Sadqa-e-Fitr (सदका-ए-फित्र) किसे कहते हैं और कितना Fitra देना चाहिए ?

हज़रत अनस बिन मालिक रदियल्लाहो अन्हो ने बयान किया रसूलल्लाह स्वलल्लाहो अलैहे वसल्लम ने इरशाद फरमाया-अल्लाह तबारको तआला ने ज़मीन की तखलीक फरमाई तो वो हिलने लगी फिर पहाड़ पैदा करके उस पर रख दिया तो वोह ठहर गई। पहाड़ की सख्ती देखकर फरिश्तों को बड़ा तअज्जुब हुआ। वोह अर्ज़ गुज़ार हुए कि ऐ रब तेरी कोई ऐसी मखलूक भी है जो पहाड़ से ज्यादा सख्त हो ? फरमाया हां, लोहा है। अर्ज़ किया ऐ रब लोहा से भी ज्यादा सख्त कोई चीज़ है? फरमाया हां, आग है। अर्ज़ किया ऐ रब आग से भी सख्त कोई चीज़ है? फरमाया हां, पानी है। अर्ज किया ऐ रब पानी से भी सख्त कोई चीज़ है? फरमाया हां हवा है। अर्ज़ किया ऐ रब हवा से भी ज्यादा सख्त और कोई चीज़ है? फरमाया हां, इब्ने आदम है जो दाएं हाथ से सदका करता है और उसे बाएं हाथ से छुपाता है। (तिर्मिज़ी)

  • हज़रत अबू हुरैरा रदियल्लाहो अन्हो ने बयान किया। रसूलल्लाह स्वलल्लाहो अलैहे वसल्लम ने इरशाद फरमाया-सख़ावत जन्नत का एक दरख्त है सख़ी आदमी ने उसकी टहनी पकड़ रखी है वोह टहनी उसे छोड़ेगी नहीं। ता वक्त के उसे जन्नत में दाखिल न कर ले और बुखल जहन्नम का एक दरख्त है बखील आदमी ने उसकी शाख पकड़ रखी है वोह टहनी उसे जहन्नम में दाखिल किए बगैर न छोड़ेगी। (शुएबुल ईमान लिल बहक़ी)
  • हज़रत अबू हुरैरा रदियल्लाहो तआला अन्हो ने बयान किया रसूलल्लाह स्वलल्लाहो अलैहे वसल्लम ने इरशाद फरमाया-बन्दा कहता है मेरा माल है, मेरा माल है, जबकि उसे उसके माल से तीन ही किस्म का फाइदा है वोह माल जिसे खाकर खत्म कर दिया या जिसे पहनकर पुराना कर दिया दूसरे को अता करके ज़खीरए आखिरत बनाया इसके सिवा तो वोह सब कुछ दूसरे वारिसों के लिए छोड़ जाएगा। (मुस्लिम)
  • सदका करने से माल घटता नहीं बल्कि बढ़ता है और इज्ज़त भी बढ़ती है।
  • सदका करके एहसान जताने से सवाब नहीं मिलता। किसी को बुरे काम से रोकना भी सदका है।
  • अपने दीनी भाई से मुस्कारा कर बात करना भी सदक़ा है।
  • तकलीफ देने वाली चीज़ को रास्ते से हटा देना भी सदका है।
  • हज़रत अबू हुरैरा रदियल्लाहो तआला अन्हो ने बयान किया रसूलल्लाह स्वलल्लाहो अलैहे वसल्लम ने इरशाद फरमाया- अगर मेरे पास कोहे ओहद के बराबर सोना होता तो भी मैं यही पसन्द करता कि तीन रातों से ज़्यादा उसमें से कुछ न रह जाए हां अगर मुझ पर कर्ज हो तो उसके लिए कुछ रख लूंगा। (बुखारी शरीफ)
  • हज़रत असमा रदियल्लाहो अन्हा ने बयान किया रसूलल्लाह स्वलल्लाहो अलैहे वसल्लम ने मुझसे इरशाद फरमाया-खर्च करो और शुमार न करो वरना अल्लाह शुमार कर देगा और बन्द न करो कि अल्लाह भी तुझ पर बन्द कर देगा जो तुम्हें इस्तेताअत हो वोह करो। (बुखारी व मुस्लिम)
  • हज़रत अबू हुरैरा रदियल्लाहो अन्हो ने बयान किया रसूलल्लाह स्वलल्लाहो अलैहे वसल्लम ने इरशाद फरमाया-ऐ इब्ने आदम ख़र्च कर मैं तुझ पर खर्च करूंगा । (बुखारी मुस्लिम)
  • अबू अमामा रदियल्लाहो अन्हो ने बयान किया रसूलल्लाह स्वलल्लाहो अलैहे वसल्लम ने इरशाद फरमाया-ऐ इब्ने आदम बचे हुए माल का खर्च करना तेरे लिए बेहतर है। और इसका रोकना तेरे लिए बुरा है ब कद्रे ज़रूरत रोकने पर कोई मलामत नहीं और देना उनसे शुरू करो जो तुम्हारी किफालत में हो। (मुस्लिम व तिर्मिज़ी)

सदका-ए-फ़ित्र का बयान

फित्र का मतलब रोज़ा खोलने या रोज़ा न रखने से हैं। खुदा तआला ने अपने बन्दों पर एक सदका मुकर्रर फ़रमाया है जिसे  रमज़ान शरीफ के ख़त्म होने पर रोज़ा खुल जाने कीं ख़ुशी और शुक्रिया के तौर पर अदा करना होता है । ये सदक़ा, सदका-ए-फित्र कहलाता हैं इसे आम ज़बान में Fitra (फ़ितरा) भी कहते है। इसी रोज़ा खुलने की खुशी मनाने का दिन होने की वजह से रमज़ान शरीफ के बाद वाली ईद को ईदुल-फित्र कहते हैं।

फ़ितरा किस आदमी पर वाजिब होता है?

हर आजाद मुसलमान पर जबकि वह निसाब (न्यूनतम राशि है जो ज़कात देने के लिए बाध्य होने से पहले एक मुसलमान के पास होनी चाहिए) के बराबर माल का मालिक हो, फ़ितरा वाजिब है।

फ़ितरा वाजिब होने के लिये जो निसाब शर्त है वह वही ज़कात का निसाब है जो बयान हो चुका या कुछ फर्क है?

जकात के निसाब और सदका-फित्र के निसाब की मिकदार तो एक ही है जैसे चौवन ( 54 ) तोला दो (2) माशा चांदी या उसकी कीमत, लेकिन जकात के निसाब और सदका-फित्र के निसाब में यह फर्क है कि जकात फ़र्ज होने के लिए जो चांदी या सोना या तिजारत का माल होना जरूरी है और सदका-फित्र वाजिब होने के लिये इन तीनों चीजों की ख़ुसूसियत नहीं, बल्कि उसके निसाब में हर किस्म का माल हिसाब में ले लिया जाता है। हाँ-असली जरूरत से ज़्यादा और कर्ज से बचा हुआ होना दोनों निसाबों-में शर्त है।

अगर किसी आदमी के पास उसके इस्तेमाल के कपड़ों से ज़्यादा कपड़े रखे हुए हों या रोज़ाना की जरूरत से ज़्यादा तांबे, पीतल, चीनी वगैरह, के बर्तन रखे हों या कोई मकान उसका खाली पड़ा है और किसी किस्म का सामान और असबाब है और उसकी असली जुरूरत से ज़्यादा है और उन चीजों की कीमत निसाब के बराबर या ज़्यादा है तो उस पर ज़कात फर्ज नहीं, लेकिन सदका-फित्र वाजिब है।

सदका-फित्र के निसाब पर साल गुजरना भी शर्त नहीं,बल्कि उसी दिन निसाब का मालिक हुआ हो तो भी स दका-फित्र अदा करना वाजिब है।

जिन लोगों को जकात देना जाइज है उन्हें सदका-ए-फित्र भी देना जाइज है और जिन लोगों को जकात देना नाजाइज है उन्हें सदका-ए-फिल्र देना भी नाजाइज है।

सदका-ए-फित्र किस-किस की तरफ से देना वाजिब है?

हर निसाब के मालिक पर अपनी तरफ़ से और अपनी नाबालिग औलाद की तरफ़ से सदका-फित्र देना वाजिब है। लेकिन नाबालिगों का अगर अपना माल हो तो उनके माल में से अदा करो।

मशहूर है कि जिसने रोज़े नहीं रखे उस पर सदका-ए-फित्र वाजिब नहीं, यह सही है या गलत ? गलत है, बल्कि हर निसाब के मालिक पर वाजिब है। चाहे रोजे रखे हों या ना रखे हों।

फितरे में क्या-क्या चीज और कितना देना वाजिब है?

फितरे में हर किस्म का अनाज और कीमत देना जाइज़ है।

इसकी तफ्सील यह है कि अगर गेहूँ या उसका आटा या सत्तू दे तो एक आदमी को पौने दो सेर देना चाहिये। (सेर से मुराद अंग्रेज़ी रूपये से अस्सी ( 80 ) रूपये का वजन है।

जौ या उसका आटा या सत्तू दें तो साढ़े तीन सेर देना चाहिये और अगर जौ और गेहूँ के अलावा और कोई अनाज जैसे चावल, बाजरा, ज्वार वगैरह दें तो पौने दो सेर गेहूँ की कीमत या साढ़े तीन सेर जौ की कीमत में जितना वह अनाज आता हो उतना देना चाहिये ।

फितरे में कीमत दें तो पौने दो सेर गेहूँ या साढ़े तीन सेर जौ की कीमत देनी चाहिये।

सदका-ए-फित्र अदा करने का ज्यादा अच्छा वक्त क्या है?

ईद के दिन ईद की नमाज को जाने से पहले अदा करना ज़्यादा अच्छा है। और नमाज के बाद करे तो यह भी जाइज है और जब तक अदा न करे उसके जिम्मे अदा करना वाजिब रहेगा। चाहे कितनी ही मुद्दत गुजर जाये।

जिन लोगों पर सदका-ए-फिल्र वाजिब है वे जकात या फ़ितरा ले सकते हैं या नहीं?

नहीं ले सकते और कोई फ़र्ज़ या वाजिब सदका ऐसे लोगों को लेना जाइज नहीं जिनके पास सदका-ए-फित्र का निसाब मौजूद हो।

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