झुंझुनूं-पिलानी : झुंझुनूं जिले के पिलानी में गांव झेरली के रहने वाले 174 परिवारों की घर खोने के डर से नींद उड़ी हुई है। यहां 174 मकानों को सिवाय चक भूमि (जोहड़ की भूमि) पर अतिक्रमण मानते हुए तोड़ने का राजस्थान हाईकोर्ट ने आदेश दिया है। हाई कोर्ट के आदेश के बाद अब प्रशासन ने गांव के वार्ड नं 8, 9 में जोहड़ भूमि पर बने मकानों को चिह्नित करना शुरू कर दिया है। इसके साथ ही 11 अगस्त शुक्रवार तक जवाब मांगा गया था।
गांव के लोग शुक्रवार को तहसीलदार के नोटिस का जवाब देने के लिए पिलानी तहसील पहुंचे। इस दौरान नोटिस का जवाब देने के साथ ही आरएलपी नेता राजकुमार नायक और राजेन्द्र शर्मा 174 परिवार के लोगों ने इस मामले पर प्रशासन से फिर से विचार करने, घरों को न उजाड़ने और समस्या का समाधान सहानुभूतिपूर्वक निकालने की मांग की।
जानकारी के अनुसार परिवारों के जवाब से संतुष्ट न होने पर प्रशासन इन मकानों को जमींदोज करने की कार्रवाई कर सकता है। आपको बता दें कि 25 मई 2023 को हाईकोर्ट ऑर्डर आया। जिसमें कलेक्टर मामले में फौरन कार्रवाई के लिए कहा गया। जिस पर तहसीलदार ने सभी परिवारों को नोटिस जारी कर 11 अगस्त तक जवाब मांगा।
प्रभावित परिवारों ने बताया कि गांव की वर्तमान सरपंच अनूप देवी पत्नी पूर्णमल के परिवार का रास्ते को लेकर गांव के ही कुछ अन्य लोगों के साथ विवाद था। पूर्णमल पुत्र समंदर सिंह मेघवाल निवासी ढाणी सेबली ने खुद के घर तक रास्ता न होने का हवाला देकर जुलाई 2023 में याचिका दायर की थी।
इस पर आए हाईकोर्ट के ऑर्डर के बाद 174 परिवारों की नींद उड़ गई है।
गांव वालों ने बताया कि इससे पहले 2018 में भी पूर्णमल की ही याचिका पर दिए गए हाई कोर्ट के आदेश पर तत्कालीन जिला कलेक्टर रवि जैन ने जून 2019 में सूरजगढ़ तहसीलदार से मामले की विस्तृत रिपोर्ट मांगी थी। जुलाई 2019 में तहसीलदार की ओर से दी गई रिपोर्ट को न्यायालय में दाखिल रिकॉर्ड किया गया था। जिसके अनुसार ढाणी सेबली- झेरली के खसरा नं 331, 357, 358, 504 व 506 को जोहड़, चारागाह व मन्दिर की भूमि को चिह्नित किया गया था।
सूरजगढ़ तहसीलदार ने अपनी रिपोर्ट में जानकारी दी थी कि इन जमीनों पर कुल 174 परिवार कच्चे-पक्के मकान बना कर रह रहे हैं। इन 174 परिवारों में अनुसूचित जाति के 95, अनुसूचित जन जाति के 22 और सामान्य/अन्य पिछड़ा वर्ग के 57 परिवार हैं। जिनके पास रहने की अन्य कोई वैकल्पिक व्यवस्था नहीं हैं और ये सभी भूमिहीन हैं।
कलेक्टर रवि जैन ने हाई कोर्ट के आदेश और तहसीलदार की रिपोर्ट के आधार पर सितम्बर, 2019 में जिन 133 परिवारों ने यहां आवास बना लिया है, उन्हें छोड़ कर चारदीवारी और टिन शेड बना कर रोके गए बाकी 41 भूखंडों से अतिक्रमण को हटाने का आदेश जारी किया था। कलेक्टर के इस आदेश की पालना नहीं हो पाई, जिसके बाद 4 जुलाई, 2023 को पूर्णमल ने फिर से उच्च न्यायालय में एक याचिका दाखिल कर दी।
गांव वालों का कहना है कि अप्रैल 2015 में झेरली ग्राम पंचायत की ओर से मुख्य सड़क से हाईकोर्ट में याचिका दायर करने वाले पूर्णमल के घर के दरवाजे से तक सरकारी खर्चे पर ईंटों का खरंजा बनाया गया था। इसकी कुल कीमत 3.18 लाख रुपए आई थी। गांव वालों ने आरोप लगाया कि पूर्णमल ने इसी विवादित जोहड़ की भूमि के एक प्लॉट का 2001 में बेचान भी किया था और वर्तमान में भी इसी विवादित जोहड़ के 1 अन्य प्लॉट पर पूर्णमल का कब्जा है।
50-55 साल से रह रहे
50-55 वर्षों से यहां रह रहे कई परिवारों की तो तीसरी पीढ़ी भी इन मकानों में ही पैदा हुई है। कई ऐसे परिवार हैं, जिन्होंने पहले गांव के विकास के लिए अपनी जमीन ग्राम पंचायत को दी और उसके बदले में उन्हें ग्राम पंचायत ने ही वार्ड नं 8, 9 में भूखंड दिए जिनके पट्टे भी जारी किए थे।
गांव के श्योचंद पुत्र श्योजीराम धानका और मंगलाराम पुत्र लादूराम धानका ने 1970 में प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र के लिए, मालाराम, हनुमान और मूलाराम पुत्र नारायण सिंह दरोगा ने ग्राम पंचायत भवन और जलदाय विभाग की पानी की टंकी के लिए और हनुमान, श्रीचंद पुत्र खेताराम नाई ने गांव में ही आईटी केन्द्र के अलावा सरकार स्कूल के लिए अपनी निजी जमीनें दी थी। बदले में झेरली ग्राम पंचायत द्वारा वार्ड 8 और 9 में इन्हें आवास हेतु भूमि दी गई थी। ग्राम पंचायत झेरली द्वारा 1975 में तत्कालीन सरपंच और तहसीलदार द्वारा बनाए पट्टे भी वार्ड 8, 9 में बसे हुए लोगों को दिए गए थे।
केस-1
श्योचंद पुत्र श्योजीराम धानका और मंगलाराम पुत्र लादूराम धानका ने बताया कि 1970 में गांव में स्वास्थ्य केंद्र के लिए अपनी जमीन ग्राम पंचायत को दी थी। इसके बदले वार्ड नं 8 में उन्हें ग्राम पंचायत द्वारा भूमि उपलब्ध करवाई गई थी।
इस भूमि का पट्टा भी ग्राम पंचायत द्वारा जारी किया गया था, लेकिन जानकारी के अभाव में पट्टे को रजिस्टर्ड नहीं करवाया जा सका। आज ग्राम पंचायत द्वारा उन्हें दी गई जमीन, जहां उन्होंने वर्षों की मेहनत के बाद अपना मकान आदि बनवाया है, उसको भी अतिक्रमण मान लिया गया है।
केस-2
70 के दशक में गांव का धीरे धीरे विस्तार हो रहा था। उस दौर में कई तरह की नागरिक सुविधाओं की जरूरत गांव में महसूस की जा रही थी। ऐसे में गांव के मालाराम, हनुमान और मूलाराम पुत्र नारायण सिंह दरोगा ने ग्राम पंचायत भवन और जलदाय विभाग की पानी की टंकी के लिए अपनी जमीन सरकार को दी थी।
बदले में ग्राम पंचायत ने उन्हें इसी जोहड़ में जो जमीन उपलब्ध करवाई, जिसका कि पट्टा भी ग्राम पंचायत द्वारा जारी किया गया था, उसे भी अतिक्रमण घोषित कर दिया गया है। परिवार के रमेश कुमार ने बताया कि परिवार के बुजुर्गों के लिए जमीन का पट्टा होना ही अपने आप में काफी था।
लिहाजा जानकारी के अभाव में उन्होंने भी पट्टे का रजिस्ट्रेशन नहीं करवाया। अब ये नहीं समझ आ रहा कि इस संकट से कैसे बचा जाए।
केस-3
गांव के श्रीचंद पुत्र खेताराम नाई ने गांव में ही आईटी केन्द्र के अलावा सरकारी स्कूल के लिए अपनी निजी जमीनें दी थीं। बदले में झेरली ग्राम पंचायत द्वारा वार्ड 8 और 9 में इन्हें आवास हेतु भूमि दी गई थी। इन्हें जो जमीनें पंचायत ने दी थी उनमें से एक जमीन को अतिक्रमण की श्रेणी में माना जा रहा है।
आरएलपी नेता राजकुमार नायक और गांव के राजेंद्र शर्मा ने बताया कि विवादित भूमि पर आबाद 174 परिवारों के लिए न सिर्फ ग्राम पंचायत व भामाशाहों ने नागरिक सुविधाएं विकसित और समर्पित की हैं बल्कि राज्य सरकार ने भी समय-समय पर अपनी योजनाओं का लाभ यहां बसे लोगों को दिया है।
ग्राम पंचायत ने 1989 में राजस्व अभियान कैम्प में गांव की आबादी भूमि के विस्तार का प्रस्ताव दिया था, जिसे स्वीकृति के लिए जिला कलेक्टर को भेजा गया था। यहां रह रहे लोगों की सुविधा के लिए बिजली-पानी के कनेक्शन भी सम्बन्धित विभागों द्वारा दिए गए हैं। इसके लिए एनओसी ग्राम पंचायत ने ही जारी की है।
जलदाय विभाग ने वार्ड नं 8, 9 के रहवासियों के लिए 2003 में नलकूप भी बना कर दिया है। बाद में पानी सूख जाने पर भामाशाह डॉ. मधुसूदन मालानी ने यहां दूसरा नलकूप बनवा कर जलदाय विभाग के सुपुर्द किया था। ग्राम पंचायत ने भी यहां पक्के खुर्रों का निर्माण करवाया है।
रास्ते के विवाद से शुरू हुआ मामला
याचिकाकर्ता आईटीबीपी से रिटायर्ड कमांडेंट पूर्णमल ने कहा- मकान के रास्ते को लेकर गांव के एक परिवार से विवाद था। उसने गांव के कुछ लोगों की शह पर रास्ते पर ही मकान बना लिया था। स्थानीय स्तर पर कई बार मामले को लेकर अधिकारियों से मिले और समस्या से अवगत करवाया।
लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई। हाईकोर्ट में याचिका लगाई। इस पर 2019 में हाई कोर्ट ने जिला कलेक्टर से जवाब मांगा था। तब भी प्रशासन उदासीन रहा। अब कंटेंप्ट लगाया गया और हाई कोर्ट ने ऑर्डर किया, तब प्रशासन सक्रिय हुआ है। गांव वालों से मेरा कोई विवाद नहीं है, बेमतलब की राजनीति बंद हो तभी मसला सुलझेगा। रास्ता खुलवाने के लिए हाई कोर्ट पहुंचे हैं, कार्रवाई हाई कोर्ट के दखल के बाद ही शुरू हुई है।
मामला हाईकोर्ट का, कुछ नहीं कह सकते
झेरली गांव की सरपंच अनूप देवी ने कहा- रास्ते के विवाद को लेकर हाईकोर्ट में केस चल रहा है। इसलिए पंचायत सरपंच के तौर पर कुछ कहना उचित नहीं है। हाई कोर्ट के ऑर्डर के बाद ही कार्रवाई हो रही है।