सतयुग दर्शन वसुन्धरा में स्थित ध्यान कक्ष के प्रांगण में आयोजित किया गया ‘योगा फॉर ह्यूमैनिटी

सतयुग दर्शन वसुन्धरा में स्थित ध्यान कक्ष के प्रांगण में आयोजित किया गया ‘योगा फॉर ह्यूमैनिटी – अडाप्टींग इक्वेलिटी‘ नामक कार्यक्रम
आप सबकी जानकारी हेतु हरियाणा के प्रमुख पयर्टक स्थल ध्यान-कक्ष यानि समभाव-समदृष्टि के स्कूल में आज बहुत ही सुदर तरीके से योग दिवस मनाया गया। कार्यक्रम में न केवल फरीदाबाद के स्थानीय निवासियों ने वरन्‌ एन०सी०आर० से आए सैकड़ो सजनों ने हर्षोल्लास के साथ भाग लिया। इस कार्यक्रम में इंटरनेशलन योगा एकपर्ट मिस प्रियंका सिन्हा ने बड़ी ही निपुणता से उपस्थित सजनों को योगाभ्यास कराया व इसके पश्चात्‌ समभाव-समदृष्टि के स्कूल से सबको संदेश दिया गया कि योग केवल शारीरिक रूप से हृष्ट-पुष्ठ हो स्वस्थ व निरोगी रहने का साधन नहीं, न ही यह मात्र प्राणायाम या श्वास रोकने तक सीमित है, अपितु यह तो शारीरिक, मानसिक व आत्मिक बल प्रदान करने के साथ-साथ, आत्मा में जो है परमात्मा, उसका बोध/साक्षात्कार करने का माध्यम है यानि यह प्रफुल्लचित्तता से मानव धर्म अनुसार आत्मविकास के मार्ग पर प्रशस्त होते हुए, स्थूलता से सूक्ष्मता की ओर जाने का नाम है। अत: मानसिक तनावों से मुक्त हो अपने शरीर व नाड़ी संस्थान को चुस्त, स्वस्थ व लचीला बनाओ ही साथ ही समता योग द्वारा अपने मन-चित्त वब बुद्धि को भी सम यानि शांत अवस्था में साधे रखो।

इस तरह सजनों को स्पष्ट किया गया कि समत्व ही योग है अर्थात्‌ हानि-लाभ, सुख-दु:ख आदि द्वन्द्वों में समभाव रखते हुए कदाचित्त विचलित न होना ही योग कहलाता है। इस आशय से योग नाम है प्रवृत्ति और निवृत्ति के संयोग का व इसका परिणाम मोक्ष है। यदि इस योग को अपनाना चाहते हो तो याद रखो कि इसके लिए आवश्यक है, गम्भीरता से सम-भाव का चिन्तन एवं मनन कर उसे आत्मसात्‌ करने की अर्थात्‌ सर्व-सर्व ब्रह्म ही ब्रह्म भासित है, इस भाव को अपने हृदय में ठहराते हुए, तद्‌नुकूल अपने विचार व ध्यान दृष्टि को इस पर खड़ा करने की और परस्पर आत्मीयता अनुकूल व्यवहार करते हुए सजनता के प्रतीक बनने की। ऐसा करने पर ही समभावी-समदृष्ट इंसान बन पाओगे और आत्मिक ज्ञान प्राप्त कर, सभी चिंताओं/कर्म बन्धनों से मुक्त हो, परमतत्व में लीन हो पाओगे।
कहा गया कि इस उपलब्धि हेतु सजनों सदा याद रखना कि काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार, आलस्य आदि योग साधना को भंग करने वाले विकारी संसारी तत्त्व हैं। अत: भूल कर भी मन को चंचल व चित्त को विकल करने वाले इन दुश्मनों के वश मे आकर भोगी मत बनना अपितु वैराग्य और अभ्यास के बल पर योग साधना को सहज सिद्ध करने वाले योगी कहलाना। कार्यक्रम के अंत में सबने समभाव का ऐसा ही योगी बनने हेतु संकल्प लिया कि:-


आत्मा और तन-मन के सहयोग से हम रक्षा करेंगे रक्षा करेंगे
मानवता के सिद्धान्त की, मानवता के सिद्धान्त की, मानवता के सिद्धान्त की
आप भी सजनों यदि चाहें तो आप भी ध्यान-कक्ष में सबके लिए समान रूप से आयोजित इन आयोजनों का हिस्सा बन सकते हैं। आप सबकी जानकारी हेतु इस ध्यान-कक्ष में बिना किसी भेदभाव के समाज के हर वर्ग के सदस्य के लिए, सतवस्तु के कुदरती ग्रन्थ से उद्धृत आत्मिक ज्ञान के आधार पर, समभाव-समदृष्टि की युक्ति अनुसार, सजन भाव की इसी प्रकार पढ़ाई कराई जाती है ताकि प्रत्येक इंसान हृदय सुशोभित अपनी चेतन शक्ति आत्मा का सुबोध करने में सक्षम हो, यथार्थता अनुरूप जीवन जीने के योग्य बन सके।

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