सीकर : 13 वर्षीय बालिका से बलात्कार के मामले में न्यायालय ने आरोपी को 20 वर्ष के कठोर कारावास की सजा सुनाई है। विशिष्ट न्यायाधीश पोक्सो क्रम. दो अशोक चौधरी ने इस मामले में पुलिस के जांच अधिकारी की ओर से बरती गई लापरवाही पर टिप्पणी करते हुए कहा है कि पुलिस का ज्ञान और कार्यप्रणाली इस मामले में भले ही लापरवाह रही हो, लेकिन इससे पीडि़ता की कहानी को झुठलाया नहीं जा सकता। उन्होंने कहा है कि अनुसंधान में बरती गई लापरवाही के लिए पुलिस के अधिकारियों को कठोर दंड से दंडित किया जाना न्यायसंगत है। इसके लिए पुलिस महानिदेशक, अतिरिक्त मुख्य सचिव गृह को पत्र जारी करने के निर्देश दिए गए हैं। न्यायालय ने विशिष्ट लोक अभियोजक को भी लापरवाही पर जिम्मेदारी याद दिलाई है। फैसले में कहा है कि विशेष लोक अभियोजक ने भी इस संबंध में कोई प्रयास नहीं किए हैं, जबकि राजस्थान उच्च न्यायालय, जोधपुर की ओर से जारी परिपत्र में स्पष्ट निर्देश है। पीपी की ओर से चिकित्सकीय साक्षी दस्तावेजों के संदर्भ में सुस्पष्ट साक्ष्य करवाए जाने की अपनी जिम्मेदारी का सम्यक निर्वहन किए जाने पर विधि सचिव राजस्थान सरकार को पत्र जारी करने के लिए कहा है।
चरखी दादरी में छह दिन किया था बलात्कार
पुलिस ने नहीं बनाया नक्शा-मौका
इस मामले की जांच नीमकाथाना कोतवाली के थानाधिकारी रणजीत सिंह सहित तीन पुलिस के अधिकारियों के पास रही, लेकिन किसी भी जांच अधिकारी ने नक्शा-मौका तक नहीं बनाया। पुलिस ने जांच के बाद मामले का न्यायायल में चालान पेश कर दिया। वहां पर अभियोजन पक्ष की ओर से 14 गवाहों के बयान करवाए गए। इसके अलावा 23 दस्तावेजी साक्ष्य पेश किए गए। इस मामले में न्यायालय ने आरोपी रोहिताश बलाई को 20 वर्ष के कठोर कारावास और 35 हजार रुपए जुर्माना की सजा सुनाई है। इनमें से 30 हजार रुपए अपील की मियाद के बाद पीडि़ता को दिए जाएंगे। साथ ही पीडि़त प्रतिकर स्कीम के तहत पीडि़ता को प्रतिकर राशि दिलवाए जाने की अनुशंषा की है। इसके लिए फैसले की एक प्रति जिला विधिक सेवा प्राधीकरण को भेजी गई है। मामले में राज्य सरकार की ओर से विशिष्ट लोक अभियोजक किशोर कुमार सैनी ने पैरवी की।
न्यायायल ने यह भी कहा…पीडि़ता का विश्वास से ओतप्रोत साक्ष्य हो सकता है सजा का आधार
न्यायालय ने इस फैसले में उच्चतम न्यायालय के न्यायिक दृष्टांत का हवाला देते हुए कहा है कि केवल पीडि़ता की परिसाक्ष्य के आधार पर दोषसिद्धि हो सकती है, यदि उसकी साक्ष्य विश्वास से ओतप्रोत एवं विश्वसनीय पाया जाए। इसके लिए किसी भी अनुसमर्थन की आवश्यकता नहीं होती। पीडि़ता से दुष्कर्म संबंधी परीक्षण तथा उसके वेजाईनल स्वाब और सैम्पल लिए जाकर पुलिस को दिए जाने के संबंध में साक्ष्य दी है। मेडिकल रिपोर्ट के संबंध में भी कई कथन न्यायालय के समक्ष हुए बयानों में नहीं है। अनुसंधान अधिकारी थानाधिकारी रणजीत सिंह ने व्यपहरण और बलात्कार होने के स्थान की तस्दीक पीडि़ता और आरोपी से नहीं की है। थानाधिकारी ने स्वयं यह माना है कि नक्शा मौका नहीं बनाया गया। जिससे प्रतीत होता है कि थानाधिकारी के पद पर रहते हुए उन्होंने अनुसंधान में कमी रखे जाने की लापरवाही बरती है। लेकिन डीएनए मैचिंग होना पाया गया है, जो बलात्कार की पुष्टि के लिए पर्याप्त है।