झुंझुनूं-खेतड़ी(खेतडीनगर) : हिंदुस्तान कॉपर लिमिटेड से महज 3 किलोमीटर दूर 500 घरों की बस्ती का गांव मानोता कलां कृषि के काम में आने वाले छोटे औजारों के लिए प्रसिद्धी प्राप्त कर चुका है। हाथ से बने कृषि के औजार की प्रसिद्धि इतनी कि हरियाणा पंजाब व मेवात सहित राजस्थान के कई इलाकों में कुल्हाड़े, दांतली, जेली, कसीया, खुरपा, फावड़े के औजारों की मांग रहती है। पड़ोसी राज्य हरियाणा में तो लोग मानोता पहुंचकर औजारों को खरीद कर ले जाते हैं। औजारों की क्वालिटी ऐसी कि मानोता नाम ही ब्रांड बन गया। दूर-दूर से इन औजारों को खरीदने के लिए लोग आते हैं। स्थानीय निवासी पवन कुमार जांगिड़ ने बताया मानोता कला में पिछली 3 पीढ़ियों से कृषि के औजार बनाए जा रहे हैं। शुरुआत में मामचंद जांगिड़ ने यह कार्य शुरू किया था। इसके बाद तो पीढ़ी दर पीढ़ी यह कार्य शुरू हो गया। इस समय मानोता में ही कई परिवार कृषि के औजार बना रहे हैं। फिलहाल प्रकाश, लालचंद, पवन, सुजीत, मनोज, महेंद्र सहित कई लोग औजार बनाने के कार्य में लगे हुए हैं। उनके पास कार्य इतना है कि पहले से ही औजारों की बुकिंग हो जाती है। वहीं इन औजारों की बिक्री को देखते हुए गाड़िया लोहार भी वहीं पर आकर रहने लगे तथा औजार बनाकर गांव गांव में मानोता कलां के कृषि औजार के नाम से बेच रहे हैं।
गाडिया लुहार भी कृषि औजारों को बनाते हुए।
कृषि औजारों को बनाता कारीगर।
हरियाणा पंजाब मेवात से खरीदने आते हैं औजार
मानोता कला के औजारों की ख्याती इतनी बढी हुई है कि राजस्थान के शेखावाटी क्षेत्र में तो औजार जाते ही हैं। इसके अलावा हरियाणा, पंजाब व मेवात से भी औजार खरीदने के लिए आते हैं। पूरे साल भर इनका कार्य लगातार चलता रहता है। महीने दो महीने पहले ही ऑर्डर एडवांस में ही आते रहते हैं। फसल बुवाई के समय तो इनको फुर्सत भी नहीं मिलती है।
औजार बनाने में अपनाते हैं परंपरागत तकनीक
मानोता में कृषि औजारों में तकनीक का विशेष ध्यान रखा जाता है। औजारों के लिए उच्च स्तर का लोहा लेकर भट्टी में गरम करके धार व पान लगाई जाती है। कुटाई में भी विशेष तकनीक अपनाकर मजबूती प्रदान की जाती है। इससे यहां के बनाए औजार कभी भी मुड़ते नहीं है, वह टूटते भी नहीं है।