झालावाड़ में 2018 में 7 साल की बच्ची की दुष्कर्म और हत्या के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने राजस्थान हाई कोर्ट के उस आदेश पर रोक लगा दी है, जिसमें हाई कोर्ट ने अभियुक्त को निर्दोष मानते हुए केस रिओपन को कहा था। साथ ही फांसी की सजा को उम्रकैद में बदल दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट को नसीहत देते हुए कहा कि हाईकोर्ट को हमारे आदेशों पर टिप्पणी करने का अधिकार नहीं है।
हाईकोर्ट के आदेश के पैरा 42 का उल्लेख करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इसमें उच्च न्यायालय की ओर से किया गया परीक्षण स्पष्ट तौर पर अनुचित है। ऐसा लगता है कि यह पूरी ज्यूडिशियल प्रायोरिटी के ही खिलाफ है। सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस एमआर शाह व एमएन सुन्द्रेश की खंडपीठ ने यह आदेश राजस्थान सरकार की एसएलपी पर सुनवाई करते हुए दिया। कोर्ट ने मामले में अभियुक्त कोमल लोधा से भी 9 दिसंबर तक जवाब देने के लिए कहा है।
सजा के बिंदु तय करने के लिए कहा था, हाई कोर्ट ने केस रिओपन कर जांच करने वालों पर कार्रवाई के आदेश दिए
झालावाड़ के कामखेड़ा थाना इलाके में 28 जुलाई 2018 को 7 साल की बच्ची की दुष्कर्म के बाद हत्या कर दी गई। पुलिस ने आरोपी कोमल लोधा को गिरफ्तार कर घटना के 9 दिन में ही चालान पेश कर दिया। पॉक्सो कोर्ट ने 2019 में काेमल को फांसी की सजा सुना दी। मामला हाई कोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा।
ऐसे में शीर्ष कोर्ट ने सजा के बिन्दु पर मामले को राजस्थान हाई कोर्ट के पास रिमांड किया। हाई कोर्ट ने 11 मई 2022 को अभियुक्त को निर्दोष तो माना लेकिन तकनीकी कारणों से उसे उम्रकैद की सजा सुनाई। यही नहीं, केस रिओपन करने, फिर से जांच करने और गलत जांच करने वालों के खिलाफ कार्रवाई करने का भी आदेश दिया था।
नए तथ्य और पुलिस जांच में खामी मिली तो दिए थे आदेश
सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के पास सिर्फ सजा के बिंदु पर केस रिमांड किया था। जब नए तथ्य आए और पुलिस जांच में खामी मिली तो सीमा के परे जाते हुए हाई काेर्ट ने निर्दोष होने, फिर जांच करने और जांच करने वालों पर कार्रवाई के आदेश दिए। इसी के खिलाफ सरकार ने अपील की थी।