चित्तौड़गढ़ : उपराष्ट्रपति बोले- मैं होशियार था, लेकिन अंग्रेजी नहीं आती थी:86 साल के अपने टीचर के घर पहुंचे धनखड़, चरण स्पर्श कर आशीर्वाद लिया

चित्तौड़गढ़ : उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ मंगलवार सुबह चित्तौड़गढ़ में सैनिक स्कूल पहुंचे। इस स्कूल में उन्होंने पढ़ाई की थी। स्कूल पहुंचने पर उन्होंने अपना हॉस्टल और कमरा देखा। वे अपने टीचर से मिलने उनके घर भी पहुंचे और चरण स्पर्श कर उनका आशीर्वाद लिया। इस दौरान स्कूल के दिनों की यादें ताजा की।

इसके बाद स्कूल के स्टूडेंट्स से अपना एक्सपीरियंस शेयर करते हुए कहा- मैं पढ़ने में होशियार था, लेकिन मुझे अंग्रेजी नहीं आती थी। इस बारे में टीचर्स को बता दिया था। सैनिक स्कूल में ही मेरा पुनर्जन्म हुआ है।

सैनिक स्कूल में स्टूडेंट्स और अन्य गेस्ट के साथ एक्सपीरियंस शेयर करते हुए उपराष्ट्रपति।
सैनिक स्कूल में स्टूडेंट्स और अन्य गेस्ट के साथ एक्सपीरियंस शेयर करते हुए उपराष्ट्रपति।

उपराष्ट्रपति को दिया गार्ड ऑफ ऑनर
सैनिक स्कूल की ओर से उपराष्ट्रपति को चित्तौड़गढ़ आने का इन्विटेशन दिया गया था। उपराष्ट्रपति मंगलवार सुबह 9.30 बजे डबोक एयरपोर्ट (उदयपुर) से विशेष हेलिकॉप्टर से चित्तौड़ के लिए रवाना हुए थे। 10.25 बजे चित्तौड़ में सैनिक स्कूल में बने हेलीपैड पर उतरे। स्कूल प्राचार्य कर्नल सौम्यब्रत धर और उप प्राचार्य लेफ्टिनेंट कर्नल पारुल श्रीवास्तव ने उनका स्वागत किया। उन्हें गार्ड ऑफ ऑनर दिया गया।

उपराष्ट्रपति ने स्कूल कैंपस में पौधारोपण किया। इसके बाद सैनिक स्कूल से डेढ़ किमी दूर शास्त्री नगर में रहने वाले अपने स्कूल टीचर और हाउस मास्टर रहे 86 साल के एचएस राठी के घर पहुंचे। उपराष्ट्रपति ने अपने सर के चरण स्पर्श किए। राठी ने उन्हें आशीर्वाद देते हुए गले से लगा लिया। राठी की पत्नी ने भी धनखड़ को आशीर्वाद दिया।

  सैनिक स्कूल में उपराष्ट्रपति धनखड़ को गार्ड ऑफ ऑनर दिया गया।

दोस्तों के साथ ठेले पर नाश्ता करने के पलों को किया याद
उपराष्ट्रपति करीब 20 मिनट अपने सर के घर रुके। इस दौरान उन्होंने स्कूल के दिनों की शरारतों और अन्य पलों को याद किया। उन्होंने अपने टीचर के साथ शेयर किया कि कैसे स्कूल के बच्चे बंक करके फिल्म देखने जाते थे। इस पर सभी हंसने लगे। इसके अलावा दोस्तों के साथ ठेले पर नाश्ता करने के पलों को याद किया। एचएस राठी के बेटे बीएसएफ डिप्टी कमांडेंट दीपक राठी दिल्ली से ही उपराष्ट्रपति के साथ आए। दीपक की पत्नी पूनम राठी और उनके दोनों बेटे भी साथ में रहे।

धनखड़ बोले- मुझे अंग्रेजी नहीं आती थी
उपराष्ट्रपति अपने टीचर से मिलने के बाद वापस सैनिक स्कूल पहुंचे। स्कूल जाकर उन्होंने अपने हॉस्टल में कमरे और बेड को देखा। स्टूडेंट्स से कहा कि स्कूल में आते ही मैंने हिम्मत कर अपने टीचर्स को बता दिया था कि मैं होशियार लड़का हूं, लेकिन मुझे अंग्रेजी नहीं आती। यहीं से मेरी लाइफ में बदलाव शुरू हुआ। मुझे इनसाइक्लोपीडिया ब्रिटानिका की जानकारी सिर्फ 2 साल में हो गई। पिकासो कौन था, यह भी मैं जान चुका था। यहां मुझे सभी ने अच्छी शिक्षा दी है।

उपराष्ट्रपति ने कहा कि मेरा वास्तविक जन्म या पुनर्जन्म सैनिक स्कूल, चित्तौड़गढ़ में ही हुआ था। मैं आज जो कुछ भी हूं, उसका श्रेय सैनिक स्कूल और अपने शिक्षकों को जाता है। इस माटी को मैं सलाम करता हूं।

अपने टीचर एचएस राठी और उनकी पत्नी के साथ मुलाकात के दौरान उपराष्ट्रपति धनखड़।

सैनिक स्कूल में टीचर बहुत सख्त थे
उपराष्ट्रपति धनखड़ ने कहा- मुझे गर्व है कि मैं सैनिक स्कूल चित्तौड़गढ़ का छात्र रहा हूं। यह स्कूल भारत के श्रेष्ठ शिक्षा संस्थानों में से एक है। आज हम सभी अपने दो अत्यंत प्रतिष्ठित शिक्षकों राठी और द्विवेदी को यहां पाकर सम्मानित महसूस कर रहे हैं। उपराष्ट्रपति ने कहा कि मेरा विश्वास करो, वे बहुत सख्त थे।

सैनिक स्कूल में लड़कियों का एडमिशन सकारात्मक बदलाव
उपराष्ट्रपति ने कहा कि जब पश्चिम बंगाल के राज्यपाल के रूप में मैं सैनिक स्कूल, पुरुलिया गया। वहां मुझे पता चला कि सैनिक स्कूलों ने लड़कियों के लिए दरवाजे खोल दिए हैं। यह एक बड़ा और सकारात्मक बदलाव है।

हॉस्टल सांगा हाउस में अपने बेड पर बैठे हुए उपराष्ट्रपति।

हर महीने 250 रुपए मिलती थी स्कॉलरशिप
उपराष्ट्रपति ने कहा कि हम तीन भाई हैं। भाइयों को लगा कि मैं तो पढ़ाई में अच्छा हूं, किसी भी स्कूल में पढ़ लूंगा। मैं नाराजगी व्यक्त करना चाहता था, लेकिन नहीं कर पाया। उसी समय नजर पड़ी कि सैनिक स्कूल में एंट्रेंस एग्जाम होने वाला है। मैंने एंट्रेंस एग्जाम में 100 परसेंट स्कॉलरशिप हासिल की। हर महीने हमें स्कॉलरशिप के 250 रुपए मिलते थे। गांव वालों ने कहा- पूरा खर्च क्यों करता है, आधा घर क्यों नहीं भेजता। यह अमाउंट उस समय बहुत बड़ा था।

मेरे बड़े भाई कुलदीप भी सैनिक स्कूल में थे। हम दोनों भाइयों में इतना प्यार था कि बड़े भाई 6th क्लास में थे और मैं पांचवीं क्लास में पढ़ता था, लेकिन वह अपनी ही क्लास में रुक गए। उन्होंने सोचा कि छोटे भाई को भी साथ आना चाहिए। मेरे स्कूल से बड़े भाई कुलदीप के लिए एक चिट्ठी घर पर जाती है कि उन्हें पनिशमेंट मिली है, लेकिन कोई भी अंग्रेजी नहीं जानता था। टीचर ने पढ़ा और बताया, लेकिन सब को समझ में इतना आया कि अवॉर्ड मतलब इनाम। पिता बोले- पढ़ाई में तो तुम होशियार हो, इनाम कुलदीप को मिल रही है। उन्होंने कहा कि क्या दिन थे। तब मैं पिता को यह समझा भी नहीं पाया कि क्या मामला है। मेरी मां बहुत चिंता करती थी, इसलिए मैं उन्हें पोस्ट कार्ड लिखा करता था और जब मैं घर वापस आता था तो वह इकट्ठे हुए पोस्ट कार्ड दिखाती थी।

उपराष्ट्रपति धनखड़ की स्कूल के दिनों का ग्रुप फोटो। लाल गोले में धनखड़।
उपराष्ट्रपति धनखड़ की स्कूल के दिनों का ग्रुप फोटो। लाल गोले में धनखड़।

5th क्लास में लिया था एडमिशन
उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ राजस्थान के झुंझुनूं के रहने वाले हैं। गांव में शुरुआती पढ़ाई के बाद उन्होंने 1962 में 5th क्लास में चित्तौड़ के सैनिक स्कूल में एडमिशन लिया था। उनके बड़े भाई कुलदीप धनखड़ उनसे एक क्लास सीनियर थे। दोनों भाई स्कूल के ही हॉस्टल सांगा हाउस में रहते थे।

राठी बोले- अपने टीचर का हमेशा सम्मान किया
एचएस राठी ने बताया कि जगदीप पढ़ाई में हमेशा होशियार रहे। खासकर मैथ्स में इतने अच्छे थे कि अपने बड़े भाई और सीनियर स्टूडेंट्स तक को पढ़ा देते थे। उन्होंने 1969 तक सैनिक स्कूल में पढ़ाई की।

बकौल राठी, धनखड़ आज भी टीचर्स से जुड़े हुए हैं। हर गुरु पूर्णिमा और अन्य मौके पर अपने गुरुओं से बात करते हैं। वह काफी मेहनती और अनुशासन में रहने वाले बच्चों में से एक थे। आज भी गुरु पूर्णिमा पर फोन कर आशीर्वाद लेते हैं। उनसे बातचीत करते हैं। जब वह पश्चिम बंगाल के राज्यपाल बने, तब बार-बार अपने पास पश्चिम बंगाल आने का आग्रह किया, लेकिन उम्र अधिक होने और कोविड के कारण नहीं जा सका। उन्होंने हमेशा रिस्पेक्ट दी है। राठी ने बताया कि धनखड़ इतने बिजी होने के बाद भी अपने टीचर्स और स्कूल के लिए समय निकाल रहे हैं। यह बहुत बड़ी बात है।

सैनिक स्कूल में ही हेलीपैड बनाया गया था। वहां पर मंत्री प्रताप सिंह खाचरियावास ने उपराष्ट्रपति का स्वागत किया।
सैनिक स्कूल में पौधारोपण करते उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़।
सैनिक स्कूल में पौधारोपण करते उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़।
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