 में बीकॉम में एडमिशन तो ले लिया था, लेकिन बीच में ही छोड़ दी। शुरू से ही खुद का बिजनेस करने का माइंड सेट था। इसी को ध्यान में रखते हुए अपने रिश्तेदार के कहने पर बेंगलुरु के लिंगराजपुरम गया।

वहां जाकर दो साल तक साउथ इंडियन शादियों में कैटरिंग का काम किया। डोसा तो जैसे साउथ इंडिया की जान है। ऐसी कोई शादी ही नहीं होती जिसमें डोसा न हो। होड़ लगती है कि किसकी शादी में डोसा की सबसे ज्यादा वैरायटी हैं।

वेडिंग सीजन में कैटरिंग का काम जबरदस्त होता है, लेकिन बीच में 4-5 महीने ऑफ सीजन के रहते हैं। इस दौरान काम नहीं था। ऐसे में घर लौट आया। खाली बैठे-बैठे सोचा क्यों न कुछ नया किया जाए। मार्च 2022 में एक ठेले से डोसा बनाकर बेचने की शुरुआत की। साउथ इंडियन टेस्ट बना रहे और राजस्थानी लोग भी डोसा पसंद करें, इसके लिए कर्नाटक से ही डोसा बनाने वाले कारीगर लेकर आया।

आमतौर पर डोसा एलपीजी गैस पर मोटे तवे पर ही बनता है। लेकिन देसी तड़का लाने के लिए सिगड़ी का कॉन्सेप्ट सोचा। जब लोगों ने सिगड़ी पर डोसा बनते देखा तो ग्राहकों की भीड़ आने लगी। धीरे-धीरे लोगों को स्वाद पसंद आने लगा। आज शाम के 5 बजे बाद खाने पीने के शौकीनों की भारी भीड़ जुटती है।

व्यवस्था बनाए रखने के लिए टोकन काटकर डोसा बेचा जाता है। इस काम में राजेंद्र के बड़े भाई मोहित चौधरी भी बराबर का साथ निभाते हैं।

सालाना कारोबार 50 लाख के करीब

राजेन्द्र ने बताया कि 2 लाख रुपए का इंतजाम कर इसकी शुरुआत की। शुरुआत में कम वैरायटी थी लेकिन अब 99 प्रकार का डोसा मिलता है। जिनमें पनीर कॉम्बिनेशन डोसा, पालक डोसा, कॉर्न डोसा, मशरूम, स्प्रिंग डोसा, शेजवान मसाला डोसा, पनीर स्वीट कॉर्न डोसा भी शामिल है। 70 रुपए का प्लेन बटर डोसा से लेकर 150 रुपए वाला पिज्जा डोसा तक मिलता है। डेली 350 से ज्यादा ऑर्डर मिलते हैं और सालाना टर्न ओवर 45 से 50 लाख के बीच है।

 

अब आपको बताते हैं सबसे रोचक बात, कहां से आया डोसा?

तमिल इतिहासकारों की मानें तो डोसा का पहला जिक्र 5वीं सदी में मिलता है। कर्नाटक के उडुपी के मंदिर के आस-पास की गलियों में हजार साल पहले से ही डोसा बनता आ रहा है। तब वहां के ब्राह्मणों ने ही चावल में खमीर पैदा कर इसे बनाने की शुरुआत की थी, लेकिन मसाला डोसा की का इतिहास मैसूर के महाराजा विजयराज-कृष्ण राज वडयार (15वीं शताब्दी) के दौर से जुड़ा है।

उन्होंने मैसूर पैलेस में एक फेस्टिवल का आयोजन करवाया था। इस दौरान बहुत सारा भोजन बच गया था। खाना बर्बाद न हो इसलिए शाही रसोइयों बची हुई सब्जियों में मसाले मिलाकर डोसे के अंदर डालकर सर्व किया। इस तरह मसाला डोसा की खोज हुई थी।

 

 

 

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