जयपुर : हर माता-पिता का सपना होता है कि अपनी बेटी को दुल्हन के रूप में विदाकर उसे सुखी वैवाहिक जीवन का आशीर्वाद दें। लेकिन कमजोर आर्थिक स्थिति वाले कुछ माता-पिता के लिए यह सपना पूरा कर पाना आसान नहीं होता। ऐसे अभिभावकों के इस सपने को पूरा करने के लिए मुख्यमंत्री कन्यादान योजना सबसे बड़ा सहारा बनकर सामने आई है।
इस योजना ने तीन पुत्रियों की मां श्रवणी देवी के सिर से बेटियों की शादी की चिंता का बोझ हल्का कर दिया है। जयपुर के गोविन्दगढ़ उपखण्ड के ग्राम इटावा भोपजी निवासी श्रवणी देवी का जीवन संघर्षों से भरा रहा है। पहले घर की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी, लेकिन इसी बीच साल 2013 में गंभीर बीमारी के चलते पति की मृत्यु ने मानो श्रवणी देवी को तोड़कर रख दिया। तमाम जिम्मेदारियों के बीच जीवनसाथी का इस तरह से अकेले छोड़ जाना, उनके लिए किसी वज्रपात से कम नहीं था।
तीन बेटियों-एक बेटे की जिम्मेदारी
श्रवणी देवी के स्वर्गीय पति उन पर 3 बेटियों और एक छोटे बेटे की जिम्मेदारी छोड़कर गए थे। घर चलाने से ज्यादा श्रवणी देवी को विवाह योग्य बेटियों की शादी की चिंता सता रही थी। बड़ी बेटी के स्नातक करने के बाद ही श्रवणी देवी ने उसके हाथ तो पीले कर दिये लेकिन इसके लिए कुछ उधार लेना पड़ा।
मुख्यमंत्री कन्यादान योजना लाई राहत
इस बीच मुख्यमंत्री कन्यादान योजना श्रवणी देवी के लिए राहत लेकर आई। शादी के 6 महीने के अन्दर ही श्रवणी देवी ने सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता के ब्लॉक कार्यालय में मुख्यमंत्री कन्यादान योजना के तहत आवेदन किया। इसके 3 दिन में ही श्रवणी देवी के बैंक अकाउंट में 41 हजार की सहायता राशि ऑनलाइन ही जमा करवा दी गई।
अब बेटियों की शादी चिंता नहीं
योजना की लाभार्थी श्रवणी देवी मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का आभार जताते हुए कहती है कि मुश्किल समय में राजस्थान सरकार की कन्यादान योजना उसके लिए बड़ी राहत बनकर आई। अब उसे 2 बेटियों के शादी की चिन्ता नहीं है। वे अपनी बेटियों को पढ़ा-लिखाकर काबिल बनाएंगी और सुयोग्य वर की तलाश कर उनका विवाह करके अपनी जिम्मेदारियां निभाएंगी।
बेटियां भार नहीं, खुशियों का आधार
श्रवणी देवी कहती हैं कि मुख्यमंत्री अशोक गहलोत जी ने हमारी सबसे बड़ी चिन्ता को खत्म करने का काम किया है। मुख्यमंत्री कन्यादान योजना, बेटी को बोझ मानने वाले समाज की धारणा को बदलने में मील का पत्थर साबित होगी। जब लोगों को अपने बेटी के कन्यादान की चिन्ता नहीं होगी और कर्जे के भय से मुक्ति मिलेगी तो वे बेटियों को भार नहीं बल्कि खुशियों का आधार मानेंगे। बेटियों को अच्छी शिक्षा, पोषण और बेटों के समान आगे बढ़ने के अवसर देंगे और बेटियां भी पढ़-लिखकर अपने सपने साकार कर सकेंगी।