नागौर : शादी में मायरे के लिए प्रचलित राजस्थान का नागौर जिला एक बार फिर से चर्चा में है। यहां तीन किसान भाइयों ने अपनी भांजी की शादी में 3 करोड़ 21 लाख रुपए खर्च किए। ये जब थाली में कैश लेकर पहुंचे तो सभी देखते रह गए। इतना ही नहीं तीनों मामा ने मायरे में गिफ्ट के तौर पर गहने-कपड़ों से अनाज तक, ट्रैक्टर-टॉली, स्कूटी और अन्य सामान भी दिए।
मामला जिले के जायल क्षेत्र के झाड़ेली गांव का है। दरअसल, घेवरी देवी और भंवरलाल पोटलिया की बेटी अनुष्का की कल बुधवार को शादी थी। इस दौरान अनुष्का के नाना बुरड़ी गांव निवासी भंवरलाल गरवा अपने तीनों बेटे हरेंद्र, रामेश्वर और राजेंद्र के साथ करोड़ों रुपए का मायरा लेकर पहुंचे। पिता के इस सम्मान को देख एक बार के लिए घेवरी देवी और उनके परिवार के आंखों में आंसू आ गए। वहीं पिता का कहना था कि परिवार की इकलौती बेटी है और इसी की किस्मत से मेरे तीनों बेटों को इतना कुछ मिला है।
तीनों भाइयों ने बहन को चुनरी ओढ़ाई…
राजस्थान में जब किसी बेटियां बेटे की शादी हो उस दौरान जो मामा अपनी बहन को सहयोग देते हैं और उस सहयोग को मायरा कहते हैं, जिसमें बहन के लिए आभूषण और नगदी भी देते हैं, कपड़े भी देते हैं। नागौर के झाड़ेली गांव की रहने वाली घेवरी देवी की बेटी अनुष्का की शादी थी, उस समय गांव के और अपने रिश्तेदार आए हुए थे। उस दौरान गवरी देवी के भाइयों ने जमीन के कागज बेटी के परिवार को सौंपे तीनों भाइयों के बीच एकलौती बहन बहन के ससुराल वालों सभी को चांदी के सिक्के भेंट किए।
गवरी देवी के पिता भंवरलाल का कहना है कि उसके पास करीब 350 बीघा उपजाऊ जमीन है और उसके तीन बेटे हैं। हरेंद्र रामेश्वर और राजेंद्र और घेवरी की इकलौती की बेटी हैं, जो उसको ईश्वर ने एक बड़ा उपहार दिया है। बहन बेटी और बहू से बढ़कर इस संसार में कोई बड़ा धन नहीं है। यह नहीं कहते हैं, यह उनके पूर्वजों का भी पुराना इतिहास है। बहन बेटी के लिए मायरा दिल खोलकर भर देना चाहिए और अपनी बहन के लिए संकट के समय रक्षक की तरह खड़े होना चाहिए। इसी सोच के चलते उसके बेटो ने उसकी सहमति पर अपनी बहन की खुशी के लिए दिल खोलकर मायरा भर दिया।
नाना पहुंचे रुपयों की गाड़ियों से भरकर थाल…
गवरी देवी के पिता खुद अपने सिर पर रुपयों से भरकर रुपयों की थाली भरकर कर टेंट में पहुंचे इस दौरान थाली में 81 लाख रुपये नगदी और थाली के साथ अपनी बेटी के लिए 500 रुपये से सजी ओढ़नी भी लेकर आए साथ में। 16 बीघा खेती के लिए जमीन नागौर शहर में रिंग रोड के ऊपर 30 लाख की लागत का एक प्लॉट 41 तोला सोना और तीन किलो चांदी के गहने दिए। इसके अलावा और अनाज की बोरियों से भरी हुई एकदम नया ट्रैक्टर-ट्रॉली और अपनी दो ही टी के लिए स्कूटी वी गिफ्ट दी। इतना देखकर पूरे जिले भर में यह मायरा चर्चा का विषय बन गया।
नागौर का मायरा सदियों से प्रसिद्ध…
नागौर में जायल के जाटों का मायरा सदियों से प्रसिद्ध है। मारवाड़ में इस मायरे को कॉफी सम्मान की नजर से देखा जाता है। गूगल साम्राज्य के दौरान जायल के खियाला और जायल के जाटों ने मिलकर लिछमा गुजरी को अपनी धर्म की बहन मानकर भर गए थे। मायरा आज भी जब शादी होती है और उस समय मायरा आता है तो महिलाएं लोकगीत में भी गाती हैं।
कहा जाता है कि खियाला के जाट धर्माराम और गोपालराम दोनों मुगल साम्राज्य में बादशाह के लिए टैक्स कलेक्शन का काम करते थे और टैक्स कलेक्शन कर टैक्स को जमा करवाने के लिए वह दिल्ली दरबार जा रहे थे। जब दोनों भाई दिल्ली टैक्स कलेक्शन दिल्ली दरबार में जमा करवाने जा रहे थे। इसी दौरान बीच रास्ते में शादी के दिन लिछमा गुजरी नामक एक महिला बिलखती हुई रोती हुई नजर आई। जब उन्होंने कारण पूछा तो लिछमा गुजरी ने बताया कि उसके घर पर शादी है, बेटों की और उसके कोई भाई नहीं हैं, जिसके कारण उसके बच्चों की शादी में अब मायरा कौन लेकर आएगा । तब उन्होंने धर्माराम और गोपाल रामजाट ने ढांढस बांधते हुए कहा कि वह तुम्हारे भाई हैं और तुम चलो घर हम करेंगे मायरा। उस दौरान दोनों जाटों ने अपनी बहन लिछमा गुजरी के लिए टैक्स कलेक्शन के सारे रुपए से़ मायरा भर दिया। दूसरी तरफ बादशाह नाराज हो गए, वह समय पर नहीं पहुंचे थे। जब वह पहुंचे तब सारी बात बादशाह के सामने रखी तो उन्होंने सजा देने के बजाय उनको माफ कर दिया।
क्या होता है मायरा
बहन के बच्चों की शादी होने पर ननिहाल पक्ष की ओर से मायरा भरा जाता है। इसे सामान्य तौर पर भात भी कहते हैं। इस रस्म में ननिहाल पक्ष की ओर बहन के बच्चों के लिए कपड़े, गहने, रुपए और अन्य सामान दिया जाता है। इसमें बहन के ससुराल पक्ष के लोगों के लिए भी कपड़े और जेवरात आदि होते हैं।
ये है मान्यता : मायरे की शुरुआत 600 साल पूर्व नरसी भगत ने शुरू की थी। नरसी भगत का जन्म गुजरात के जूनागढ़ में 600 साल पहले हुआ था, उस समय हुमायूं का शासन काल था। नरसी भगत जो कि जन्म से ही गूंगे और बहरे थे। वह अपनी दादी के पास ही रहते थे, उनके एक भाई भाभी भी थे। भाभी का स्वभाव कड़क था, लेकिन नरसी भगत जो कि एक संत प्रवृत्ति के व्यक्ति थे। इसी प्रवृत्ति के चलते उनको आवाज और उनका वीरप्पन ठीक हो गया। नरसी जी के मां बाप एक महामारी के शिकार हो गए, नरसी भगत की शादी हुई थी और पत्नी भी भगवान के प्यारी हो गई। नरसी जी की दूसरी शादी भी करवाई, कुछ दिन बीतने पर नरसी जी के घर पर एक लड़की का जन्म हुआ और उसका नाम नानीबाई रखा नरसी बाई नरसी भगत ने अपनी बेटी की शादी अंजार नगर में करवा दी। दूसरी तरफ नरसी जी की भाभी ने उनको घर से निकाल दिया, नरसी भगवान श्री कृष्ण के अटूट भगत हैं।
वह उन्हीं की भक्ति में लीन हो गए, भगवान शंकर की कृपा से उन्होंने ठाकुर जी के भी दर्शन कर लिए। उसके बाद तो नरसी जी ने सांसारिक मोहेबी त्याग दिया और संत बन गए उधर नरसी भाई ने पुत्री को जन्म दिया और पुत्री विवाह लाइक हो गई। किंतु नरसी को कोई खबर नहीं थी, लड़की के विवाह पर ननिहाल की तरफ से भात भरने की रसम के चलते नरसी जी को नरसी के पास देने के कुछ नहीं थे, नरसी जी के पास खुद की टूटी-फूटी बैलगाड़ी और बूढ़े 220 हैं। नरसी जी ने अपने कुटुम के भाई लोगों से मदद मांगी, लेकिन उन्होंने भी इंकार कर दिया। अपनी टूटी-फूटी और बूढ़े लोगों को लेकर नरसी भगत अपनी बेटी के घर अंजार पहुंच गए, भक्ति के कारण भगवान श्री कृष्ण ने 56 करोड़ का मायरा भरा था।
इधर, भगवान श्रीकृष्ण की तरह भात भरने पहुंचा पूरा गांव
भात लेकर मीरा के दरवाजे पहुंचे नेठराना के लोग।
हरियाणा के फतेहाबाद के गांव जांडवाला बागड़ में हुई दो बेटियों की शादी ने समाज को झकझोर दिया। यहां भात देने के लिए राजस्थान के गांव नेठराना से इतने लोग उमड़े कि टीका लगाने की रस्म पूरी करने में ही घंटों लग गए।
बेटियों की मां मीरा का न तो भाई जीवित था और न ही माता-पिता। भात न्योतने गई मीरा ने भाई की समाधि पर टीका किया तो पूरा गांव ही भात भरने पहुंच गया। बड़ी संख्या में महिलाएं भी पहुंचीं। (यहां पढ़ें पूरी खबर)