We are an education platform that is deeply committed to imparting quality education. To do this we have in place a strict Code of Conduct for all our educators with the intention of ensuring that our learners have access to unbiased knowledge.
Our learners are at the centre of…
— Unacademy (@unacademy) August 17, 2023
सांगवान ने कहा कि वह शनिवार को अपने यूट्यूब चैनल पर विवाद के बारे में विवरण साझा करेंगे। उन्होंने कहा, ‘पिछले कुछ दिनों से एक वीडियो वायरल हो रहा है जिसके कारण मैं विवाद में हूं और उस विवाद के कारण मेरे कई छात्र जो न्यायिक सेवा परीक्षाओं की तैयारी कर रहे हैं उन्हें बहुत सारे परिणाम भुगतने पड़ रहे हैं। उनके साथ-साथ मुझे भी परिणाम भुगतना पड़ रहा है।’
कंपनी द्वारा उनको निकाले जाने का यह क़दम उठाए जाने के बाद सोशल मीडिया पर तीखी प्रतिक्रिया हुई है। लोगों ने सवाल उठाए हैं कि क्या यह कहना कभी ग़लत हो सकता है कि पढ़े-लिखे नेताओं को वोट देना। इस पर टिप्पणी करने वालों में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल भी हैं।
केजरीवाल ने नौकरी से निकाले जाने पर सवाल पूछा, ‘क्या पढ़े-लिखे लोगों को वोट देने की अपील करना अपराध है? अगर कोई अनपढ़ है तो मैं व्यक्तिगत रूप से उसका सम्मान करता हूं। लेकिन जन प्रतिनिधि अनपढ़ नहीं हो सकते। यह विज्ञान और तकनीक का युग है। 21वीं सदी में अनपढ़ जन प्रतिनिधि कभी भी आधुनिक भारत का निर्माण नहीं कर सकते।’
क्या पढ़े लिखे लोगों को वोट देने की अपील करना अपराध है? यदि कोई अनपढ़ है, व्यक्तिगत तौर पर मैं उसका सम्मान करता हूँ। लेकिन जनप्रतिनिधि अनपढ़ नहीं हो सकते। ये साइंस और टेक्नोलॉजी का ज़माना है। 21वीं सदी के आधुनिक भारत का निर्माण अनपढ़ जनप्रतिनिधि कभी नहीं कर सकते। https://t.co/YPX4OCoRoZ
— Arvind Kejriwal (@ArvindKejriwal) August 17, 2023
करण सांगवान ने इस मामले में एक वीडियो जारी किया है। सिद्धार्थ नाम के यूज़र ने उस वीडियो को साझा करते हुए लिखा है, ‘शिक्षक करण सांगवान ने जारी किया अपना नया वीडियो, कहा बच्चों की पढ़ाई का नुकसान नहीं होने देंगे। करण सांगवान के लिए भारी सम्मान।’
Breaking‼️
Teacher #KaranSangwan released his new video, says will not let the children's education be harmed
Massive Respect for Karan Sangwan🫡 #UninstallUnacademy
— Siddharth (@SidKeVichaar) August 17, 2023
इधर, कुछ दिनों से अशोक विश्वविद्यालय में भी शैक्षणिक स्वतंत्रता को लेकर घमासान मचा हुआ है। पहले तो अशोक विश्वविद्यालय में एक शोध से विवाद के बाद अर्थशास्त्र विभाग के प्रोफेसर सब्यसाची दास ने इस्तीफ़ा दे दिया था, लेकिन बाद में उनके समर्थन में अर्थशास्त्र विभाग के एक अन्य प्रोफ़ेसर ने भी इस्तीफा दे दिया। इस बीच संकाय सदस्यों ने विश्वविद्यालय प्रशासन को पत्र लिखकर शैक्षणिक स्वतंत्रता पर चिंता जताई। और फिर राजनीति विज्ञान, समाजशास्त्र और मानव विज्ञान विभागों ने दास के साथ एकजुटता व्यक्त करते हुए बयान जारी किए हैं।
राजनीति विज्ञान विभाग ने एक बयान में कहा है, ‘अशोक विश्वविद्यालय में राजनीति विज्ञान विभाग सर्वसम्मति से प्रोफेसर सब्यसाची दास के साथ अपनी एकजुटता व्यक्त करता है। प्रोफेसर दास के काम से खुद को अलग करने के विश्वविद्यालय के रुख और उनके शोध की जांच करने के सरकारी परिषद के फैसले के बाद उन्होंने अर्थशास्त्र विभाग से इस्तीफा दिया।’
सब्यसाची दास द्वारा प्रकाशित एक शोध पत्र में 2019 के आम चुनाव में भाजपा द्वारा वोट में संभावित हेरफेर का संकेत दिया गया है। विवाद बढ़ता देख विश्वविद्यालय ने एक अगस्त को ही कह दिया था कि इसके संकाय, छात्रों या कर्मचारियों द्वारा उनकी ‘व्यक्तिगत क्षमता’ में सोशल मीडिया गतिविधि या सार्वजनिक सक्रियता विश्वविद्यालय के रुख को प्रतिबिंबित नहीं करती है।