भारतीय रेल : ब्रिटिशकाल में 149 वर्ष पूर्व आज ही के दिन राजस्थान (तत्कालीन राजपूताना) में पहली बार ट्रेन का प्रवेश हुआ था। 20 अप्रेल 1874 में आगरा से बांदीकुई के बीच प्रदेश में सबसे पहले ट्रेन दौड़ी थी। ब्रिटिशकालीन रेल नगरी बांदीकुई के सिर पर सूबे में पहली बार ट्रेन चलने का ताज बंधा था। शुरुआत में भांप के इंजन से ट्रेन चलाई गई थी। उसके बाद डीजल इंजन से संचालत हुआ और वर्तमान हाईटेक युग में अधिकांश रेलगाड़ियां इलेक्ट्रिक पावर से दौड़ती नजर आ रही हैं।
जानकारी के अनुसार 1860 के दशक में अंग्रेज पहली बार बांदीकुई पहुंचे तो उनको यह जगह बेहद पसंद आई। उसके बाद अंग्रेजों ने यहां के पानी के सैंपल इंग्लैंड भेजे। जहां से सैंपल पास होने के बाद में अंग्रेजों ने रेल नगरी के तौर पर विकसित करने का फैसला लिया। उन्होंने सुनियोजित तरीके से करीब चार सौ से ज्यादा बीघा भूमि पर रेलवे काॅलोनी और दफ्तर विकसित किए। 1874 में बांदीकुई तक रेल की शुरुआत की। इसके बाद रेलनगरी का इतना विकास हुआ कि यहां लोको शैड, दो बड़े खेल मैदान, चर्च, बैडमिंटन कोर्ट के साथ विभिन्न जगहों का भी विकास किया।
1860 के दशक से शुरू हुआ रेलनगरी का विकास राजस्थान में ही नहीं पूरे देश भर में खास पहचान बन चुका था। आजादी के बाद में भी रेल नगरी बांदीकुई का खूब विकास हुआ। इसके बाद करीब 1956 में मंडल अधीक्षक जो कि वर्तमान का मंडल रेल प्रबंधक कार्यालय बांदीकुई से जयपुर में शिफ्ट कर दिया गया। 1993 में लोको शैड को भी बांदीकुई से तोड़ दिया गया, तब से रेलनगरी का वैभव उजड़ता जा रहा हैं। ऐसे में रेल नगरी में बड़े संस्थानों की कमी होती जा रही हैं। रेलवे काॅलोनी भी जीर्णशीर्ण हो गई है। यहां पहले दर्जनों काॅलोनियों में हजारों की संख्या में क्वार्टर थे, लेकिन अब महज कुछ ही रेलवे क्वार्टर शेष बचे हैं।
वर्तमान समय में यहां आरपीएफ ट्रेनिंग सेंटर एक बड़ा संस्थान हैं। यहां इलेक्ट्रिक लोको शैडो, मेंटिनेंस डिपो, वाशिंग लाइन, पार्सल ऑफिस खोलने पर रेलनगर का वैभव लौट सकता है।
ब्रिटिश काल में बांदीकुई में था मेसोनिक लाॅज
रेलवे काॅलोनी में ब्रिटिश काल की एक संस्था थी, जिसके रहस्य के बारे में लोगों में सदैव जिज्ञासा बनी रहती आई है। आम जनता ने इसका नाम जादूगर रखा हुआ है। ब्रिटिशकाल में यहां गैर सदस्यों का प्रवेश यहां वर्जित था। इसलिए लोगों की यहां के लिए अलग अलग धारणा रही है। 27 अप्रेल 1892 को ब्रदर्स कैंप्टन सीडी वाइज द्वारा इसको स्थापित किया गया।
कोई भी सदस्य बाहरी व्यक्ति को मेसोनिक आस्था के विचार, भेद व गतिविधियां नहीं बतला सकता था। सदस्य विशेष प्रकार की डिवाइडर रिंग व गाऊन पहनते थे जो कि लाॅज में एक लाइन में खूंटियों पर टंगे रहते थे। लोगों के बताए अनुसार इस संस्था के सदस्य बंधुत्व व परोपकार के कार्य पर विचार विमर्श के साथ परंपरागत खेलों के साथ अन्य रोमांचक खेल भी खेलते थे। वहीं विभिन्न प्रकार के मुखोटे लगाकर करतब भी किए जाते थे। राजस्थान में एकमात्र बांदीकुई में रही यह संस्था धीरे-धीरे सदस्यों के अभाव में उपेक्षित होती चले गई। वर्तमान में यह लाॅज बंद है।