राजीव गांधी की हत्या की दोषी नलिनी श्रीहरन और चार अन्य दोषियों को शनिवार शाम को तमिलनाडु की जेलों से रिहा कर दिया गया। वेल्लोर में महिलाओं की विशेष जेल से रिहा होने के तुरंत बाद नलिनी वेल्लोर केंद्रीय जेल गई, जहां से पति वी श्रीहरन उर्फ मुरुगन को रिहा किया गया। मुरुगन के अलावा मामले में अन्य दोषी संथन को रिहाई के बाद पुलिस वाहन में राज्य के तिरुचिरापल्ली स्थित विशेष शरणार्थी शिविर ले जाया गया। दोनों श्रीलंकाई नागरिक हैं। इसके साथ ही रॉबर्ट पायस और जयकुमार को पुझाल जेल से रिहाई के बाद विशेष शरणार्थी शिविर ले जाया गया।
नलिनी के अलावा उसके पति वी. श्रीहरन उर्फ मुरुगन, आरपी रविचंद्रन, संथन, रॉबर्ट पायस और जयकुमार को रिहा किया जाना था। श्रीहरन, संतन, रॉबर्ट और जयकुमार श्रीलंकाई नागरिक हैं। नलिनी और रविचंद्रन तमिलनाडु से ताल्लुक रखते हैं।
नलिनी ने कही यह बात
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- नलिनी श्रीहरन ने कहा कि मैं तमिलनाडु के लोगों की शुक्रगुजार हूं, जिन्होंने 32 साल तक मेरा साथ दिया। मैं राज्य और केंद्र सरकार दोनों को धन्यवाद देती हूं। बाकी के बारे में मैं कल चेन्नई में प्रेस मीट के दौरान बोलूंगी। कल सुप्रीम कोर्ट के वकील भी अपनी बात रखेंगे।
- इस बीच नलिनी श्रीहरन के भाई बकियानाथन ने वेल्लोर में कहा कि नलिनी और हमारा परिवार आज बहुत खुश हैं। वह अपने परिवार के साथ एक सामान्य जीवन जीने जा रही है। हम सीएम एमके स्टालिन के साथ एक मीटिंग के लिए समय पाने की कोशिश करेंगे।
गौरतलब है कि रिहा किए जाने से एक दिन पहले यानी शुक्रवार को ही सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में जेल की सजा काट रहे छह आरोपियों को 31 साल तक जेल में रहने के बाद रिहा करने का आदेश दिया गया था। इससे पहले इसी साल मई में सुप्रीम कोर्ट ने एक अन्य दोषी एजी पेरारिवलन को आर्टिकल 142 का हवाला देते हुए रिहा किया था।
शुक्रवार को फैसला सुनाते हुए न्यायमूर्ति बी आर गवई और न्यायमूर्ति बी वी नागरत्ना की पीठ ने कहा था कि जिस नियम के तहत एजी पेरारिवलन को रिहाई दी गई थी, वो इस मामले में दोषी पाए गए अन्य पर भी लागू होती है। ये सभी आरोपी करीब 31 साल से जेल में बंद थे। बता दें कि राजीव गांधी की हत्या 21 मई 1991 को तमिलनाडु के श्रीपेरंबुदूर में आत्मघाती बम धमाके में हुई थी। आइये अब जानते हैं कि इस मामले में अब तक क्या क्या हुआ?
ऐसे हुई थी पूर्व पीएम की हत्या
21 मई 1991 को तमिलनाडु के श्रीपेरंबदूर में चुनावी रैली के दौरान एक महिला आत्मघाती हमलावर ने खुद को विस्फोट से उड़ा लिया था। इसमें पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी मारे गए थे। महिला की पहचान धनु के तौर पर हुई थी। पुलिस ने इस मामले में कई लोगों को आरोपी बनाया था, जिनमें पेरारिवलन, मुरुगन, संथन, रविचंद्रन, रॉबर्ट पायस, जयकुमार और नलिनी श्रीहरन शामिल थे।
1998 में टाडा अदालत ने पेरारिवलन, मुरुगन, संथन और नलिनी को मौत की सजा सुनाई थी। राहत नहीं मिलने के बाद पेरारिवलन और अन्य दोषियों ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया। साल 1999 में सुप्रीम कोर्ट ने सजा को बरकरार रखा। 2014 में इसे आजीवन कारावास में बदल दिया गया।
2008 में जब जयललिता तमिलनाडु की मुख्यमंत्री थीं, तो उन्होंने कैबिनेट से सातों दोषियों की रिहाई के लिए प्रस्ताव पास किया। जिसे राज्यपाल को भेजा गया था। राज्यपाल ने उसे राष्ट्रपति के पास भेजा। तब से ये मामला लंबित था। 2018 में फिर से तमिलनाडु सरकार ने दोषियों की रिहाई के लिए प्रस्ताव पास करके राज्यपाल के पास भेजा था।
इस बीच दोषी पेरारिवलन ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। इसी साल मई में पेरारिवलन की याचिका पर सुनवाई करते हुए अनुच्छेद 142 का हवाला देते हुए रिहा कर दिया। इसके बाद अन्य छह दोषियों ने भी कोर्ट का दरवाजा खटखटा दिया। जिसपर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने शुक्रवार को पेरारिवलन के मामले में दिए गए फैसले को अन्य सभी दोषियों पर लागू करने का आदेश दिया।
कोर्ट ने अपने फैसले में क्या कहा?
पेरारिवलन के मामले में न्यायमूर्ति एल. नागेश्वर राव की अध्यक्षता वाली पीठ ने अनुच्छेद-142 के तहत अपने विशेषाधिकार का इस्तेमाल किया था। पेरारिवलन को रिहा करने का आदेश देते हुए कोर्ट ने कहा था, ‘राज्य मंत्रिमंडल ने प्रासंगिक विचार-विमर्श के आधार पर रिहाई का फैसला किया था। अनुच्छेद-142 का इस्तेमाल करते हुए, दोषी को रिहा किया जाना उचित होगा।’
इसके पहले 10 मई को सुनवाई करते हुए भी कोर्ट ने राज्यपाल की ओर से दया याचिका का निस्तारण न करने पर टिप्पणी की थी। कहा था, ‘प्रथम दृष्टया राज्यपाल का यह फैसला गलत और संविधान के खिलाफ है क्योंकि वह राज्य मंत्रिमंडल की सिफारिश से बंधे हैं। उनका फैसला संविधान के संघीय ढांचे पर प्रहार करता है।’