महोबा जनपद में सावन मास में लगने वाले उत्तर भारत के 8 वी सदी के सबसे पुराने ऐतिहासिक कजली मेले का एमएलसी जितेंद्र सिंह सेंगर ने फीता काटकर शुभारंभ किया। महोबा का कजली मेला आल्हा -ऊदल के शौर्य, स्वाभिमान व मातृभूमि प्रेम का अनूठा उदाहरण है। आल्हा और ऊदल के पराक्रम से जुड़ा महोबा का ऐतिहासिक कजली मेला लोगों को त्याग और बलिदान की याद दिलाता है। ऐतिहासिक कजली मेले मैं सुरक्षा व्यवस्था को लेकर को लेकर पुलिस प्रशासन ने सुरक्षा के व्यापक इंतजाम किए हैं।
हाथी घोड़े ऊंट ओर विभिन्न झांकियों के साथ निकला जुलूस का ऐतिहासिक सागर में जाकर कजली विसर्जन के बाद समापन किया जाएगा। चन्देल शासकों की ऐतिहासिक नगरी महोबा में आज कजली मेले के उदघाट्न को लेकर खासा उत्साह देखने को मिला। महोबा जनपद के साथ साथ सीमावर्ती मध्यप्रदेश के जनपदों के दूर दराज के गाँवों से भी कजली मेले में वीर योद्धा आल्हा, ऊदल की भव्य और आकर्षक झांकियों को देखने के लिए लाखों की भीड़ सड़कों पर उमड़ पड़ी।
843 वर्ष पहले महोबा के चंदेल राजा परमाल के शासन से कजली मेले की शुरुआत हुई थी। चंदेल शासक की परंपरा को आज भी महोबा नगर पालिका परिषद जीवांत रखे हुए हैं। आल्हा उदल की भव्य आकर्षक झांकियां के आगे महिलाएं सिर पर कजली कलश लेकर बैंड बाजों के साथ कीरत सागर के तट पर विसर्जन करने निकलती हैं। जिनके पीछे पीछे आल्हा हाथी पर सवार, उदल घोड़े पर सवार, राजा परमार की तमाम सेना इस दिव्य शोभायात्रा में आकर्षण का केंद्र रहती है।
दरअसल, राजा परमाल की पुत्री चंद्रावल अपनी 14 सखियों के साथ भुजरियां विसर्जित करने कीरत सागर जा रही थीं। तभी रास्ते में पृथ्वीराज चौहान के सेनापति चामुंडा राय ने आक्रमण कर दिया था। पृथ्वीराज चौहान की योजना चंद्रावलि का अपहरण कर उसका विवाह अपने बेटे सूरज सिंह से कराने की थी। उस समय कन्नौज में रह रहे आल्हा और ऊदल को जब इसकी जानकारी मिली तो वे चचेरे भाई मलखान के साथ महोबा पहुच गए और राजा परमाल के पुत्र रंजीत के नेतृत्व में चंदेल सेना ने पृथ्वीराज चौहान की सेना पर आक्रमण कर दिया था।
24 घंटे चली लड़ाई में पृथ्वीराज का बेटा सूरज सिंह मारा गया। युद्ध में पृथ्वीराज चौहान को पराजय का सामना करना पड़ा। इस युद्ध में चंदेल योद्धा अभई व रंजीत भी मारे गए थे। युद्ध के बाद राजा परमाल की पत्नी रानी मल्हना, राजकुमारी चंद्रावल व उसकी सखियो ने कीरत सागर में भुजरियां विसर्जित कीं। इसके बाद पूरे राज्य में रक्षाबंधन का त्योहार मनाया गया। तभी से महोबा क्षेत्र के ग्रामीण रक्षाबंधन के एक दिन बाद अर्थात भादों मास की परीवा को कीरत सागर के तट से लौटने के बाद ही बहने अपने भाइयों की कलाई पर राखी बांधती है।